आज बात उस व्यंजन की जो ईरान से आया और भारतीयों ने उसे पूरे दिल से अपनाया. जी हां, मैं धनसाक की ही बात कर रही हूं. आइए जानें कैसे यह व्यंजन पहुंचा भारत में और फिर कैसे पूरी तरह हिंदोस्तानी हो गया…
यह बात नौवीं सदी के आसपास की है. ईरान देश में एक धर्म हुआ करता था-फारसी/पारसी धर्म. यह वहां का राजधर्म था और ईरान के सभी लोग इसी धर्म को मानते थे. इसी वक़्त में मुस्लिम धर्म ने वहां अपने पैर पसारे और लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया गया. जिन पारसियों ने धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया वो भारत के गुजरात में शरण लेने चले आए. अब असली क़िस्सा यहां से शुरू होता है… गुजरात के छोटे से राज्य संचोर में इन लोगों ने शरण लेनी चाही और वहां के राजा को पैगाम भेजा. कहा जाता है कि राजा ने पैगाम के जवाब में दूध का भरा ग्लास इन लोगों तक पहुंचा दिया, जिसका मतलब ये था कि हमारी भावनाएं तो अच्छी हैं, पर हमारे पास नए लोगों के लिए जगह नहीं है (शायद इस नए लोगो का सम्बन्ध नई संस्कृति से भी था). जब ये दूध का गिलास शरणार्थियों के पास पहुंचा तो उन्होंने इस दूध में शक्कर मिलाकर वापस राजा के पास भेज दिया. जिसका अर्थ था-हम आपकी संस्कृति में पूरी तरह घुल मिल जाएंगे. राजा को ये बात बड़ी अच्छी लगी और उसने पारसियों को अपने राज्य में शरण दे दी .
कितना सच है न! ये लोग पूरी तरह भारत की संस्कृति में रच बस गए, यहां के खानपान के तौर-तरीक़ों से लेकर यहां के पहनावे तक को भी पारसियों ने दिल से अपनाया. अपने व्यंजनों में यहां के मसालों का फ़्लेवर जोड़ लिया. पारसियों ने मुख्य रूप से लहसुन,अदरक, दालचीनी, लौंग जैसे मसालों को अपने व्यंजनों में जगह दी, जिसके कारण भोजन के स्वाद और ख़ुशबू में निखार आता है, लेकिन वो तीखा नहीं होता. इसके साथ ही पारसियों ने गुजरात की खटास और मिठास को निम्बू और गुड़ के साथ नहीं, बल्कि इमली के खट्टेपन और काजू की मिठास के साथ इस्तेमाल करना शुरू किया.
आज पारसियों की इतनी बातें इसलिए, क्योंकि हमारा आज का व्यंजन ही पारसियों वाला ही है-धनसाक. मूल रूप से मीट के साथ बनाए जाने वाला ये व्यंजन शाकाहारी रूप में भी बनाया जाता हैऔर ख़ासा पसंद किया जाता है. हां, जिन लोगों ने इसका स्वाद नहीं चखा उन्हें बता दूं कि ये बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन है, इसमें मसालों का अद्भुत संगम होता है और स्वाद तो इसका बेमिसाल है ही!
धनसाक अलग-अलग तरह की दालों में लौकी, कद्दू, बैंगन, प्याज और मेथी जैसी सब्ज़ियों के साथ मिलाकर बनाया जाता है और फिर उसमे अदरक, लहसुन, लौंग, साबुत लाल मिर्च, धनिया, जीरा, हरी मिर्च के पेस्ट का तड़का दिया जाता है. कहते हैं कि मसालों की ज़रा-सी फेर-बदल से धनसाक का स्वाद बदल जाता है और मसालों की कमीबेशी से इसका स्वाद बिगड़ भी जाता है.
भारत में धनसाक का इतिहास
वैसे तो आप क़िस्से से समझ ही गए होंगे कि पारसी लोगों ने इस व्यंजन को ईजाद किया और माना जाता है कि पारसियों के भारत आने के बाद ही इसे इस रूप में बनाया गया, जिस रूप में यह आज प्रचलित है. और वेज धनसाक जिसमें मीट नहीं डाला जाता वो तो भारत में ही ईजाद किया गया है.
यह एकदम सूप की तरह बनाया जाता है और इसे मुख्य रूप से चावल के साथ खाया जाता है. इसके साथ प्याज़-टमाटर का कचूमर सलाद भी खाया जाता है.
इसे कहां खाया जा सकता है?
अब क्योंकि पारसियों की कुल जनसंख्या ही एक लाख के लगभग है, जिनमें से अधिकतर भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी लगभग सत्तर प्रतिशत पारसी मुम्बई में रहते हैं और बाक़ी के गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ अन्य स्थानों पर रहते हैं तो या तो आपको धनसाक मुंबई के किसी पारसी होटल में खाने मिल सकता है. दूसरा रास्ता है किसी पारसी परिवार के घर में आप इसे खा सकें. एक तीसरा रास्ता भी है कि आप गूगल पर इसकी रेसिपी देखे और ट्राई करते रहें जैसा कि हम कर रहे हैं और जो स्वाद आपकी जीभ पर चढ़ जाए उसे ही अच्छा मानकर खाना शुरू कर दें.
धनसाक के हमारे घर में प्रवेश का क़िस्सा भी कम मज़ेदार नहीं! एक दिन मेरे पति ने ऑफ़िस से आकर बताया कि उनके एक गुजराती दोस्त आज धनसाक लाए थे, जो खाने में बहुत अच्छा लगा. मैंने पहले कभी इसके बारे में सुना नहीं था तो इन्टरनेट की शरण ली और कोई तीन-चार बार अलग-अलग तरह की रेसिपी ट्राई करने के बाद आख़िरकार वो दिन भी आया, जब इसे खा कर मुंह से ‘वाह’ निकला. लेकिन फिर भी हर बार बनाते वक़्त इसके स्वाद में अंतर आ जाता है.
पौष्टिक व्यंजन है
इसकी पौष्टिकता की बात करें तो इस एक ही व्यजंन में कई तरह की दालें और सब्ज़ियां हैं, इन सभी का पोषण शरीर को एकसाथ मिलता है. आपके घर में अगर छोटा बच्चा है तो उसके लिए भी सम्पूर्ण आहार है. आप भी घर पर धनसाक बनाइए और खाइए. और यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई अनुभव या क़िस्सा हो तो हमें लिख भेजिएगा इस मेल आई डी पर: [email protected]
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