आध्यात्म हो, दर्शन या विज्ञान सबने इस सच्चाई को माना है कि दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं है. हर पर चीज़ें बदलती रहती हैं. ज़्यादातर मामलों में हमें पता ही नहीं होता कि चीज़ें बदल रही हैं. परिवर्तन के इसी नियम को समझाते हुए हमारे अपने चिकित्सक और दार्शनिक डॉ अबरार मुल्तानी बता रहे हैं कि क्यों हमें न केवल बदलाव को स्वीकार करना चाहिए, बल्कि इस पर भी नज़र बनाए रखनी चाहिए कि बदलाव अच्छे और सकारात्मक हों.
हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िंदगी…! यह शाहरुख़ ख़ान की एक फ़िल्म के गाने के बोल हैं. यही बात मैंने अपनी किताब ‘बीमारियां हारेंगी’ में अपने पाठकों को समझाई थी कि,‘हम रोज़ जीते हैं और रोज़ मरते हैं.’ यह भी सत्य है कि हम एक बार फ़ाइनली मर जाते हैं लेकिन, हम एक ही बार मरते हैं, यह आधा सच है. क्योंकि, हमारे शरीर की करोड़ों कोशिकाएं रोज़ मरती हैं और रोज़ ही उनकी जगह करोड़ों नई कोशिकाएं ले लेती हैं. त्वचा की जो परत आप पर आज चढ़ी हुई है, यह वह नहीं है जो बचपन में आप को ढके हुए थी. यह तो हर कुछ महीनों में बिल्कुल नई हो जाती है, आपको बताए बिना. हमारे शरीर का खोल बदलता है, हमारा ख़ून बदलता है, हमारा गोश्त बदलता है, हमारी हड्डियां बदलती हैं और हमारे विचार तो हम जानते ही हैं कि बदलते ही हैं. जिन चीज़ों से हमें बचपन में प्रेम होता है, उनसे हम युवावस्था में प्रेम नहीं करते. कितने लोगों को बचपन में प्रिय कंचे या खिलौने अब भी प्रिय हैं बताइए?
आरम्भिक दार्शनिकों में से एक हिरेकलिट्स का यह दर्शन था कि, हर चीज़ बहती हुई अवस्था में है. हर चीज़ निरंतर परिवर्तनशील और गतिशील है. सदा एक ही बनी रहने वाली कोई भी चीज़ संसार में नहीं है. वे एक बहुत ही सुंदर बात कहते थे कि,‘हम उस नदी में दूसरी बार पैर नहीं रख सकते क्योंकि, जब मैं दूसरी बार उस नदी में पैर रखता हूं तो ना तो मैं और ना ही नदी पहले जैसी होती है.’ दूसरे ही पल नदी भी बदल गई और हम भी.
सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो वाक़ई हम हर पल बदल रहे होते हैं. किसी से मिलने के पहले हम कुछ और होते हैं और किसी से मिलने के बाद कुछ और. कुछ पढ़ लेने के बाद हम कुछ और बन जाते हैं, कुछ सीख लेने के बाद हम कुछ और. किसी फूल को सूंघने से पहले हम अलग होते हैं और उसकी ख़ुशबू लेने के बाद कुछ और. हमारे मन, मस्तिष्क और शरीर में निरंतर परिवर्तन चलते रहते हैं. यह नहीं कहा जा सकता कि जो व्यक्ति आप 10 साल पहले थे वही अब भी हैं. कक्षा 10 का विद्यार्थी कक्षा 11 में आकर बदल जाता है. वह वह नहीं रहता जो पिछली कक्षा में था. हो सकता है कि आपका नाम ना बदला हो, आपका काम ना बदला हो, लेकिन आप वह नहीं रहे. यह भ्रम है कि नाम का न बदलना मतलब हम वही हैं. इसलिए कई गुरु अपने शिष्यों को यह बतलाने के लिए कि वे अब नए हो गए हैं, उनका नाम बदल देते हैं. या कई लोग जीवन में परिवर्तन को महसूस करके अपना नाम या उपनाम बदल डालते हैं.
कई बार हम देखते हैं कि किसी दृश्य को देखकर हमारा हृदय परिवर्तित हो जाता है जैसे-अशोक का युद्ध में हज़ारों हज़ार लाशें देखकर हुआ था. कई बार हम कोई बात सुनकर परिवर्तित हो जाते हैं जैसे-अरस्तु की बातें सुनकर सिकंदर और कौटिल्य की बात सुनकर चन्द्रगुप्त हुआ था. दृश्य और शब्द हमें बदल देते हैं. शब्द या दृश्य में से कौन ज़्यादा शक्तिशाली है यह एक बहस का मुद्दा है. कई धर्म शब्दों की शक्ति को बड़ा मानते हैं, तो कई धर्म दृश्यों की शक्ति को. और कुछ ऐसे भी हैं जो दृश्य और शब्द दोनों की ही शक्तियों को बराबर-बराबर मानकर इन्हें अपने दर्शन में समाहित किए हुए हैं.
परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इस शाश्वत सत्य को हमें स्वीकार करना चाहिए. हमें अपने आप हो टटोलते रहना चाहिए कि हम परिवर्तित हुए हैं तो यह परिवर्तन कैसा है, अच्छा है या बुरा है? स्वास्थ्य के स्तर पर तथा दर्शन और अध्यात्म के स्तर पर भी. व्यक्तिगत स्तर पर और सामाजिक स्तर पर भी. हम क्या बन रहे हैं या क्या बन गए हैं? यह जानना हमारा पहला कर्तव्य है. यदि हम एक सुगन्धित पुष्प बन रहे हैं अपने लिए भी और समाज के लिए भी तो यह परिवर्तन अच्छा है. लेकिन, हम यदि कांटा बन रहे हैं, एक भ्रमित भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं, समाज और दुनिया को तबाह करने वाले या नोच लेने वाले भेड़िए बन रहे हैं तो सावधान हो जाइए. इस परिवर्तन को यहीं पर रोक दीजिए और अपने परिवर्तन की दिशा को सकारात्मक मोड़ दीजिए. चूंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसलिए हर व्यक्ति अपने आप को बदल सकता है. यदि आप अपने परिवर्तन को नहीं देखेंगे, उसे नियंत्रित नहीं करेंगे तो फिर कोई और उसे नियंत्रित करेगा. और जब आपको कोई अपने अनुसार बदलेगा तो निश्चित ही वह अपने लाभ के लिए आपको बदलेगा, आप के लाभ के लिए नहीं. आप बदलाव को नहीं रोक सकते, पर कोशिश करें कि बदलाव अच्छे हों!