विज्ञान कहता है, हमारा शरीर हर पल बदल रहा है, पर हमेशा जवां रहने का मनोविज्ञान हमें सालों साल एक जैसा बने रहने की तसल्ली कराता है. एक्सपेक्टेशन वर्सेस रियलिटी के इस क्लासिक केस यानी विज्ञान और मनोविज्ञान की अनूठी लड़ाई में आखि़र क्या होता है, आइए जानने की कोशिश करते हैं. यह लेख उन लोगों को तो ज़रूर पढ़ना चाहिए, जिन्हें इस बात की चिंता सताती है कि वे बूढ़े हो रहे हैं.
अक्सर पुरानी यादों को सुहानी बताया जाता है, पर क्या सभी पुरानी यादें सुहानी ही होती हैं? बेशक बुरा से बुरा समय गुज़र जाने के बाद अच्छा ही लगता है, पर कई बार पुरानी तस्वीरें हमारे वर्तमान को बुरा बना देती हैं. अमूमन देखा गया है कि लोग अपनी पुरानी तस्वीरों को देखकर दुखी हो जाते हैं. यह सोच-सोचकर कि हम तब कितने जवां, दुबले-पतले और स्मार्ट दिखते थे, यह विचार उन्हें बेवजह चिंता में घोलने लगता है. पुरानी तस्वीर को देखकर इस तरह उदास हो जाना बॉडी ग्रीफ़ कहलाता है. बेशक, जब ग्रीफ़ यानी दुख है तो उसका कारण भी होगा, और कारण है तो निवारण भी.
क्या कारण है बॉडी ग्रीफ़ का?
बॉडी ग्रीफ़ यानी अपने सालों पुराने शरीर कोअपना आइडियल शरीर मानकर मौजूदा अपियरेंस के प्रति नकारात्मकता से भर जाना दरअसल कहीं न कहीं हमारी मौजूदा सामाजिक मान्यताओं के चलते होता है. ‘एज इज़ जस्ट अ नंबर’ कहना, कहने में बहुत आसान और सुनने में रोचक भले लगे, पर एज तो दिखेगी ही. फ़िल्मों में सलमान ख़ान, अक्षय कुमार, आमिर ख़ान, शाहरुख ख़ान, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित को देखकर हमें लगने लगता है कि ये तो बूढ़े ही नहीं हो रहे हैं. जबकि हमारी तो दस साल पुरानी फ़ोटो ही कितनी अलग लग रही है. देखिए इन सितारों को अच्छा और फ़िट दिखने के ही पैसे मिलते हैं. अच्छी फ़िटनेस मेंटेन करना और प्रेजेंटेबल दिखना इनके काम का पार्ट है. ये पर्दे या मीडिया के सामने अच्छा दिखने के लिए किस मनोस्थिति से गुज़रते हैं, उसके लिए कितनी मेहनत करते हैं, हमें इसका अंदाज़ा नहीं होता. ये लोग खानपान में कितनी क़ुर्बानी करते हैं, जिम में कितने घंटे बिताते हैं, सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे. फिर दूसरा सबसे बड़ा कारण है, विज्ञापनों की भूमिका. हमारे दिमाग़ में यह बात ज़बर्दस्ती भरी जाती है कि किस उम्र में हमें कैसा दिखना है. बीस की उम्र के बाद त्वचा और बालों का ध्यान कैसे रखना है, ताकि उम्र के अगले दशक में हम जवां बने रहें. बार-बार यह बात सुनकर हम कहीं न कहीं यह मानने लगते हैं कि हमारी त्वचा अब पहले जैसी नहीं रही. इस तरह उम्र के तीसरे दशक में ही बहुतों को विज्ञापन की मेहरबानी से बुढ़ापे वाली फ़ीलिंग आने लगती है.
कौन लोग बॉडी ग्रीफ़ से ज़्यादा परेशान रहते हैं?
बॉडी ग्रीफ़ से जूझ रहे लोगों को कैटेगराइज़ करने के लिए उम्र या लिंग की कोई सीमा नहीं है. आमतौर पर इसे मिडल एज्ड लोगों की समस्या माना जाता है, पर किसी भी उम्र की महिला या पुरुष इससे परेशान रह सकते हैं. जिस तरह टीनएजर्स में आजकल अपने किसी पसंदीदा ख़ास स्टार जैसा दिखने की ललक बढ़ी है, वे भी इस मानसिक समस्या से दो-चार होने लगे हैं. अगर एक बार आप इसके झांसे में आ गए तो उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या भी बढ़ती जाएगी, क्योंकि तब आपके बाल ज़्यादा सफ़ेद होंगे, झुर्रियां और अच्छे से विज़िबल होंगी.
बॉडी ग्रीफ़ उन लोगों को भी परेशान करती है, जिनमें अपनी क़ाबिलियत पर भरोसा नहीं होता. उन्हें लगता है कि लोग उन्हें केवल तभी पसंद करेंगे, जब वे सुंदर और स्मार्ट दिखेंगे. जबकि सच्चाई यह है कि हमारा व्यवहार, हमारी अच्छाई, हमारी सच्चाई, हमारे काम, हमारी प्रतिभा जैसे गुणों के कारण लोग हमें पसंद या नापसंद करते हैं.
