‘आपदा में अवसर’ की बात अक्सर की जाती है. अमूमन यह मुहावरा सकारात्मक बने रहने और कुछ रचनात्मक करने के लिए प्रेरित करता है. पर डॉ अबरार मुल्तानी इस मुहावरे के ग़लत इस्तेमाल करने वालों के बारे में आगाह कर रहे हैं, ताकि आपदा के इस दौर में आप अपनी गाढ़ी कमाई ग़लत हाथों में न सौंप बैठें.
हमारे यहां कहते हैं, जो भी होता है, उसका कुछ न कुछ कारण होता है. अगर आपके मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा. ऐसा कहकर हम प्रकृति पर अपनी आस्था जताते हैं. यह स्वीकार करते हैं कि कई शक्तियों के सामने हम कुछ भी नहीं हैं. इसे आप पलायनवाद भी कह सकते हैं या धैर्य और सनातन आशावाद भी कि हर अंधेरी रात के बाद उजाला आता है. पर इन दिनों हमने आशावाद वाले तड़के को ज़रा जमकर लगाना शुरू कर दिया है, जिसके मुताबिक़ हर आपदा एक अवसर है. यह आपके ऊपर है कि आप उस अवसर का कैसे फ़ायदा उठाते हैं. कुछ लोग हैं, जो सही तरीक़े से आपदा को अवसर में बदलने में क़ामयाब होते हैं, उनकी कोशिशों की वजह से न केवल उनका भला होता है, बल्कि व्यापक तौर पर लोक कल्याण होता है. वे विपत्ति से निकलने का रास्ता ही नहीं खोजते, बल्कि उससे सबक सीखते हुए बेहतर भविष्य के लिए नई योजनाएं बनाते हैं, कुछ रचनात्मक और सकारात्मक कार्य करते हैं.
मैं क्यों इस बारे में लिख रहा हूं?
आप कहेंगे आपदा और अवसर पर मैं आज इतना क्यों लिख रहा हूं? इस स्लोगन को हम सभी जानते हैं, फिर डॉ मुल्तानी क्यों इसकी व्याख्या करने पर तुले हुए हैं. दोस्तों मैं इसलिए इस बारे में बात कर रहा हूं, क्योंकि इस समय की सबसे बड़ी आपदा यानी कोरोना महामारी के दौरान, जो कुछ हो रहा है, उससे मन कहीं न कहीं व्यथित हो गया है. विपत्ति के इस तरह के अभूतपूर्व दौर में जो चीज़ सबसे अधिक ज़रूरी होती है, वह होती है भरोसा. भरोसा कि हम सब मिलकर हर मुश्क़िल को हरा देंगे. पर मैं ख़ुद अपने कार्यक्षेत्र यानी मेडिकल फ़ील्ड में कई ऐसे मामले सुने हैं, जो लोगों का इंसानियत और अच्छाई पर से भरोसा तोड़ने के लिए काफ़ी हैं. उदाहरण के तौर पर…
-बंदा RTPCR सैम्पल होम कलेक्शन करने आता है. एक सलाई नाक में डालता है, फिर सलाई और टेस्ट का पेमेंट लेकर बन्दा ग़ायब.
-रेमडेसिवर इंजेक्शन उपलब्ध करवाने के नाम पर हज़ारों रुपए ट्रांसफ़र करवाते हैं और फिर मोबाइल फ़ोन बंद.
-प्लाज़्मा देने आ जाऊंगा लेकिन मेरे पास किराए के पैसे नहीं हैं, वह ट्रांसफ़र कर दीजिए. पैसा जैसे ही गया बन्दा लापता.
-ऑक्सीजन सिलेंडर देने के नाम पर 16 से 20 हज़ार लेकर बन्दा ग़ायब.
-ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर सप्लाई करने के नाम पर हज़ारों एडवांस लेकर सामने वाला लुप्त.
-होम क्वारन्टीन लोगों को खाना सप्लाई करने के लिए 10 से 15 दिन का किसी होटल के नाम पर पैसा एडवांस लेकर ग़ायब हो जाना.
यह तो रही मेरे कार्यक्षेत्र की कुछ बातें, पर लगभग जिस तरह बहुत सारे लोग नि:स्वार्थ तन, मन, धन से ज़रूरतमंदों की मदद कर रहे हैं, उसी तरह ऐसे लोग भी कम नहीं हैं, जो लोगों की ज़रूरतों का फ़ायदा उठा रहे हैं.
तो हमें करना क्या चाहिए?
ज़ाहिर है, यह आपदा का दौर है. हम हाथ पर हाथ धरे बैठे तो नहीं रह सकते. हम यह कहते हुए अपनी नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ‘सब चोर हैं जी’. देखिए आपदा में अवसर देख रहे ज़्यादातर स्वार्थी लोगों की नज़र ईज़ी मनी पर होती है. वे लोगों की भावनाओं और ज़रूरतों से खेलना जानते हैं. आप अगर ख़ुद मदद तलाश रहे हों, यानी किसी दवा, अस्पताल के बेड या ऑक्सीजन तलाश रहे हों तो परिचित और भरोसेमंद लोगों पर ही भरोसा करें. कई प्रतिष्ठित लोग मदद की वैरिफ़ाइड लिंक्स और नंबर्स शेयर करते हैं. आप बिल्कुल अंजान व्यक्ति के बजाय उनपर भरोसा कर सकते हैं.
वहीं अगर आप किसी की मदद कर रहे हों तो भले यह अच्छा और मानवीय न लगे, पर थोड़ा इन्क्वायरी करके ही मदद करें. इन पापी और घाघ लोगों से अपनी और अपनों की रक्षा करें. अभी पैसा जीवनरक्षक है, इसका सही जगह और समझदारी के साथ प्रयोग कीजिए. और उन लोगों के लिए, जो इस समय भी लूट में व्यस्त हैं, मैं इतना ही कहना चाहूंगा,‘लूट चाहे जब भी की जाए, वह तो हमेशा ग़लत ही होती है. पर हां, महामारी के इस दौर में यह किसी महापाप से कम नहीं है. आप इस लूट को अवसर कहकर जस्टिफ़ाई नहीं कर पाएंगे. कभी नहीं.’
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