साइनसाइटिस के बारे में आपने बहुत सुना होगा. क्या है साइनस को होनेवाली यह समस्या और कैसे आयुर्वेद के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है? बता रहे हैं जाने-माने आयुर्वेद चिकित्सक डॉ अबरार मुल्तानी.
दूषित हवा से बचने के लिए ईश्वर ने हम इंसानों को साइनस प्रदान किए हैं जो कि नाक के दोनों तरफ़ 4 जोड़ी अर्थात 8 एयर पॉकेट्स होते हैं उनके नाम है मेक्सिलरी, स्फेनॉइड, इथमॉइड एवं फ्रंटल साइनस. ये सभी एक-एक जोड़ी होते हैं. साइनस का कार्य है श्वास के माध्यम से आने वाले ख़तरनाक धूल आदि कणों को फेफड़ों में प्रवेश करने से रोकना. इनका कार्य है विशिष्ट म्यूकस का स्राव करके हानिकारक कणों को चिपका लेना तथा अतिमहत्वपूर्ण अंग फेफड़ों में न जाने देना. यदि ये हानिकारक कण अधिक होते हैं तो म्यूकस अधिक निकलता है और प्रतिरक्षा के तहत छींक लाकर उस म्यूकस और हानिकारक पदार्थ को नाक से बाहर निकाल देता है. इस तरह बेहतरीन तरीक़े से हमारे फेफड़ों को सुरक्षा प्रदान की जाती है.
साइनसाइटिस में इन साइनस पर सूजन हो जाती है जिससे इनका कार्य अत्यधिक बढ़ जाता है और हानिकारक हवा एवं कणों के न होने के बावजूद इनसे ज़्यादा मात्रा में म्यूकस का स्राव होता है और शरीर उसे छींकों के माध्यम से बाहर निकालता रहता है. यह मुख्यतः एलर्जी के कारण होता है.
साइनसाइटिस के लक्षण
-बार-बार छींके आना
-नाक बंद होना
-नाक से पानी जैसा द्रव निकलते रहना
-सिरदर्द
-सर्दी-खांसी
-बुखार एवं बदन दर्द
-आंखों से आंसू आना
-आंखों और कान में खुजली होना
-दांतों में दर्द आदि
साइनसाइटिस के कारण
-प्रदूषण
-एसी-कूलर का प्रयोग
-इम्यूनिटी की कमी
-इन्फ़ेक्शन-बैक्टीरियल, वायरल या फ़ंगल
-ठण्डे पानी एवं कोल्डड्रिंक का नियमित सेवन
-रीढ़ का कर्व गड़बड़ाना
-रिसर्च में पता चला है कि आंतों में फ़ंगस या कैंडिडिआसिस होने पर भी साइनोसाइटिस की समस्या होती है. यह समस्या एंटीबायोटिक के अत्यधिक प्रयोग के कारण हो सकती है, क्योंकि एंटीबायोटिक शरीर के लिए लाभदायक बैक्टीरिया को नष्ट करती हैं और फ़ंगस की ग्रोथ को बढ़ाते हैं.
कैसे पता करें कि यह साइनसाइटिस है?
-लक्षणों द्वारा पहचानें
-एक्स-रे, सीटी स्केन द्वारा निदान किया जाता है.
आप क्या करें?
-साइनसाइटिस का उपचार आधुनिक चिकित्सक एंटीबायोटिक एवं एंटीएलर्जीक द्वारा करते हैं लेकिन इससे स्थाई समाधान नहीं मिलता. 15,000 लोगों पर हुई एक फ़िनिश रिसर्च में पता चला है कि एक्यूट साइनसाइटिस के रोगी को 15 दिन में आराम मिल जाता है चाहे उन्हें एंटीबायोटिक दी जाए या न दी जाए. इसलिए एंटीबायोटिक का महत्व इस रिसर्च के परिणाम के कारण भी इसके उपचार में कम हो जाता है. एन्टीएलर्जीक या कॉर्टिकोस्टेरॉइड इम्युनिटी को कम कर देते हैं जिससे अंततः बैक्टेरिया, वायरस और फंगस की ग्रोथ साइनस में बढ़ने लगती हैं तथा समस्या और बढ़ जाती है.
