ये बात सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन सेक्स से जुड़ी कुछ समस्याएं, केवल इसीलिए बनी रहती हैं कि लोग उनके होने पर भरोसा करते हैं. इसे यूं भी कहा जा सकता है कि ये समस्याएं केवल हमारे दिमाग़ की उपज होती हैं. यह बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि 40 वर्षों से सेक्शुअल रोगों के इलाज में लगे हुए विश्व विख्यात और तजुर्बेकार डॉक्टर कह रहे हैं. इस बारे में सच्चाई यहां जानें…
हम बिल्कुल सच कह रहे हैं! कुछ बातें सुनने में भले ही अजीबोगरीब लगें, लेकिन वे सच होती हैं. सेक्स से जुड़ी कुछ समस्याएं भी इसी कैटेगरी में आती हैं, दरअसल ये समस्याएं केवल इसलिए बनी रहती हैं, क्योंकि लोग इनके होने पर भरोसा करते हैं.
इसी तरह की सेक्स से जुड़ी एक समस्या है: धात सिंड्रोम या धातु रोग. यह एक ऐसा तथ्य है, जिसके चलते बड़ी संख्या में भारतीय पुरुष सोचते हैं कि वीर्य (धातु) यानी सीमन के बहने के चलते उनका वज़न कम हो रहा है और उन्हें कमज़ोरी व थकान महसूस हो रही है.गहराई तक जमी हैं जड़ें
जहां डॉक्टरों का कहना है कि इस डर का कोई मेडिकल या साइंटिफ़िक आधार नहीं है, वहीं पुरुषों के मन में यह बात इतने गहरे पैठ बना चुकी है कि ऐसा सोचे बैठे पुरुषों को समझाना असंभव नहीं है तो बहुत ज़्यादा मुश्क़िल तो है ही!डॉक्टर्स और मेडिकल एक्स्पर्ट्स के द्वारा इस बारे में समझाई गई बातें, दिया गया आश्वासन सभी इस मामले में निरर्थक साबित होते हैं. इंडियन जर्नल ऑफ़ साइकियाट्री में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार,‘‘इस स्थिति (धात सिंड्रोम) की समझ बढ़ाने के मामले में आधुनिक चिकित्सा की कोशिशें इससे ग्रस्त लोगों को समझाने में विफल रहती हैं.’’
इसे महसूस कर रहे पुरुष वास्तविकता के बारे में बनाए गए अपने ही भरोसे और सोच के भंवर में फंस जाते हैं, जिसकी उत्पत्ति का कारण धार्मिक भी हो सकता है और सांस्कृतिक भी.
इसे यूं समझा जा सकता है
मानव मन के इस तरह के अपने ही विचारों के भंवर में फंस जाने को डेविड बोहम ने सबसे अच्छी तरह समझाया है. अब आप सोचेंगे कि वे साइकियाट्रिस्ट थे, पर नहीं; तो ज़रूर डॉक्टर होंगे, पर बिल्कुल नहीं. बोहम एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी यानी थ्योरिटिकल फ़िज़िसिस्ट थे.उन्होंने लिखा है: वास्तविकता वह है, जिसे हम सही समझते हैं. हम उसे सही समझते हैं, जिस पर हमें विश्वास हो. हम उस पर विश्वास करते हैं, जो हमारी अनुभूति है. हमारी अनुभूति इस बात पर निर्भर करती है कि हम क्या देखना चाह रहे हैं. हम क्या देखना चाह रहे हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं. हम क्या सोचते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या अनुभूत करते हैं. हम क्या अनुभूत करते हैं यह बताता है कि हम किस पर विश्वास करते हैं. हम किस पर विश्वास करते हैं यह बताता है कि हम किसे सही समझते हैं. हम जिसे सही समझते हैं, वही हमारी वास्तविकता है.’’ (इसे कई कई बार पढ़ा जाना चाहिए, ताकि इस बात को समझा जा सके.)
