आजकल बच्चे सामान्य और पारंपरिक खाना खाने से बचते हैं, जबकि बतौर पैरेंट्स हमें पता है कि पारंपरिक खानपान ही उन्हें सेहतमंद रखेगा. और बात जब भोजन में सब्ज़ियों की आए तो अधिकतर पैरेंट्स जानते हैं कि बच्चे सब्ज़ियां खाना पसंद नहीं करते. ऐसे में आप उन्हें सब्ज़ियां कैसे खिलाएं? आपके इस सवाल का जवाब इस आलेख में मौजूद है.
क्या आपको किसी ने यह बात बताई है कि शिशु जैसे-जैसे बड़ा होता है, वह अपनी पांचों इंद्रियों की मदद से दुनिया को समझता है. उदाहरण के लिए एक तीन महीने के बच्चे को यदि आप एक खिलौना दें, तो पहले वे उसे देखेगा, फिर छुएगा, फिर सीधे मुंह तक ले जाएगा, फिर उसे सूंघेगा और अंत में उसे हिलाकर उसकी आवाज़ सुनेगा. हो सकता है कि उसका यह करने का क्रम अलग हो, लेकिन वह अपनी पांचों इंद्रियों का इस्तेमाल ज़रूर करेगा. यह बताने का मक़सद यह भी है कि यह बात बच्चे को सब्ज़ी खिलाने में आपके काम आएगी.
इससे पहले कि बच्चों को सब्ज़ी कैसे खिलाएं यह बताऊं, मैं आपको एक ऐसा अनुभव बता रही हूं, जो आपको इस बात का बुनियादी जवाब दे देगा. जब मेरा बेटा छोटा यानी केवल तीन-चार महीने का था और उसे पहली बार सिरप के रूप में दवाई पिलानी थी, तब मैंने उस दवाई को चखकर देखा. शिशुओं के लिए बनी दवाइयां स्वाद में मीठी होती हैं. हालांकि कुछ महीने का बच्चा मेरी बातों को कितना समझ सकता होगा ये तो नहीं पता, लेकिन मां के एक्स्प्रेशन्स बच्चे कुछ महीने में ही पकड़ लेते हैं यह बात हर मां अच्छी तरह जानती है. तो उसकी दवाई को चखते ही मैंने कहा- अरे वाह, ये तो बड़ी मीठी-मीठी है, अच्छी-अच्छी है और बड़ा संतुष्ट सा चेहरा बनाते हुए उसे सिरप पिला दिया. मुझे तब और भी अच्छा लगा, जब सिरप पीते ही उसने मुस्कान बिखेर दी. हर बार दवाई पिलाते हुए यह क्रम चलता रहा और मेरे बेटे ने कभी दवाई पीने में आनाकानी नहीं की, जबकि मेरी अन्य सहेलियां इस बात को लेकर परेशान रहा करती थीं कि हमारा बच्चा दवा नहीं पीता.
इन दो बुनियादी बातों के बाद अब जानिए कि आप अपने बच्चों को सब्ज़ी किस तरह खिला सकते हैं:
बचपन से करें शुरुआत: जब बच्चा छह-आठ माह का हो, तब आप उसे दाल का पानी दे सकते हैं. इसके लिए जब दाल बनाएं तो उसमें पालक, गाजर जैसी सब्ज़ियों को उसमें डालकर कुकर में पकाएं और सब्ज़ियों के स्टॉक वाला यह दाल का पानी बच्चे को पीने दें. आप उन्हें सब्ज़ियों का सूप भी दे सकते हैं, पर ध्यान रहे कि यह अच्छी तरह पका हुआ और अधिक पानी वाला सूप हो. इस तरह उन्हें बचपन से ही सब्ज़ी का स्वाद पता चल जाएगा.
उदाहरण प्रस्तुत करें: नौ महीने से सालभर के बीच जब उन्हें खाना खिलाने की शुरुआत करें तो उनके सामने पहले वह खाना ख़ुद चखें और तारीफ़ करते हुए बताएं कि यह खाना कितना स्वादिष्ट है. आप उपमा, दलिया, खिचड़ी या दाल-चावल, जो भी बनाएं उसमें गोभी, गाजर, मटर, पालक, बींस जैसी सब्ज़ियां डालकर अच्छी तरह मैश करके उन्हें दें. उन्हें समझ में आए या न आए, पर आप भोजन खिलाते समय उन्हें यह कहते रहें कि खाना कितना टेस्टी है. बच्चों को सब्ज़ियां खिलाते समय उनके साथ बैठकर ख़ुद भी सब्ज़ियां खाएं और उनके गुणों व स्वाद की प्रशंसा करते जाएं.
