आप और हम हमेशा ऐसे किसी व्यंजन की बात करते हैं, जिसे सब जानते हैं. हालांकि ये सही भी है. मैं लिखती हूं तो सोचती हूं कि ऐसी किसी चीज़ पर लिखूं, जिसे लोग पढ़ें और पढ़नेवाले भी पॉपुलर रेसिपी जल्दी ढूंढ़ते हैं, पर एक बात ये भी है कि मेरे अपने जाने-पहचाने कई व्यंजन हैं, जिन्हें क्षेत्र विशेष के सिवाय लोग जानते ही नहीं और उस क्षेत्र विशेष से भी ये धीरे-धीरे गुम होने लगे हैं तो आज सोचा एक ऐसी ही रेसिपी के बारे में आपसे बात की जाए: रस-विया.
रस-विया एक ऐसी रेसिपी है, जो सिर्फ़ मध्यप्रदेश के मालवा और बुंदेलखंड क्षेत्र में ही बनाई जाती है. बाहर लोगों ने तो शायद इसका नाम भी न सुना होगा. हालांकि “विया” के कई रूप आपको पूरे देश में मिलेंगे. साउथ में इससे मिलती-जुलती एक डिश मिलती है, जिसे नूल पुट्टू कहा जाता है और इसे चावल के आटे से बनाया जाता है. दूसरी तरफ़ वेर्मिसिली (सिवैयां) भी इससे काफ़ी मिलती-जुलती है. बस, सिवैयां थोड़ी पतली होती है. अब आप कहेंगे कि आख़िर ये विए होते कैसे हैं? तो समझ लीजिए कि ये ज़रा-सा पतला नूडल्स है और ज़रा-सा मोटा सिवैयां है.
अब आप कहेंगे ये रस विया का क्या चक्कर है? तो बात ये है कि इन विया को खाया जाता है, आम के रस के साथ इसलिए इस व्यंजन का नाम है रस विया. कुछ लोग इसे नमकीन बनाकर भी खाते हैं, पर इसका जो सबसे प्रचलित कॉम्बिनेशन है, वो है रस के साथ.
कहानी में कहां है विया: ये ऐसी चीज़ है, जिसके बारे में ज़्यादा उल्लेख नहीं मिलता. हां, सिवैयां का उल्लेख ज़रूर मिलता है. बहुत सम्भावना ये भी है कि ये सिवैयां का ही रूप हो. और क्योंकि सिवैयां ज़रा और नाज़ुक-सी होती है और विये, क्योंकि घरों में मशीनों से बनाए जाते थे तो थोड़े मोटे बनाए जाने लगे. दूसरी सम्भावना ये भी है कि ये विया शब्द अपभ्रंश हो सिवैयां का ही, क्योंकि ये भारत में अरब व्यापारियों के माध्यम से आए. अब जैसे दक्षिण भारतीयों ने इसका चावल वाला रूप बनाया, वैसे ही मालवा में इसे मैदा से बनाया गया होगा. कहा जाता है, शुरुआती तौर पर महिलाएं इसे हाथ से बनाती थी और बाद में ये घरों में ही मशीन से बनाया जाने लगा.
कैसे बनाया जाता है: जैसा कि आप अब समझ ही गए होंगे कि इसे मैदा से बनाया जाता है. सबसे पहले मैदा को पानी मिलाकर गूंथा जाता है फिर होता है असल काम शुरू. इसकी जो मशीन होती है, वो ज़रा वज़नी होती है तो उसे किसी लकड़ी की खाट से कसा जाता है और फिर मशीन में गुंथा हुआ मैदा डालकर बनाए जाते हैं विए. जिन्हें जल्दी-जल्दी हटाकर धूप में किसी कपड़े पर फैला दिया जाता था. जब ये अच्छी तरह सूख जाते हैं तो इन्हें सही लम्बाई में तोड़कर डब्बों में भर लिया जाता है. और फिर सालभर अलग अलग रूप में बनाया जाता है. और इन पर बहार आती है आम के मौसम में, जब घरों में रस विया, रस विया के स्वर गूंजने लगते हैं. ज़रूरत के हिसाब से इन्हें उबलते पानी में डालकर पकाया जाता है और फिर पानी निकालकर इनपर डाला जाता है घी… और रस के साथ खाया जाता है.
मेरी यादों में विया: मेरी यादों में विया नानी घर की कहानी-सा है, जो मैं धूमिल नहीं होने देना चाहती हूं, बचाए रखना चाहती हूं. आप सोचते होंगे हर व्यंजन क्या इसके नाना-नानी के घर ही बनता था? पर बात ये है कि जब आप घरों से दूर होते हैं तो आप मम्मी-पापा से तो बात कर लेते हैं; कभी-कभी मामा-मामी से भी बात हो जाती है, पर जा चुके नाना-नानी की तो बस यादें होती हैं, जो बचपन से जुड़ी होती हैं. तो हम गर्मी के मौसम में नानी घर जाते थे. तब आम का मौसम तो होता ही है. तब मिक्सी में रस बनने की जगह, हाथ से रस बनाया जाता था. ये रस पक्की कैरियों से बनाते थे (और नानाजी के घर में खेत से ढेरों कैरियां आती थीं!) और इस रस के साथ विए बनाए जाते थे. ये व्यंजन मेरे लिए स्वाद का उत्कर्ष नहीं, बल्कि यादों की डिबिया-सा है, जिसके आस पास नानी घूमती हैं, नानी चली गईं, हम हैं और हमारे साथ हैं उनकी यादें हैं…
आपकी यादों में भी तो कोई ऐसा व्यंजन होगा न, जो व्यंजन नहीं होगा आंखों की कोरों के मोती-सा होगा, जिसे याद करके आप अपने खोए हुए लोगों को याद करते होंगे? हमें उसके बारे में ज़रूर बताइएगा. तब तक मैं आंसू पोंछकर फिर तैयार रहूंगी, अगला कुछ लिखने के लिए …