यह बहुत ही आम सवाल है कि क्या मेनोपॉज़ महिलओं की सेक्शुअल लाइफ़ का अंत है? और इस सवाल को चाहते हुए भी महिलाएं और पुरुष किसी से पूछ नहीं पाते हैं. शायद सांस्कृतिक परिवेश की वजह से उपजी झिझक इसका कारण है. पर इस सवाल का जवाब वीवॉक्स के संस्थापक संगीत सेबैस्टियन बड़ी ही आसान भाषा में दे रहे हैं, ताकि आपके मन में मौजूद सभी सवालों के जवाब आपको मिल जाएं.
अधिकतर महिलाओं के लिए रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज़, जिसे वैज्ञानिक ‘‘प्रजनन काल के बाद का जीवन’’ भी कहते हैं, बतौर एक वयस्क शायद सबसे डरावना बदलाव होता है. महिलाओं के जीवन के इस हिस्से को अक्सर सेक्स से रहित समय माना जाता है.
लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए. सेक्स से जुड़ी हर बात की ही तरह सही जानकारी का अभाव ही इस समस्या का भी बुनियादी कारण है. जब आपको पता नहीं होता कि आगे किस बात की आशा रखी जाए तो सबसे पहले ‘डर’ ही हावी हो जाता है.
यह बात मेनोपॉज़ के संदर्भ में भी सही है, क्योंकि हर महिला का प्रजनन काल के बाद का जीवन बिल्कुल अलग हो सकता है. हालांकि बहुत कम ही शोधों में इस बात का खुलासा हुआ है कि यह हर महिला के लिए अलग अनुभव हो सकता है. बावजूद इसके यह नहीं कहा जा सकता कि हमने मेनोपॉज़ को समझने में कुछ ख़ास प्रगति नहीं की है.
विक्टोरियन अविश्वास के उस समय से, विज्ञान हमें काफ़ी आगे ले आया है, जब पश्चिमी देशों में ईसाई धार्मिक पुस्तकों और सांस्कृतिक सोच के अनुसार ‘‘सद्चरित्र महिला’’ के लिए यह माना जाता था कि 40 वर्ष से अधिक की महिलाओं को मानसिक चिकित्सालयों में बंद रखना चाहिए, क्योंकि वे ‘क्लाइमैक्टेरिक इन्सैनिटी’ यानी रजोनिवृतिकाल के पागलपन (वह पागलपन जो पेरी-मेनोपॉज़ और पोस्टमेनोपॉज़ के बीच होता है) से पीड़ित रहती हैं.
आज हम हॉर्मोन चिकित्सा का इस्तेमाल कर ‘खोए हुए स्त्रीत्व’ को फिर पाने के बारे में बात करते हैं. बावजूद इसके मेनोपॉज़ के बारे में अभी भी हमें कई चीज़ों की जानकारी नहीं है. उदाहरण के लिए वैज्ञानिकों को अभी भी यह पता नहीं चल पाया है कि यह प्रक्रिया महिलाओं में इतने लंबे समय तक क्यों चलती है?
मेनोपॉज़ कोई ऐसी अनोखी चीज़ नहीं है जो केवल मानवों (महिलाओं) में होती है. यह तो एक सामान्य प्रक्रिया है, जो हर स्तनधारी जीव (मादा) की विशेषता है. बहुत सारी वानर और ग़ैर-वानर प्रजातयों पर किए गए अध्ययन से इस बात के सबूत मिले हैं. लेकिन जो बाद मानव स्तनधारियों को ख़ास बनाती है वो प्रजनन काल के बाद के जीवन की लंबाई.
महिलाएं अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा मेनोपॉज़ल अवस्था में बिताती हैं.
इस बात के कुछ स्पष्टीकरण भी आए हैं. एक सिद्धांत कहता है कि मेनोपॉज़ की अवस्था महिलों की रक्षा के लिए विकसित हुई, क्योंकि उम्र के साथ-साथ गर्भधारण में जटिलताएं बढ़ती हैं, जिससे महिलाओं का जीवन ख़तरे में आ जाता है.
