इंदौर शहर आने के पहले ही एक ख़ुशबू हवा में तैरने लगती है और बस आप स्टेशन पर उतरे नहीं कि बाहर निकलते ही बड़े से कड़ाहों में से आ रही ये ख़ुशबू आपको अपनी तरफ़ खींचने लगती है. कड़ाहे के कोने पर घरचने (खुरपा, खुर्ची) के मारे जाने की आवाज़ें आपका ध्यान अपनी तरफ़ खींचने लगती हैं. हां, यहां बात इंदौर की और इन्दौरी पोहे की हो रही है.
जैसे ही पोहे की बात होती है इंदौर का ज़िक्र आता है. कहते हैं कि इन्दौरी लोग पोहे के पीछे पागल हैं, पर ये साफ़ झूठ है, पक्का झूठ! इन्दौरी लोग पोहे के लिए बिल्कुल पागल नहीं हैं, इन्दौरी लोग तो खाने के पीछे पागल हैं… 🙂
जब भी कोई इन्दौरी पोहे के बारे में लिखता है तो इंदौर के लोगों का वर्णन ऐसे किया जाता है, जैसे इन्दौरी बस पोहे पर ही ज़िंदा हैं, पर ये सच नहीं है. बड़ा सच यह है कि इंदौर में सबसे बड़ा धर्म है-खाना. ख़ुशी में भी खाना, ग़म में भी खाना. कभी आपको इंदौर शहर की सैर भी कराऊंगी, पर आज बस पोहे की बात करेंगे. सिर्फ़ इन्दौरी पोहा नहीं, हर तरह का पोहा. हालांकि हमारे घर में तो इन्दौरी पोहा ही बनता है, लेकिन पोहा तो पूरे देश भर में अलग-अलग ढंग से बनाया जाता है. हां, ये बात अलग है कि इन्दौरी पोहा सबसे ज़्यादा फ़ेमस है.
मुझे बाज़ारों में मिलने वाला पोहा कभी अच्छा नहीं लगा, चाहे कितनी भी अच्छी दुकान का बना पोहा हो. इसके मेरी पसंद में जगह नहीं बना पाने के कई कारण हो सकते हैं, पर मेरी नज़र में एक ही कारण है और वह ये कि ज़्यादातर पोहे वाले तीखा पोहा बनाते हैं. दूसरा कारण ये है कि बाज़ारों में पोहा भाप में पकाया जाता (पोहे में बघार मिलाकर उसे तपेली की भाप पर ढंककर रख दिया जाता है ),जबकि घरों में इसे बघारकर उसी कढ़ाई या पैन में भाप में पकाया जाता (दोनों में अंतर होता है), जिसके कारण पोहे के स्वाद में अंतर आ जाता है. हालांकि पोहे के मुरीद मुझे उलटी गंगा बहाने वाली कह सकते हैं, पर मुझे तपेली की भाप पर रखा पोहा कम ही पसंद आता है.
ये जान लीजिए कि इंदौर में प्रवासी है पोहा
इन्दौरी लोग शायद यह सुनकर गश खाकर गिर जाएंगे कि पोहा, इंदौर को महाराष्ट्र की देन है, लेकिन उनके गश खाने के बावजूद यही सच है कि पोहे को इंदौर में महाराष्ट्र से लाया गया था. इसका बड़ा कारण ये भी है कि इंदौर होलकरों की राजधानी रही. स्वतंत्रता के दो-तीन साल बाद इंदौर में पहली पोहे की दुकान खुली थी, जो अब तक कायम है और इस दुकान का पोहा इन्दौरी लोगों को ऐसा पसंद आया कि अब जब कभी आप इंदौर जाएंगे तो हर १०० मीटर पर आपको पोहे की दुकान, टपरी, ठेला और उसपर होने वाली अड्डेबाज़ी दिख जाएगी.
ऐतिहासिक रूप से ये प्रमाण मिलते हैं कि महू कैंट (इंदौर के पास महू एक टाउन है, जहां अंग्रेज़ों के समय से ही सेना की बड़ी छावनियां रही हैं) के सैनिक जब युद्ध लड़ने जाते थे तो पोहे को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे. अंग्रेज़ ये मानते रहे थे कि पोहा अपने आप में सम्पूर्ण भोजन है .
वैसे कथाओं के अनुसार सुदामा जी जब कृष्णा जी से मिलने गए तो अपने साथ पोहे ले गए थे, जिन्हें उस समय के संस्कृत में लिखे दस्तावेजों में चिउड़ा कहा गया है.
पोहा महाराष्ट्र में कैसे आया इसके कोई स्पष्ट दस्तावेज़ नहीं मिलते और अब तो महारष्ट के पाव ने महाराष्ट्र में ऐसे पांव जमाए हैं कि मुंबई के बाज़ारों में पोहे का ख़ास चलन भी नहीं रह गया है.
