कोई किताब अच्छी कब कही जाती है? मेरे मुताबिक़ तब, जब उसे पढ़ने में आनंद आए, आप उससे जीवन जीने के लिए कुछ विचार पा सकें, कोई दिश पा सकें और समृद्ध हो सकें. भगवती चरण वर्मा का यह उपन्यास चित्रलेखा इन सभी बातों पर खरा उतरता है. यह पाठक को जीवन के बारे में सोचने पर विवश करता है, उसे जीवन जीने के कुछ सूत्र थमाता है और अंत में पुस्तक को एक बार और पढ़ने की लालसा जगा देता है. यही इस उपन्यास की सफलता है.
पुस्तक: चित्रलेखा
लेखक: भगवतीचरण वर्मा
विधा: उपन्यास
प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन समूह
मूल्य: रु 299/- पेपर बैक
उपन्यास चित्रलेखा की शुरुआत दो शिष्यों श्वेतांक और विशालदेव द्वारा अपने गुरु रत्नांबर से एक प्रश्न पूछने से होती है, ‘‘पाप क्या है?’’ इस सवाल के जवाब में उनके गुरु कहते हैं कि यह बड़ा कठिन और स्वाभाविक प्रश्न है. और इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए वे अपने शिष्यों को संसारिक जीवन में जाकर इसे ढूंढ़ने को कहते हैं.
यह उत्तर जानने के लिए गुरु रत्नांबर द्वारा श्वेतांक को बीजगुप्त के पास भेजा जाता है, जो एक भोगी व युवा सामंत है और विशालदेव को योगी व युवा संन्यासी कुमारगिरि के पास भेजा जाता है.
चित्रलेखा पाटलीपुत्र की असाधारण नर्तकी थी. जिसका परिचय देते हुए उपन्यास में लेखक लिखते हैं, ‘‘चित्रलेखा वेश्या न थी, वह केवल नर्तकी थी.’’ और उपन्यास पढ़ते हुए ज्ञात होता है कि चित्रलेखा के चार व्यक्तियों से संबंध बनते हैं और वे सभी उसकी मर्जी से बनते हैं अत: वह सचमुच वेश्या न थी, ये बात एक महिला तो समझ सकती है, लेकिन लेखक इसे बहुत आसानी से पाठक को समझाने में कामयाब हो जाते हैं और यह बात एक महिला होते हुए इस किताब को पढ़ते समय मुझे इसका सबसे सशक्त पक्ष लगी और मेरे दिल को छू गई. लेखक के महिलाओं के प्रति विचारों का बिना किसी पूर्व धारणा के इतना खुलापन सराहनीय लगा.
कुछ बातें जो जीवन का सूत्र बन सकती हैं, उन्हें यहां उद्धृत करना चाहूंगी.
रत्नांबर का अपने शिष्यों को यह कहना, ‘‘अविकल परिश्रम करने के बाद, अनुभव के सागर में उतराने के बाद भी जिस समस्या को हल नहीं कर सका हूं, उसे किस प्रकार तुम्हें समझा दूं?’’ यह बताता है कि एक गुरु को अपनी कमी स्वीकारने से पीछे नहीं हटना चाहिए. रत्नांबर का यह कथन, ‘‘पाप का पता लगाने के लिए ब्रह्मचारी की कुटी उपयुक्त स्थान नहीं है, संसार के भोग-विलास में ही पाप का पता लग सकेगा.’’ या फिर गुरु का यह बताना, ‘‘इस कसौटी पर ध्यान रखना कि अच्छी वस्तु वही है, जो तुम्हारे वास्ते अच्छी होने के साथ ही दूसरों के वास्ते भी अच्छी हो.’’
योगी कुमारगिरी के बारे में ज़िक्र करते हुए उपन्यास में एक जगह कहा गया है, ‘‘आत्मविस्मृति और कल्पना की सजीवता का भ्रम—इन दोनों में अजब मस्ती है.’’
वहीं चित्रलेखा का तर्क है, ‘‘अनुराग का सुख विराग का दुख है. प्रत्येक व्यक्ति अपने सिद्धांतों को निर्धारित करता है तथा उन पर विश्वास भी करता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने को ठीक मार्ग पर समझता है और उसके मतानुसार दूसरे सिद्धांत पर विश्वास करने वाला व्यक्ति गलत मार्ग पर है.’’
वहीं अपने गुरुभाई व सेवक श्वेतांक से बातचीत के दौरान बीजगुप्त का यह कहना, ‘‘मनुष्य स्वतंत्र विचार वाला प्राणी होते हुए भी परिस्थितियों का दास है. और यह परिस्थिति चक्र क्या है, पूर्व जन्म के कर्मों के फल का विधान है. मनुष्य की विजय वहीं संभव है जब वह परिस्थितियों के चक्र में पड़कर उसी के साथ रहकर चक्कर न खाए, वरन् अपने कर्तव्याकर्तव्य का विचार रखते हुए उस पर विजय पावे.’’
इस पुस्तक के हर पन्ने पर आपको जीवन दर्शन मिलता है, जिनमें से कई बातें आपके जीवन को सहज बनाने के काम की लगती हैं तो कई बातें आपको उदार मन वाला व्यक्ति बना देने के सामर्थ्य से भरी हुई हैं. इस उपन्यास को पढ़ना बहुत ही समृद्ध करने वाला अनुभव है. किताब को पहली बार में धीमी गति से पढ़ने की इच्छा होते हुए भी इसका प्रवाह ऐसा है कि आप इसे बड़ी तेज़ी से पढ़ते चले जाते हैं और जब किताब का अंत होता है तो आपके भीतर यह इच्छा उपजती है कि एक बार इसे धीमी गति से और पढ़ा जाए.
किताब के अंत में एक गुरु का गरुत्व और औदार्य दोनों ही आपका हृदय स्पर्श करते हैं, जब रत्नांबर कहते हैं, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है.’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘संसार में इसीलिए पाप की परिभाषा नहीं हो सकी—और न हो सकती है. हम न पाप करते हैं, न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं, जो हमें करना पड़ता है.’’
हालांकि इस बात से कई लोग असहमत हो सकते हैं, जो पुनर्जन्म पर, ईश्वर पर आस्था नहीं रखते तो रत्नांबर अपनी बात का अंत करते हुए कहते हैं, ‘‘यह मेरा मत है—तुम लोग इससे सहमत हो या न हो, मैं तुम्हें बाध्य नहीं करता और न कर सकता हूं.’’
इस पूरी पुस्तक में विचारों का खुलापन और उनका औदार्य उपन्यास को पढ़ने के बाद लंबे समय तक आपके साथ रहता है. यदि आपने यह उपन्यास नहीं पढ़ा है तो इसे ज़रूर पढ़ें.