लंबे समय तक नकारने के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया और अब सरकार ने भी माना है कि कोविड की दूसरी लहर पहले की तुलना में कहीं अधिक ख़तरनाक है. हालांकि जब सवाल जवाबदेही तय करने का उठता है तो मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा आम जनता की लापरवाहियों की ओर उंगली उठा दिया जाता रहा है. मद्रास हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान इसके लिए चुनाव आयोग को सीधा ज़िम्मेदार ठहराया है.
सितंबर 2020 के बाद जब देश में कोरोना की पहली लहर कमज़ोर पड़ रही थी. चीज़ें सामान्य होने की ओर लौट रही थीं, तब देश के राजनीतिक नेतृत्व ने बढ़-चढ़कर इसका श्रेय लेने की कोशिश की. यहां तक कि विशेषज्ञों द्वारा चेताने के बावजूद बिहार जैसे बड़े राज्य में चुनाव भी कराए गए. उसके बाद बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पॉन्डिचेरी में चुनावों की घोषणा की गई. देश में दो वैक्सीन्स के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई थी. उसके बाद शुरू हुए टीकाकरण अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बताकर अपनी पीठ भी थपथपाई गई. दिन-ब-दिन कमज़ोर पड़ रहे कोरोना ने हमें विश्वगुरु के पहले वैक्सीन गुरु बनने का मौक़ा दिया. केंद्र सरकार की वैक्सीन डिप्लोमेसी के तहत कई देशों को वैक्सीन भेजे गए. जिसपर अभिमान भी जताया गया. पर…
चुनावों के साथ कोरोना की वापसी
फ़रवरी के आख़िरी दिनों में जब पांचों राज्यों में अलग-अलग राजनैतिक दल चुनाव प्रचार में व्यस्त थे, तब दबे पांव कोरोना ने वापसी कर ली. अलग-अलग राज्यों में जिस तरह चुनावी रैलियों के दौरान कोविड प्रोटोकॉल्स की धज्जियां उड़ाई गईं, वह नैशनल टीवी पर हम सभी ने देखा. देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर सवाल उठे तो न्यूज़ चैनलों ने कोरोना की वापसी के लिए जनता को ज़िम्मेदार ठहरा दिया. बंगाल, केरल, तमिलनाडु और असम जैसे सघन जनसंख्या घनत्व वाले राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान कोविड प्रोटोकॉल्स का माखौल उड़ाया गया. अब हालात यह हैं कि बंगाल में चुनाव अभी ख़त्म तक नहीं हुए हैं, देश में कोरोना के रेकॉर्ड केसेस मिल रहे हैं. जिन राज्यों में चुनावी रैलियां हुई हैं, वहीं स्थिति तेज़ी से बिगड़ी है. हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन भी कुछ इसी तरह का पॉलिसी पैरालिसिस वाला निर्णय रहा, जिसपर चर्चा फिर कभी. आज बात चुनाव आयोग को मद्रास हाई कोर्ट द्वारा सुनाई गई खरी-खरी की.
‘कोविड की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग है ज़िम्मेदार. अधिकारियों पर मर्डर का मुक़दमा चलना चाहिए’: मद्रास हाई कोर्ट
मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को खरी-खरी सुनाते हुए वह बात कह दी, जो देश के ज़्यादातर लोगों को परेशान कर रही थी. कोरोना जैसी अभूतपूर्व महामारी के दौरान संवैधानिक सीमाओं की दुहाई देकर चुनाव कराने का तर्क अगर मान भी लें तो चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न राजनैतिक दलों ने जिस तरह खुलेआम महामारी के प्रसार जैसा माहौल बनाया था, वह दिल दुखाने जैसा ही था. मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को महामारी के दौर में राजनैतिक रैलियां करने और कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन न कराने के लिए कड़ी फटकार लगाई है. मद्रास हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस संजीब बैनर्जी ने चुनाव आयोग की पैरवी कर रहे वक़ीलों से कहा,‘‘आपका संस्थान कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए एकमात्र ज़िम्मेदार है.’’ उन्होंने आगे कहा,‘‘आपके अधिकारियों पर संभवत: मर्डर का मुक़दमा चलना चाहिए.’’ चीफ़ जस्टिस ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि आयोग कोविड प्रोटोकॉल्स को फ़ॉलो कराने में नाकाम रहा. फ़ेसमास्क पहनना, सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जैसे नियमों की खुले आम धज्जियां उड़ाई गईं. उन्होंने चुनाव आयोग के अधिवक्ताओं से पूछा,‘‘क्या जब चुनावी रैलियां चल रही थीं, तब आप लोग किसी दूसरे ग्रह पर थे?’’
ख़ैर, हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को सख़्ती से कहा है कि अगर काउंटिंग के दिन कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन करने से जुड़ी योजना के बारे में कोर्ट को नहीं बताया गया तो अदालत 2 मई को होनेवाली काउंटिंग पर रोक लगा सकती है. बक़ौल चीफ़ जस्टिस,‘‘जनता की सेहत सर्वोपरि है और यह देखना दुखद है कि संवैधानिक संस्थानों को इस बात की याद दिलानी पड़ती है. जब लोग ज़िंदा बचेंगे, वे लोकतंत्र के तहत प्राप्त अपने संवैधानिक अधिकारों का लाभ तब उठा पाएंगे. स्थिति ऐसी हो गई है कि सब काम छोड़कर पहले लोगों की जान बचानी ज़रूरी है.’’
क्या यह चेतावनी पहले नहीं आ जानी चाहिए थी?
मद्रास हाई कोर्ट द्वारा तमिलनाडु चुनाव आयोग और राष्ट्रीय चुनाव आयोग को लगाई गई फटकार स्वागत योग्य है, पर सवाल यह उठता है कि क्या कोर्ट को कोरोना के कहर के बीच जारी चुनाव और महाकुंभ के आयोजन पर चुनाव आयोग समेत, केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों पर पहले ही नहीं चेताना चाहिए था? क्या चुनाव आयोग को अब भी उत्तर प्रदेश जैसे सघन बसाहट वाले राज्य में जारी पंचायत चुनावों को आगे के लिए स्थगित नहीं कर देना चाहिए? हाई कोर्ट की कही बात के सार को ही लें तो, लोकतंत्र तो तभी बचेगा ना, जब जनता बचेगी. पर चुनाव आयोग द्वारा जिस तरह लोगों की जान को जोखिम में डाला गया वह निंदनीय है. उतना ही निंदनीय देश के राजनैतिक नेतृत्व का बर्ताव भी रहा है.