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Home सुर्ख़ियों में चेहरे

टोक्यो ओलंपिक्स: क्या थर्ड टाइम लकी साबित हो पाएंगी दीपिका कुमारी?

प्रमोद कुमार by प्रमोद कुमार
June 28, 2021
in चेहरे, ज़रूर पढ़ें, सुर्ख़ियों में
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टोक्यो ओलंपिक्स: क्या थर्ड टाइम लकी साबित हो पाएंगी दीपिका कुमारी?
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महिला तीरंदाज़ी की भारतीय पोस्टर गर्ल दीपिका कुमारी ग़ज़ब फ़ॉर्म में हैं. पेरिस में चल रहे तीरंदाज़ी विश्व कप स्टेज 3 में महिलाओं की व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा जीतकर उन्होंने स्वर्ण पदक की हैट्रिक पूरी की. व्यक्तिगत प्रतियोगिता में स्वर्ण से पहले दीपिका ने मिक्स्ड टीम और महिला टीम रिकर्व प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था. दीपिका की इस सुनहरी सफलता ने टोक्यो ओलंपिक्स में तीरंदाज़ी से मेडल मिलने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं.

पेरिस में चल रहे तीरंदाज़ी विश्व कप स्टेज 3 में दीपिका कुमारी की गोल्डन हैट्रिक ने 27 जुलाई से शुरू हो रहे टोक्यो ओलंपिक्स में भारत के लिए इस बार तीरंदाज़ी में मेडल की उम्मीद जगा दी है. हालांकि तीरंदाज़ी और शूटिंग प्रतियोगिता के विजेताओं के बारे में पहले से कुछ भी प्रेडिक्ट करना सही नहीं माना जाता, क्योंकि प्रतियोगिता के दौरान बड़े-से-बड़े खिलाड़ी की एकाग्रता में एक छोटी-सी चूक भारी पड़ जाती है. पर झारखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान बढ़ानेवाली इस खिलाड़ी द्वारा पिछले कुछ समय से किया जा रहा लगातार अच्छा प्रदर्शन एक पॉज़िटिव संकेत तो है ही. अपने शुरुआती दिनों में दुनिया की नंबर एक महिला तीरंदाज़ की रैंकिंग पर विराजमान हो रहीं दीपिका, एक बार फिर से नंबर वन महिला तीरंदाज़ बन गई हैं. आज प्रधानमंत्री से लेकर, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं. अपने खेल को इस स्तर तक पहुंचाने का दीपिका का सफ़र हालांकि इतना आसान नहीं रहा है.

पैरिस में गोल्डन हैट्रिक के बाद दीपिका

बतौर तीरंदाज़ रिजेक्ट हो गई थीं दीपिका, अर्जुन मुंडा के पत्र से मिला अकैडमी में एडमिशन
तीरंदाज़ी अपनाने का दीपिका का फ़ैसला कम दिलचस्प नहीं है. खेलों में पैसा, समय और मेहनत लगती है. आम भारतीय मानसिकता होती है कि बच्चे पढ़-लिखकर कोई नौकरी पकड़ लें. दीपिका के पिता रिक्शा चलाते हैं और मां सरकारी अस्पताल में नर्स हैं. ऐसे में खेलों में लगनेवाले भारी ख़र्च को वहन करना उनके बूते के बाहर था. दीपिका ने परिवार का आर्थिक भार कम करने के लिए खेलों से जुड़ने का फ़ैसला किया था. दीपिका अपनी कहानी बताते हुए कहती हैं,‘‘मैं एक निम्न मध्यमर्वीय परिवार से आती हूं. घर में आर्थिक तंगी थी. मुझे मेरी दूर की एक कज़न सिस्टर ने बताया कि एक आर्चरी अकैडमी है, जहां सबकुछ मुफ़्त है, आपको केवल खेलना होता है. उसके पहले मैंने कभी तीरंदाज़ी नहीं की थी. मैंने सोचा यदि मैं बाहर चली जाऊंगी तो परिवार का भार थोड़ा कम हो जाएगा. यह सोचकर मैं आई थी, बाक़ी मुझे इस खेल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं रांची से जमशेदपुर के सराईकेला खरसांवा आर्चरी अकादमी गई. पर वहां मेरा चयन नहीं हुआ, वहां के कोच ने मुझे अर्जुन मुंडा के पास जाकर लेटर लाने के लिए. उन्होंने कहा इतनी दुबली-पतली है तीरंदाज़ी कैसे कर पाएगी? मेरी मां ने कहा आप एक बार मौ़का दे दीजिए नहीं कर पाए तो छह महीने में निकाल देना. उन्होंने लेटर दिया और मेरा ऐडमिशन हो गया. मैं उस समय 14 वर्ष की थी. अगले 10 महीनों में मुझे राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने का मौक़ा मिला. आगे चलकर मैं टाटा अकैडमी से जुड़ी.’’ टाटा अकैडमी से जुड़ने के बाद दीपिका को पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी.

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क्या दीपिका साबित हो सकेंगी थर्ड टाइम लकी?
जुलाई 2021 से शुरू हो रहा टोक्यो ओलंपिक्स, दीपिका का तीसरा ओलंपिक होगा. हर बार वे भारत की ओर से पदक की मज़बूत दावेदार के तौर पर ओलंपिक खेलों में शामिल होती रही हैं. 2012 के लंदन ओलंपिक्स के पहले वे विश्व की नंबर एक महिला तीरंदाज़ थीं, लेकिन पहले ही राउंड में ब्रिटिश खिलाड़ी से हारकर बाहर हो गई थीं. उस समय लॉर्ड के क्रिकेट मैदान पर खेले जा रहे उस मुक़ाबले के दौरान तेज़ हवाएं चल रही थीं और दीपिका को बुखार भी था. वैसे भी लंदन 18 साल की लड़की का पहला ओलंपिक्स था. उसने वहां बहुत कुछ सीखा. रियो ओलंपिक्स में भी अच्छा प्रदर्शन करने के दबाव में दीपिका अंतिम 16 राउंड में बिखर गईं. अब 2021 के टोक्यो आलंपिक्स के पहले भी नंबर एक पायदान पर पहुंच चुकी हैं. अब जबकि ओलंपिक्स शुरू में होने में महज़ एक महीने का समय रह गया है तो उनके अच्छे फ़ॉर्म और कॉन्फ़िडेंस को देखते हुए लगता है कि वे थर्ड टाइम लकी ज़रूर साबित होंगी.
अगर इस बार दीपिका पोडियम तक पहुंचने में सफल होती हैं तो वे न केवल अपने अल्टिमेट सपने को पूरा कर लेंगी, बल्कि उन्हीं के शब्दों में लाखों लड़कियों की प्रेरणा बनेंगी. उन्होंने रियो ओलंपिक्स के पहले कहा था,‘‘ओलंपिक मेडल हर खिलाड़ी का सपना होता है. ओलंपिक मेडल का मतलब है आपने जीवन में कुछ हासिल किया है. मैं फिर से वर्ल्ड नंबर बनना चाहती हूं और ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीतना चाहती हूं. मैं उन सभी लड़कियों की प्रेरणा बनना चाहूंगी, जो प्रतिभाशाली हैं, किंतु परिस्थितियों के साथ संघर्ष कर रही हैं.’’ बहरहाल हालिया सफलता के चलते वे नंबर एक तो बन चुकी हैं, आशा करते हैं ओलंपिक गोल्ड जीतने का उनका सपना भी पूरा हो जाएगा.

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प्रमोद कुमार

प्रमोद कुमार

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