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Home ओए हीरो

हमने चीज़ों को स्ट्रीमलाइन करते हुए मदद का काम किया: भावना मनोहर डुंबरे

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
May 2, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
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हमने चीज़ों को स्ट्रीमलाइन करते हुए मदद का काम किया: भावना मनोहर डुंबरे
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कोरोना की पहली लहर के दस्तक देते ही भावना मनोहर डुंबरे अपने एनजीओ अर्पण फ़ाउंडेशन के साथ अपने क्षेत्र के लोगों की मदद करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से जुट गईं. उन्हें कई बार विरोध का, प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद लोगों की मदद करने के अपने जज़्बे को उन्होंने बख़ूबी बनाए रखा. हमने भावना से इस बारे में बात की कि कैसे उन्होंने इस काम को शुरू किया और कैसे अंजाम दे रही हैं. इस बातचीत के कुछ मुख्य अंश आप यहां पढ़ सकते हैं और उनसे प्रेरित हो सकते हैं.

वर्ष 2012 में शुरू हुआ अर्पण फ़ाउंडेशन भावना के पति मनोहर डुंबरे का ब्रेन चाइल्ड है. इसके ज़रिए यह कपल लोगों के लिए सामाजिक कार्य करता है. भावना अर्पण फ़ाउंडेशन की फ़ाउंडर हैं. ठाणे पश्चिम के हीरानंदानी, ब्रह्मांड और घोड़बंदर रोड क्षेत्र में कचरे के व्यवस्थापन और निस्तारण के साथ-साथ कई अन्य समस्याओं के निपटारे में अर्पण फ़ाउंडेशन ने अहम् भूमिका निभाई है. लेकिन जब हमारे देश में कोराना महामारी का आगमन हुआ तो अर्पण फ़ाउंडेशन ने इस क्षेत्र के निवासियों के लिए उससे भी कहीं बड़ी भूमिका निभाई. लोगों को जानकारी देना, कोरोना के मामलों का लेखा-जोखा रखना, बुज़ुर्गों और अशक्तों तक भोजन पहुंचवाना, कोविड टेस्टिंग कैम्प लगवाना और वैक्सिनेशन में लोगों को सहायता उपलब्ध कराना. ये सभी काम फ़ाउंडेशन की ओर से करवाए गए.

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कोविड-19 के दौर में लोगों की मदद का काम आपने कब और कैसे शुरू किया?
इस क्षेत्र की समस्याओं को निपटाने के लिए यहां की सोसाइटीज़ के ऑफ़िस बेयरर्स के साथ हमने एक वॉट्सऐप ग्रुप पहले से ही बनाया हुआ था. मार्च 2020 में जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो हमने देखा कि कई लोग लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, कई लोगों को नियमों का पता ही नहीं है. तब मैंने अर्पण की ओर से सभी सरकारी निर्देशों का हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद शुरू करवाया और इसे लोगों तक पहुंचाना शुरू किया, ताकि लोग इन नियमों के बारे में जानें और इनका पालन करें.
जून 2020 तक ठाणे के इस क्षेत्र में कोरोना के इक्का-दुक्का ही मामले थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अप्रैल महीने से ही कई लोग परेशान थे, जिनमें अकेले रह रहे बुज़ुर्गों की संख्या काफ़ी थी. चूंकि यह पॉश इलाक़ा है, ये बुज़ुर्ग किसी से यह कह पाने में भी झिझकते थे कि वे खाना नहीं बना पा रहे हैं और भूखे हैं, क्योंकि मेड्स और सहायकों का आना भी बंद हो गया था. जब मुझे पता चला तो हमने डोंगरीपाड़ा के गुरुद्वारे में बात की. लोगों को यह समस्या बताई और प्रोत्साहित किया कि वे गेहूं, आटा, दाल-चावल जैसी चीज़ें यहां दान करें. और लंगर में हमने रोज़ाना 100 लोगों का खाना बनवाया. अर्पण फ़ाउंडेशन के लोग इसे सोसाइटीज़ में ज़रूरतमंद बुज़ुर्गों के घर तक डेलिवर करते थे. कई बुज़ुर्गों ने हमसे कहा- हमें खाना मांगने में शर्म आती, लेकिन आपने इस बात को समझा इसके लिए शुक्रिया.