टेक्स्चर की समस्या से उबरें: दरअसल बड़े होते बच्चे सब्ज़ी खाने में आनाकानी इसलिए करते हैं कि उन्हें सब्ज़ियों का स्वाद तो पसंद आता है, लेकिन टेक्स्चर बिल्कुल नहीं. यहां आपके लिए काम के कुछ व्यजंन बता रही हूं, जिन्हें बनाने का तरीक़ा उनके नाम से ही स्पष्ट है: पालक इडली, मटर इडली, गाजर इडली, बीटरूट इडली. इसी तरह इन सभी सब्ज़ियों को चीले या परांठे के रूप में भी बनाया जा सकता है. इसके लिए इन सब्ज़ियों को ब्लांच कर के पीस लें और इडली व चीले के बैटर में मिलाएं या फिर आटे में गूंध लें.
रंगीला हो खाना: बच्चों को रंगीले व्यंजन पसंद आते हैं तो आप रंग देने के लिए सब्ज़ियों का इस्तेमाल करें, जैसे- बीटरूट पुलाव, पालक पुलाव, टोमैटो पुलाव. यही नहीं आप पास्ता को भी इन सब्ज़ियों के रंग में बना सकती हैं. इसके लिए भी आपको इन सब्ज़ियों को ब्लांच करके पीस लेना होगा, ताकि टेक्स्चर वाली समस्या न आ खड़ी हो. आप चाहें तो पिज़्ज़ा बेस में इन सब्ज़ियों का इस्तेमाल कर घर पर ही गेहूं के आटे से पिज़्ज़ा बना सकते हैं.
बारीक़ टुकड़ों में काटें: यदि सब्ज़ी को ब्लांच कर के पीसना आपको कठिन लगता है तो सब्ज़ियों को बारीक़ टुकड़ों में काटकर भी आप बच्चों को खिला सकते हैं. इनसे जो रंग-बिरंगा व्यजंन तैयार होगा, वह बच्चों को देखने में अच्छा लगेगा तो वे इसे ज़रूर खाएंगे. बारीक़ टुकड़ों में कटी सब्ज़ी को स्टर फ्राय करके आलू या पनीर के बेस में मिलाएं और स्टफ़्ड परांठे, सैंडविच, समोसे या कचौरी बना लें. इस तरह कटी हुई सब्ज़ी को सीधे आटे में गूंधकर भी परांठे बनाए जा सकते हैं या फिर चीले, दोसे या इडली के बैटर में डालकर उन्हें तैयार किया जा सकता है.
भूख लगने के बाद दें खाना: अक्सर मांओं को एहसास होता है कि अब तक बच्चे को भूख लग आई होगी. हमारी सलाह है कि जब आपको लगे कि बच्चे को भूख लगने का समय हो गया है, उसके दस मिनट बाद आप उसे भोजन दें (यहां मैं बच्चे को भूख से रुलाने बिल्कुल नहीं कह रही हूं!). होता यह है कि जब बच्चे को तेज़ भूख लग रही होगी तो आप जो भी उसके सामने परोसेंगी या उसे खिलाएंगी वह ज़रूर खा लेगा, क्योंकि भूख लगी हो तो हम वह भी खा लेते हैं, जो हमें पसंद नहीं होता. यह एक बड़ा प्रैक्टिकल टिप है, जिसे हर मां को एक बार अपनाना ज़रूर चाहिए, क्योंकि अक्सर हम बच्चे का ख़्याल रखते समय उसे भूखा नहीं देख सकते और भूख लगने से पहले ही उसे अगला भोजन खिला देते हैं. यह भी एक वजह है कि बच्चे खाने में आनाकानी करते हैं, लेकिन जब उन्हें सचमुच भूख लगी होती है तो वे भोजन पूरा ख़त्म कर देते हैं.
फ़ोटो: फ्रीपिक