-सर्जरी द्वारा भी केवल कुछ महीने या साल तक ही आराम मिलता है और फिर रोगी उसी समस्या से जुझने लगता है. यदि साइनसाइटिस की वजह नाक की हड्डी का फ्रैक्चर या बहुत ही ज़्यादा टेड़ी हो चुकी हड्डी है तो उसमें सर्जरी बहुत मददगार हो सकती है.
-आयुर्वेद इसका अच्छा एवं स्थाई समाधान प्रदान कर सकता है. इसके लिए आप निम्न उपाय करें.
-नियमित प्रणायाम करें.
-एक कप कुनकुने पानी में एक चुटकी नामक डालकर सिंक के सामने खड़े होकर उस पानी को चुल्लू में भरकर नाक से थोड़ा अंदर खींचे, लगभग एक से दो इंच. फिर इसे निकाल दें ज़ोर से. इससे आपको तुरंत राहत मिल जाती है. यह इंफ़ेक्शन को भी कम करता है और साइनस के ब्लॉक को भी हटाता है.
-नाक में सुबह एवं शाम गाय के शुद्ध घी की कुछ बूंद डालें.
-रीढ़ की हड्डी पर किसी पोषक तेल जैसेः बला तेल या महानारायण तेल की मालिश करें.
-रात में सोते समय आग में भूने हुए अनार के रस में अदरक का रस मिलाकर पिएं. अनार को भुनने के लिए उसे माइक्रोवेव में रखा जा सकता है और फिर उसे निकालकर उसका छिलका हटा कर रस निकाल लें और फिर उसमें आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सोते समय पी लें और फिर सो जाएं.
-जीर्ण प्रतिश्याय की चिकित्सा के लिए किसी कुशल आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श ले.
सावधानियां
रोगी सावधानियों के बिना इस रोग से मुक्ति नहीं पा सकता. इसलिए रोगी निम्न सावधानियां अवश्य बरते
-ठंडा पानी एवं कोल्डड्रिंक न पिएं.
-दही, अचार एवं खटाई न लें. विटामिन सी के लिए आप आंवला ले सकते हैं, क्योंकि विटामिन सी इसके उपचार में बहुत उपयोगी है.
-फलों को खाकर पानी न पिएं, क्योंकि इससे शरीर मे कफ़ बढ़ता है और वह साइनसाइटिस और अस्थमा जैसी समस्या उत्पन्न करता है.
-प्रदूषण से बचें. धूल और धुएं वाली जगह पर जाएं तो रुमाल से मुंह ढककर जाएं.
-एसी-कूलर का प्रयोग न करें.
-गर्म वातावरण से एकदम ठंडे वातावरण यानी एसी में ना आएं और ना इसका उल्टा करें.
-ठंडे पानी से न नहाएं और नहाकर पंखे की हवा में न आएं.
-सुबह उठकर ख़ाली पेट पानी न पिएं, क्योंकि यह भी कफ़वर्धक है.
-गर्म पानी में नमक मिलाकर नहाएं और नहाते समय रोमकूपों को खोलने के लिए अच्छे से गीले तौलिए से बदन को रगड़ें. ऐसा करने से शरीर से टॉक्सिन्स निकलते हैं और शरीर के सभी अंग स्वस्थ हो जाते हैं.
-अपने पाश्चर को ठीक रखें, रीढ़ को झुकाकर न बैठें.
-यदि आप उपरोक्त सावधानियां रखेंगे और किसी अच्छे चिकित्सक से चिकित्सा करवाएंगे तो आपकी सांसों को कोई भी छींक नहीं रोकेगी और आपकी नाक आराम से सांसें लेने लगेगी. आप स्वस्थ और शक्तिशाली व्यक्ति बन जाएंगे.