कोरोना के मामले जब बढ़ने लगे तो आपने किस तरह इस काम को विस्तार दिया?
ये एक अभूतपूर्व और अकल्पनीय स्थिति थी. कुछ ख़ास पता नहीं था, लेकिन मामले बढ़ते देख कर हमने सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू किया. तुरंत ही कोरोना क्राइसिस मैनेजमेंट नाम से एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया और इस क्षेत्र की सभी इमारतों, सोसाइटीज़ के ऑफ़िस बेयरर्स को इसमें जोड़ा. फ़ेसबुक पर मदद की गुहार की. लोगों ने जब देखा कि अर्पण फ़ाउंडेशन मदद कर रहा है तो वे भी इससे आ जुड़े. हमने मिलकर यह बात सुनिश्चित की कि लोगों को नियमों का पता रहे और वे इनका पालन करें. ख़ुद को अपडेट करने और यह जानने के लिए कि हम किस तरह मदद कर सकते हैं मैंने यहां के टीएमसी हेल्थ सेंटर्स: वाघविल, मनोरमा नगर, आज़ाद नगर और मानापाड़ा का दौरा किया. बीमारी, इसकी जांच, इलाज आदि के तरीक़े और प्रोटोकॉल्स को यहां के मेडिकल ऑफ़िसर्स से समझा और इन बातों को ग्रुप पर साझा करना शुरू किया.

जुलाई 2020 में मैंने हीरानंदानी इस्टेट, ब्रह्मांड, ऋतु इस्टेट और आसापास के इलाक़ों के लिए एक कोविड डैश बोर्ड बनाने की शुरुआत की तो मुझे कई लोगों से विरोध का सामना करना पड़ा कि इस तरह तो सबके सामने उजागर हो जाएगा कि यहां कितने पॉज़िटिव पेशेंट्स हैं. मैं सुबह से शाम तक लोगों को समझाती रहती कि इससे फ़ायदा ही होगा-लोग जो ये समझे बैठे हैं कि उन्हें कोरोना नहीं होगा, वे समझेंगे कि ये किसी को भी हो सकता है; लोग सावधान होंगे; लोग जागरूक होंगे, जब पता होगा कि यहां मामले आ रहे हैं तो सतर्कता बढ़ेगी; लोग प्रोटोकॉल फ़ॉलो करेंगे; लोग मदद को आगे आएंगे. बहुत विरोध के बावजूद मैंने ज़िद ठान कर यह बनाया, क्योंकि मैं लोगों की मदद करने को लेकर प्रतिबद्ध हूं, और इससे हमें बहुत फ़ायदा भी हुआ. बाद में लोगों ने इसके लिए भी धन्यवाद कहा, क्योंकि हम महामारी का सटीक आकलन कर पा रहे थे. डैश बोर्ड के ज़रिए यह काम अब भी जारी है.

क्या कोरोना पॉज़िटिव या इसके लक्षण वाले लोगों से भी आपको किसी तरह का विरोध झेलना पड़ा?
दरअस्ल, इसे विरोध नहीं कहा जा सकता. लोग टेस्टिंग कराने में झिझक रहे थे. उनकी ये झिझक भीड़-भाड़ में टेस्ट कराने को लेकर भी थी. चूंकि मेरे पति इस क्षेत्र के नगरसेवक हैं, उनकी मदद से मैंने हमारे क्षेत्र के लोगों के लिए टेस्टिंग कैम्प्स का आयोजन किया. इन कैम्प्स में लोगों ने ख़ुद आकर टेस्ट कराया और इन्हें अच्छा प्रतिसाद मिला, क्योंकि हम यहां लोगों की संख्या को नियंत्रित कर पा रहे थे. फिर बीच में कोरोना के मामले आना कम हो गए तो लोग लापरवाह भी हो गए. मुझसे लोगों ने कहा कि अब मुझे डैश बोर्ड बंद कर देना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में इस बात का अंदेशा लगा लिया गया था कि फ़रवरी-मार्च 2021 में केसेज़ बढ़ सकते हैं. मुझे यह बात पता थी इसलिए मैंने डैश बोर्ड की जानकारी को रोज़ ही अपडेट करवाया. जब मामले बढ़े तो एक बार फिर इससे ट्रैक रखने में ख़ूब सहायता मिली.