क्या है धात सिंड्रोम
एक तरह से देखा जाए तो धात सिंड्रोम ओननिज़्म (अपूर्ण मैथुन) और मैस्टर्बेशन (हस्तमैथुन) के आसपास मौजूद उन सांस्कृतिक और धार्मिक चिंताओं जैसा ही है, जो पश्चिमी देशों में 19 वीं सदी के लोगों में देखी गई थी. जैसे-जैसे पश्चिमी देश कम धार्मिक और ज़्यादा धनी होते चले गए यह चिंता वहां अपनेआप ख़त्म भी हो गई.लेकिन भारत में आज भी कई झोलाछाप और कई ‘क्वालिफ़ाइड’ डॉक्टर्स भी केवल पैसे कमाने के लालच के चलते वीर्य स्खलन को ठीक करने के बारे में विज्ञापन और इसके लिए दवाई देते हैं. उनकी यह रणनीति कारगर इसलिए रहती है, क्योंकि वीर्य की हानि के आसपास हमारी कुछ सांस्कृतिक मान्यताएं मौजूद हैं.
ब्रह्मचर्य की संकल्पना के अनुसार, एक बूंद वीर्य (सीमन) बनाने में 40 बूंद ख़ून का इस्तेमाल होता है यानी सीमन का व्यर्थ होना शारीरिक और मानसिक कमज़ोरी का कारण है. और चूंकि झोलाछाप डॉक्टर्स और ‘योग्य’ डॉक्टर्स भी इसका ‘इलाज’ करने के लिए दवाई देते हैं तो लोगों को लगता है कि यह एक वास्तविक समस्या है.
एक्स्पर्ट की सलाह
तो इस भंवर से निकलने का आख़िर क्या तरीक़ा है? हमने यह सवाल डॉक्टर नारायण रेड्डी से पूछा, जो विश्व-विख्यात सेक्शुअल हेल्थ स्पेशलिस्ट और वीवॉक्स के विशेषज्ञ हैं.
डॉक्टर नारायण रेड्डी कहते हैं,‘‘हो सकता है कि भारतीय पुरुषों की इस मिथकीय सोच को बदलने में और 100 वर्ष लग जाएं. मैं धातु रोग के बारे में पिछले 40 वर्षों से पुरुषों को समझा रहा हूं कि इसमें डरने या तनाव लेने जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन आज भी मेरे पास सबसे ज़्यादा पूछताछ इसी विषय पर की जाती है.’’वे आगे कहते हैं,‘‘अधिकतर लोग अपने आप मान लेते हैं कि जो पत्र-पत्रिकाओं में या मेडिकल साहित्य में लिखा हुआ है, वह उनपर लागू नहीं होता है. जब भी सीमन बाहर निकलता है तो लोगों को इस बात का डर सताता है कि जैसे उन्होंने कोई बहुमूल्य चीज़ खो दी है.
‘‘आयुर्वेद के मुताबिक़, धातु शब्द का अर्थ केवल वीर्य ही नहीं, बल्कि शरीर से निकले हर तरह के स्राव से है. और आयुर्वेद में धातु की हानि होने को शरीर के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. यदि इस तरह तुलना की जाए तो सड़क पर थूकनेवाले भारतीय सबसे कमज़ोर होने चाहिए, क्योंकि लार भी तो वीर्य की तरह शरीर से ही स्रवित होती है. समस्या ये है कि लोग इस मामले में वीर्य को अनुचित महत्व देने लगे हैं. और यह सोच सदियों से चली आ रही अवैज्ञानिक विचारधारा की उपज है. आज भी कई पढ़े-लिखे माता-पिता अपने बेटों के लेकर मेरे पास आते हैं, ताकि मैं उनके वीर्य की हानि यानी कि सीमन लॉस का उपचार करूं.’’फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, Johnny-escobar.tumblr.com