आप भी बॉडी ग्रीफ़ से जूझ रहे हैं, अगर…
-अगर आप पुराने दिनों की अपनी तस्वीर की तुलना में ख़ुद को कमतर या अनाकर्षक मानते हैं.
-हर बीतते दिन के साथ आप अपने शरीर और अपियरेंस को लेकर ज़्यादा ही कॉन्शियस होते जा रहे हैं.
-आजकल फ़ोटो खिंचवाते समय आप कुछ ज़्यादा ही असहज महसूस करने लगे हैं.
-स्कूल या कॉलेज के दिनों के दोस्तों से सालों बाद मिलने का आपके मन में कोई उत्साह नहीं रहा.
-हैवी मेकअप के बिना आप असहज महसूस करने लगती हैं.
-आप बालों में आई हल्की-सी सफ़ेदी से भी असहज होने लगे हैं. उन्हें छुपाने का हर जतन करते हैं.
-सुंदरता बढ़ाने या वज़न कम करने का हर सुना-पढ़ा चमत्कारी नुस्ख़ा आज़माने के लिए तैयार रहते हैं.
-आपको लगता है कि इन दिनों कोई आपके लुक्स की तारीफ़ नहीं कर रहा है.
कैसे आप अपने दिमाग़ से इस दिमाग़ी समस्या को बाहर निकाल सकते हैं?
बॉडी ग्रीफ़ हो या दुख का कोई दूसरा कारण, सबसे पहले आपको अपने दिमाग़ में यह बात फ़िट कर लेनी चाहिए कि दुनिया में एक साथ आपको सबकुछ नहीं मिल सकता. जैसे-कॉलेज के दिनों में आपके पास एनर्जी और समय होता है, पर पैसा नहीं होता. वर्किंग लाइफ़ में एनर्जी और पैसा होता है, पर ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाने के लिए समय नहीं होता. रिटायरमेंट के बाद आपके पास पैसा और समय होता है, पर एनर्जी नदारद होती है. ऐसे में आप रोते नहीं रह सकते. आपको विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाना होगा. ख़ुद को मेंटली तैयार करना होगा.
अगर आपको फ़िल्मी सितारों से ही प्रेरणा लेनी हो तो वहीदा रहमान, मिलिंद सोमन, रजनीकांत, अजीत जैसे कितने ही फ़िल्मी सितारे हैं, जो पब्लिक में अपनी उम्र के अनुसार दिखते हैं. वहीदा रहमान ने तो एक फ़िल्म मैग्ज़ीन को दिए एक हालिया इंटरव्यू में खुलासा किया था कि उनके बाल काफ़ी कम उम्र में ही सफ़ेद होने लगे थे. उन्हें हर 10 दिन में टचअप कराना होता था. जो कि उनके लिए एक थका देनेवाला काम था. एक बार अपने बीमार पति की देखभाल में उन्हें बालों को कलर करने का समय नहीं मिला और ख़याल भी नहीं रहा. कुछ दिनों बाद वे जब अपने फ़िल्मी दुनिया के साथियों से मिलीं तो सब हैरान रह गए. सुनील दत्त ने शिकायती लहजे में कहा भी कि,‘वहीदा जी ने यह ठीक नहीं किया, वे हमसे उम्र में छोटी हैं. और उन्होंने बालों को कलर करना बंद कर दिया. अब तो दुनिया को हमारे काले बालों का राज़ भी पता चल जाएगा.’ ख़ैर, वहीदा रहमान ने बालों को कलर करना पूरी तरह से बंद कर दिया, पर उनकी ख़ूबसूरती में किसी तरह की कमी नहीं आई. इसी इंटरव्यू में उन्होंने आगे कहा,‘जब आप सच को स्वीकार कर लेते हैं, तो ज़्यादा आराम से रहते हैं.’
तो आप क्यों बेवजह हमेशा जवां बने रहने का फितूर पाले बैठे हैं. बालों की सफ़ेदी का रंग चेहरे पर चढ़ा लेना और बढ़े हुए वज़न का बोझ मन पर उठा लेना किसी भी लिहाज़ से समझदारी नहीं है. सच को स्वीकार करें. अपने शरीर को प्यार करें. हां, अपने शरीर को अपनी उम्र के अनुसार फ़िट रखने की कोशिश करें. यह ध्यान रखें कि आपको किसी तरह की हेल्थ प्रॉब्लम न हो. अपनी स्किल्स को बढ़ाएं, लोगों की मदद करना शुरू करें. लोग आपसे प्यार करेंगे.
तो हमें समय के साथ जवां नहीं, संतुष्ट और कॉन्फ़िडेंट बनने पर फ़ोकस करना चाहिए. यक़ीन मानिए आपकी मौजूदा फ़ोटो अपने आप सुंदर बन जाएगी.
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