वैक्सिनेशन ड्राइव में अर्पण फ़ाउंडेशन ने क्या भूमिका निभाई? कहा जा रहा है कि वैक्सीन्स की कमी है, ऐसे में भी क्या आप वैक्सिनेशन करवाने में सफल रहीं?
मैं अपने पति के साथ कई बार हॉस्पिटल्स और टीएमसी वॉर रूम में गई, ताकि समझ सकूं कि जो हम कर रहे हैं, उसमें क्या बदलाव किए जाएं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग लाभ ले सकें. शुरू में लोग वैक्सिनेशन से भी डर रहे थे और जो लोग महानगरपालिका सेंटर्स पर जा रहे थे, उन्हें लंबे समय तक अपनी बारी आने का इंतज़ार करते बैठे रहना पड़ता था. इससे उनके भी संक्रमित होने का ख़तरा था. इस बीच मैं बाक़ी के कामों में इतनी उलझी रहती थी कि मेरी बेटी भी वैक्सिनेशन ड्राइव में मेरी मदद करने के लिए साथ आ गई. हमने अपने-अपने काम बांट लिए. मैंने आसपास के अस्पतालों से पूछा कि यदि आप वैक्सिनेशन कर रहे हैं तो क्या हमें कुछ स्लॉट्स दिए जा सकते हैं, जिनपर अर्पण फ़ाउंडेशन की ओर से बुज़ुर्ग लोगों को इस तरह भेजा जा सके कि उन्हें ज़्यादा इंतज़ार न करना पड़े. अस्पतालों ने हमारा साथ दिया. इधर हमने सोसाइटीज़ से कहा कि अपने यहां के बुज़ुर्ग लोगों के नाम, उम्र आदि के विवरण तैयार रखें. अस्पताल एक दिन पहले फ़ाउंडेशन को यह ख़बर दे देते हैं कि अगले दिन वे कितने लोगों को वैक्सीन दे सकते हैं. हम सोसाइटीज़ द्वारा भेजी गई सूची में से उतने लोगों को दिन, समय व किस अस्पताल में जाना है इस बात की सूचना दे देते हैं, जिससे वे लोग नियत समय पर पहुंच कर वैक्सीन लगवा लेते हैं.
हमने इस आपदा के समय अर्पण के ज़रिए चीज़ों को स्ट्रीमलाइन करने का काम किया है, ताकि मदद सही समय पर, सही तरीक़े से और सही लोगों तक पहुंच सके. अभी हम इसी तरीक़े से बुज़ुर्गों को वैक्सीन की दूसरी डोज़ दिलवाने का काम भी कर रहे हैं. और अब हमारा मुख्य उद्देश्य आसपास की झुग्गी बस्ती में वैक्सिनेशन ड्राइव करवाने का है, क्योंकि यहां रहनेवाले लोगों में जागरूकता की कमी है और वे सोचते हैं कि उनकी इम्यूनिटी बहुत अच्छी है इसलिए उन्हें कुछ नहीं होगा.

अपने अनुभवों के आधार पर आप लोगों को क्या संदेश देना चाहती हैं?
मैं लोगों से कहना चाहती हूं कि अपना ख़्याल रखें. सैनिटाइज़र, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का अच्छी तरह पालन करें. आप केवल इतना ही कर लेंगे तो आप बहुत बड़ी मदद करेंगे. यदि सब इन बातों का पालन करने लगें, एक-दूसरे का आधार बनकर मदद करने लगें तो हम इस महामारी से जल्द उबर आएंगे. इसलिए किसी भी तरह की लापरवाही से बचें और नियमों का सख़्ती से पालन करें.

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शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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