क़िस्सा पोहे का: पोहे से जुड़ा एक छोटा-सा क़िस्सा बताती हूं. यहां हम ग्रोसरी स्टोर में जाते हैं तो हमारी लिस्ट में पोहा हमेशा रहता ही है. एक दिन जब मैं वहां से पोहे का पैकेट उठा रही थी तो एक आंटी मेरे पास आईं और उन्होंने पूछा,‘‘क्या आप बता पाएंगी कि इसको बनाते कैसे हैं?’’ आह! अनजाने देश में कोई आपसे वो चीज़ बनाने की विधि पूछ ले, जो आप बचपन से खाते आए हैं और सालों से बनाते भी रहे हैं तो अन्दर से शेफ़ वाली फ़ीलिंग आने लगती है! तो बस, साहब हम लग पड़े उन्हें विधि बताने. अब जो-जो मसाले मैं बताऊं, मुझे उसकी काफ़ी डीटेल्स भी उन्हें देनी पड़ी कि ये ऐसा दिखता है, इसे गरम तेल में कब डालना है, कौन-सा मसाला सीधे तेल में डालना है और कौन-सा पोहे में मिलाना है. अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे भला ऐसी कौन-सी आंटी मिल गईं? तो बता दूं कि वो आंटी पाकिस्तान की थीं. उनके यहां मसाले वही होते होंगे, पर शायद कुछ के नाम अलग होते होंगे. आंटी ने जाते जाते कहा,‘‘हर बार लोगों को ये पैकेट उठाते देखती हूं, पर मुझे तो इसे कहते क्या हैं ये भी पता न था और बनाते कैसे ये भी पता नहीं था. अब ज़रूर बनाऊंगी. बस, ये सुनना था कि पोहे का छोटा पैकेट रैक से उठाकर मैंने उनके हाथ में पकड़ा दिया और बोली,‘‘ले जाइए आंटी, अच्छा लगता है खाने में.’’आंटी हंस दी और मैंने ऐसा महसूस किया जैसे अपने घर की किराने की दुकान से किसी को बढ़िया सामान बेच दिया हो.
पोहे तेरे रूप अनेक: पोहा कितनी तरह से बनाया जाता है और किन-किन चीज़ों के साथ खाया जाता है वह सुनकर आपको गहन आश्चर्य हो सकता है. ये सच है कि इंदौर में ही पोहा बहुत अलग-अलग ढंगों से खाया जाता है, पर देश के दूसरे राज्यों में भी इसके अलग-अलग रूप देखे जाते हैं.
इन्दौरी लोगों का उसल पोहा तो ख़ैर फ़ेमस है ही. पोहे में तीखा उसल (स्प्राउट्स से बनी तीखी करी वाली सब्ज़ी) मिलाकर खाने वाला इंदौर एकमात्र शहर है. पर एक बार जब मेरा गुजरात जाना हुआ तो रसोइए को पोहे में टमाटर मिलाता देखकर मैंने सच में सोचा था ये सपना है क्या? पोहे में टमाटर कौन डालता है? पर ये समझ लीजिए कि तब मैं चूज़ा थी. ज़्यादा दुनिया देखी नहीं थी, फिर जब दुनिया देखी और दुनिया में पोहे बनाने के अलग-अलग तरीक़े देखे तो जाना कि पोहे के कितने रूप हैं.
पोहे में लोग क्या-क्या डालकर खाते हैं, ये सुनेंगे तो आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे. टमाटर-मटर वाले पोहे तो बनते ही हैं, पोहे में काजू, खट्टा-मीठा, मिक्स सब्ज़ियां डालकर भी पोहा बनाया जाता है. महाराष्ट्र में दही और फ्रूट्स के साथ पोहा बनाकर खाया जाता है तो तमिनाडु में हरे धनिए का पेस्ट डालकर धनिया पोहा बनाया जाता है. उड़ीसा में अदरक-गाजर के साथ सब्ज़ियां मिलाकर पोहा बनाया जाता है. गोवा में दही-पोहा बनाया जाता तो कर्नाटक में गुड़ के साथ मिलाकर पोहा बनाया जाता है, जिसे व्रत के दिनों में खाया जाता है या फिर पोहे में ढेर सारा नारियल ऊपर से बुरक दिया जाता है. बिहार में पोहे में दही, पसंदीदा फल और शक्कर या गुड़ मिलाकर मीठा पोहा खाया जाता है, जिसे दही-चूड़ा कहते हैं. बाक़ी कांदा-मूंगफली पोहा, मटर-टमाटर पोहा, बटाटा पोहा जैसे और भी कितने ही रूप हैं पोहे के. और इन्दौरियों वाले पोहे तो हैं ही, जिसमें अनार दाना, सेव, तीखी बूंदी, कटा प्याज़, नींबू का रस ये सबकुछ ऊपर से मिलाकर खाया जाता है.
पोहे पर बड़ी लम्बी बातें हो गईं. अब तो अक्सर हरिकथा भी इतनी लम्बी नहीं होती. इतना पढ़ने के बाद भूख लग आई हो तो पोहा बनाकर खा लीजिए. बस 15-20 मिनिट का ही काम है.
और हां, पोहे से जुड़ी अपनी यादें हमारे साथ बांटिए कमेंट बॉक्स में या फिर इस ईमेल आइडी पर: [email protected]
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