दूसरे सिद्धांत को ‘‘ग्रैंडमदर हाइपोथेसिस’’ कहा जाता है. जो कहता है कि महिलाएं दादी/नानी की भूमिका में आ जाती हैं, ताकि अपने नाती-पोतों की देखभाल कर सकें, क्योंकि मानव शिशु जीवित रहने के लिए पूरी तरह से अपनी साज-संभाल करने वाले व्यक्ति पर ही निर्भर होता है. इसके बावजूद न तो मेनोपॉज़ से जुड़ी बातों का पूरा खुलासा हुआ है और लगता भी नहीं है कि इस पहेली को जल्द सुलझाया जा सकेगा.
तो फिर हम अपने सवाल पर आते हैं: क्या मेनोपॉज़ महिलाओं की सेक्शुअल लाइफ़ का अंत है? इसके बारे में हमेन डॉक्टर शर्मिला मजूमदार से पूछा, जो आइकन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन, अमेरिका, से भारत की पहली बोर्ड सर्टिफ़ाइड महिला सेक्सोलॉजिस्ट हैं और वे वीवॉक्स की संस्थापक सदस्य भी हैं. उन्होंने हाल ही में जर्नल ऑफ़ मिड-लाइफ़ हेल्थ में एक पेपर भी लिखा है, जिसका विषय है-‘‘इफ़ेक्ट्स ऑफ़ मेनोपॉज़ ऑन सेक्शुअल फ़ंक्शन इन इंडियन विमेन’’.
डॉक्टर शर्मिला मजूमदार कहती हैं,‘‘इस सवाल का जवाब हर महिला के लिए अलग हो सकता है. हर महिला की अपनी कहानी होती है. कुछ महिलाओं को मेनोपॉज़ के बाद अपने जीवन के सबसे बेहतरीन सेक्शुअल अनुभव होते हैं, जबकि कुछ महिलाएं सेक्शुअल इंटरकोर्स में अपनी रुचि के बहुत कम होने की बात भी कहती हैं.’’
वे आगे बताती हैं,‘‘जिन महिलाओं में सेक्शुअल इंटरकोर्स की इच्छा बढ़ जाती है, उसकी वजह ये हो सकती है कि उनकी यह चिंता ख़त्म हो जाती है कि वे प्रेग्नेंट हो सकती हैं. बहुत-सी महिलाएं मेनोपॉज़ का समय आते-आते अपने बच्चों की सभी ज़िम्मेदारियों से मुक्त भी हो जाती हैं. उनके पास आराम करने और अपने पार्टनर के साथ सेक्शुअल नज़दीकियों का आनंद उठाने का पूरा समय भी होता है.
‘‘अब अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात की जाए तो मेनोपॉज़ के दौरान एस्ट्रोजेन और टेस्टोस्टेरॉन की कमी की वजह से महिलाओं के शरीर में और उनकी सेक्स संबंधी इच्छाओं में बदलाव आते हैं. जिसकी वजह से सेक्स में दिलचस्पी कम हो सकती है. एस्ट्रोजेन के स्तर में कमी आने से वजाइना में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे लुब्रिकेशन में कमी आती है और सेक्शुअल इंटरकोर्स दर्दभरा अनुभव बन जाता है.
‘‘जो महिलाएं मेनोपॉज़ के इस दौर में सेक्स से संबंधी समस्याओं से दो-चार होती हैं, उनके लिए इन दिनों बहुत सारी प्रभावी थेरैपीज़ उपलब्ध हैं, जिनमें वजाइनल लुब्रिकेंट्स, टॉपिकल एस्ट्रोजेन और क्लिटोरल थेरैपी डिवाइस भी शामिल हैं. भारतीय महिलाओं की मेनोपॉज़ की औसत उम्र 46.2 वर्ष है.‘‘
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट