डिज़्नी हॉटस्टार पर पिछले हफ़्ते रिलीज़ हुई सारा अली ख़ान, धनुष और अक्षय कुमार की मुख्य भूमिकाओं वाली चर्चित फ़िल्म अतरंगी रे कितनी मनोरंजक है? क्या धनुष, सारा और अक्षय की तिकड़ी पर्दे पर कमाल कर पाई? छोटी-सी समीक्षा पढ़िए, ख़ुद जान जाइए.
फ़िल्म: अतरंगी रे
ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म: डिज़्नी हॉटस्टार
सितारे: अक्षय कुमार, सारा अली ख़ान, धनुष, सीमा बिस्वास, आशीष वर्मा और अन्य.
डायरेक्टर: आनंद एल राय
रन टाइम: 138 मिनट
रेटिंग: 2/5 स्टार
कुछ फ़िल्मों का स्टारकास्ट इतना दमदार होता है कि हम किसी भी क़ीमत पर उसे देखना चाहते हैं, ख़ासकर जब रोमैंटिक-कॉमेडी के नाम से प्रमोट की जा रही फ़िल्म में अक्षय कुमार और धनुष जैसे धुरंधर अभिनेता हों. उनका साथ देने के लिए सारा अली ख़ान जैसी अच्छी कही जानेवाली अभिनेत्री हों. और यह रांझणा और तनु वेड्स मनु के क़ाबिल डायरेक्टर आनंद एल राय की फ़िल्म हो. लेकिन हम यहां एक वैधानिक चेतावनी दे रहे हैं, जिसे हमने इस फ़िल्म को देखते हुए महसूस किया. ‘कवर देखकर किताब के अच्छी होने, कलाकार देखकर फ़िल्म के एंटरटेनिंग होने और कुक देखकर व्यंजन के स्वादिष्ट होने की उम्मीद हमारी सबसे हसीन फ़ैंटसी साबित हो सकती है!’
समीक्षा तो ऊपर ही समाप्त हो गई, पर हम कुछ रस्मों का निर्वाह करना चाहते हैं. मसलन-कहानी और ऐक्टिंग के बारे में बात करने की रस्मअदायगी कर लेते हैं. तो बिहार के सिवान ज़िले की रिंकू सूर्यवंशी (सारा अली ख़ान) बिना मां-बाप की लड़की है, जो अपने ननिहाल में रहती है. मस्तमौला और मुंहफट रिंकू कई बार घर से भाग चुकी है. हर बार घरवाले उसे पकड़ लाते हैं. वेंकटेश विश्वनाथ अय्यर उर्फ़ विशु (धनुष) एक मेडिकल स्टूडेंट है, जो दिल्ली के किसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है. अपने दोस्त मधुसुदन के साथ वह एक मेडिकल कैम्प के सिलसिले में सिवान आया है. इस बार भी रिंकू ने घर से भागने की कोशिश की और पकड़ी गई. उसके घर वाले किसी तरह उसकी शादी करके उससे छुटकारा पाना चाहते हैं. बिहार में प्रचलित पकड़ौवा विवाह के तहत वे विशु को उठा लाते हैं. नशे की हालत में रिंकू और विशु दोनों की शादी करा देते हैं. पर यहां समस्या यह है कि विशु की अपनी मंगेतर है, जिसके साथ उसकी जल्द ही शादी होनेवाली है और रिंकू सज्जाद अली ख़ान (अक्षय कुमार) नामक एक जादूगर से बेइंतहा मोहब्बत करती है. विशु, रिंकू की मदद करना चाहता है. अफ्रीका गए उसे प्रेमी सज्जाद के लौटने तक उसका ख़्याल रखने का वादा करता है. रिंकू को भी विशु अच्छा आदमी लगता है, वह उसकी सगाई में भाग लेने के लिए तमिलनाडु जाती है. पर वहां सबकुछ ठीक नहीं होता. विशु की सगाई टूट जाती है. वहीं रिंकू धीरे-धीरे विशु की ओर आकर्षित होती है. वह विशु और सज्जाद दोनों से प्यार करने लगती है. बतौर दर्शक हम सोचने लगते हैं, अब क्या अंजाम होगा इस अजीबोग़रीब लव-स्टोरी का?
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं, अच्छे कलाकारों और डायरेक्टर की इस फ़िल्म से काफ़ी उम्मीदें थी, पर हमारे सामने एक अधपकी फ़िल्म आती है, जो अति नाटकीय घटनाक्रमों, हंसाने-रुलानवाले सीन्स का सहारा लेकर किसी तरह कहानी को अंजाम तक पहुंचा देती है. फ़िल्म का सेंट्रल ट्विस्ट शानदार है, पर ट्रीटमेंट इतना बोझिल और बोरियत भरा है कि उस ट्विस्ट का कोई मतलब नहीं रह जाता. सीज़ोफ्रेनिया और बाइपोलार डिस्ऑर्डर पर एक शानदार फ़िल्म बनाने का मसाला डायरेक्टर आनंद एल राय के पास था, पर वे एक लचर, बोरिंग और झेलाऊ फ़िल्म पेश करते हैं. एआर रहमान द्वारा दिया गया म्यूज़िक सुनने में अच्छा है, पर फ़िल्म में उसका सही से इस्तेमाल नहीं हो पाया है.
अक्षय, सारा और धनुष इस फ़िल्म को भूल जाना चाहेंगे. सबसे ज़्यादा निराश करते हैं अक्षय और सारा. अक्षय कुमार बेहद थके हुए से लगते हैं. पर्दे पर उनकी मौजूदगी जिस जोश और ह्यूमर की गैरेंटी देती है, वह नदारद है. सारा अली ख़ान बिंदास बिहारी गर्ल की भूमिका में फ़िट होने के लिए बेहद लाउड हो जाती हैं. उनकी ऐक्टिंग, ओवरऐक्टिंग लगने लगती है. फ़िल्म में अगर किसी ने अपनी अभिनय प्रतिभा के साथ न्याय किया है तो वह है धनुष. वे हर सीन में कन्विंसिंग लगे हैं, पर हर हीरो को धांसू दिखने के लिए फ़िल्म में उसकी टक्कर का कोई अभिनेता और होना चाहिए. धनुष की पहली हिंदी फ़िल्म रांझणा में यह काम किया था मोहम्मद जीशान अयूब ने, पर अतरंगी रे में वे अकेले पड़ जाते हैं.
कुल मिलाकर अतरंगी रे संभावनाओं से भरे प्लॉट के बावजूद ख़राब स्क्रीन प्ले, मुख्य समस्या और उसके समाधान की डीटेलिंग के न होने, निर्देशक के इमैजिनेशन की कमी, चलताऊ अभिनय के चलते बिखरी-बिखरी, बेढंगी और बेरंगी फ़िल्म लगती है. अब, चलते-चलते ‘आप अगर फलां के फ़ैन हैं तो फ़िल्म देख सकते हैं…’ जैसी घिसी-पिटी लाइन लिखकर हम पुराने साल की आपकी आख़िरी शाम नहीं ख़राब करना चाहते हैं.