हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी ऐसी स्थिति का सामना करते हैं, जब अचानक से लगने लगता है कि सबकुछ ख़त्म हो गया है. बिना किसी वास्तविक डर के हम बुरी तरह डरे हुए होते हैं. मेडिकल की भाषा में इसे पैनिक अटैक कहते हैं. जीवन में एकाध बार ऐसी स्थिति से गुज़रना सामान्य है, पर बार-बार इसका सामना करना पैनिक अटैक डिस्ऑर्डर कहलाता है. पैनिक अटैक डिस्ऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति की ज़िंदगी किसी बुरे सपने-सी हो सकती है.
जब बिना किसी असली ख़तरे या कारण अचानक हमें डर लगने लगता है, तो उसे पैनिक अटैक कहा जाता है. पैनिक अटैक बेहद डरावना होता है, आमतौर पर इस दौरान हमारे भीतर एक झटके में डर, ग़ुस्सा या घबराहट जैसी भावनाएं भर जाती हैं. हमें लगता है कि हमारा चीज़ों पर से कंट्रोल छूट रहा है. हमारे पसीने छूटने लगते हैं. दिल ज़ोरों से धड़कता महसूस होने लगता है. दम घुटने लगता है. कभी-कभी तो ऐसा भी लगता है कि अब हम बचनेवाले नहीं हैं. हम उस स्थिति से बाहर निकलना तो चाहते हैं, पर सामने कोई रास्ता नज़र नहीं आता. आइए पता लगाने की कोशिश करते हैं, क्यों आते हैं पैनिक अटैक और कैसे इस स्थिति में ख़ुद को सामान्य बनाए रखना होगा.
क्या कारण हैं पैनिक अटैक के?
पैनिक अटैक क्यों आते हैं, इसके सही-सही कारणों का तो अब तक पता नहीं चला है. पर इसके संभावित कारण आनुवांशिकता (जेनिटिक्स), लंबे समय से चला आ रहा तनाव या दूसरी भावनात्मक वजहें हो सकती हैं. मसलन-हमारी मान्यताओं या संस्कारों के ख़िलाफ़ घटी कोई घटना. कोई न भूल पाने वाला हादसा. नेगेटिव न्यूज़ की अधिकता भी पैनिक अटैक का कारण बन सकती है. जैसे अभी की कंडिशन की बात करें तो हर जगह से नकारात्मक ख़तरें आ रही हैं. उससे हम पहले तो असहज होते हैं, फिर हमारा अवचेतन मस्तिष्क प्रभावित होता है. वह इन ख़बरों को हमारी ज़िंदगी से जोड़कर देखने लगता है. जिससे हमें पैनिक अटैक का सामना करना पड़ सकता है. शुरू-शुरू में तो पैनिक अटैक बिना किसी वॉर्निंग के आते हैं, आगे चलकर किन्हीं ख़ास सिचुएशन्स में आते हैं. हमारे दिमाग़ को अंदाज़ा हो जाता है कि पैनिक अटैक जैसी स्थिति आनेवाली है.
कुछ लक्षण, जो पैनिक अटैक की पुष्टि करते हैं
आमतौर पर पैनिक अटैक का कोई वॉर्निंग साइन नहीं होता, वे कभी भी आ सकते हैं. आप कार चला रहे हों, सो रहे हों या किसी बिज़नेस मीटिंग में हों, पैनिक अटैक आ सकते हैं. पर उसके कुछ सामान्य लक्षण ज़रूर हैं, जो कुछ ही मिनटों में आप पर हावी होने लगते हैं.
कंपकंपी, घबराहट, तेज़ पसीना, जी-मिचलाना, भ्रम की स्थिति, दिल की धड़कन का अचानक बढ़ना या कम होता हुआ महसूस होना, गला सूखना, सांस लेने में तक़लीफ़, चक्कर आना, बेहोशी महसूस करना, शून्यता की स्थिति, पैरों में थरथराहट, बार-बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत महसूस होना, ऐसा लगना कि मानो अंतिम समय आ गया है और चीज़ों पर से कंट्रोल खो रहा है, इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं. लोग अक्सर पैनिक अटैक को हार्ट अटैक समझने की भूल कर बैठते हैं, क्योंकि इसमें कई बार व्यक्ति को सीने में दर्द जैसा अनुभव होता है.
क्या करें, जब पैनिक अटैक का दौरा पड़े?
इस स्थिति से निपटने का गोल्डन रूल है ‘पैनिक अटैक की स्थिति में कभी भी पैनिक नहीं होना चाहिए.’ थोड़ी समझदारी और हिम्मत से हालात का सामना किया जा सकता है. अपने विवेक का इस्तेमाल करें और डर को अपने ऊपर हावी न होने दें. कल्पना के घोड़े न दौड़ाएं यानी सोच-सोचकर डर क्रिएट न करें. ख़ुद से बातें करें, और ख़ुद को समाएं कि मैं इस स्थिति का सामना कर सकता हूं.
अच्छी चीज़ों के बारे में सोचें, जैसे-फूल, तितली, मौसम या रंगों के बारे में, बीते अच्छे पलों के बारे में. मन को चारों ओर से हटाने के लिए तुरंत आंखें बंद कर लें. और मन ही मन किसी अच्छे समय, अच्छे दिन या अच्छे चेहरे की कल्पना करें.
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