केरल को ‘गॉड्स ओन कंट्री’ यानी भगवान का अपना देश कहा जाता है. हरियाली की चादर ओढ़े केरल की यात्रा पर गईं लेखिका ज्योति जैन ने यहां के हरियाले लैंडस्केप का मनोरम वर्णन किया है.
जब घर से दूर जाने की बात आती है तो स्वाभाविक है कि उस अंचल के बारे में अधिकतम जानकारी जुटाने को मन करता है. जब यह तय हो गया कि छुट्टियों में केरल जाना है तो ऐसा ही हुआ. परिजनों और मित्रों में जो लोग केरल घूम कर आए थे, उनमें से हरएक ने मुक्त कंठ से केरल और ख़ासकर एलप्पी एवं थेकड़ी की सुंदरता की तारीफ़ की थी. मुंबई में हमारे मित्र श्री प्रफुल्ल भाई ने एयरपोर्ट से विदा करते हुए कहा कि टिकिट काउंटर पर ‘टू-विंडो’ का आग्रह ज़रूर कीजिएगा क्योंकि कोचीन पर फ़्लाइट लैंड होने के पहले उसे ऊपर से निहारना किसी रोमांच से कम नहीं होता है.
केरल में हमारा पहला पड़ाव मुन्नार था. यह एक हिल स्टेशन है बस इतनी ही जानकारी हमें थी. एयरपोर्ट पर विदा करने आए प्रफुल्ल भाई के मुंह से जब सुना कि मुझे आपसे ईर्ष्या हो रही है क्योंकि आप मुन्नार जा रहे हैं और मैं यहां मुंबई में ही पड़ा हूं, तब हमें भी किसी ख़ूबसूरत जगह पर पहुंचने का रोमांच महसूस होने लगा. यह हमारी पहली हवाई जहाज़ यात्रा भी थी. बादलों के बीच एयरक्राफ़्ट एकदम स्थिर लग रहा था और चारों ओर बस चांदी से दमकते बादलों की मौजूदगी थी. 1 घंटा और 35 मिनट के बीतने का पता तब चला जब घोषणा हुई कि हम कोचीन उतरने वाले हैं. मैंने खिड़की से झांककर जब नीचे देखा तो लगा जैसे हमारे स्वागत में एक हरियाला ग़लीचा बिछा हुआ है. जिसके बीच-बीच में चांदी के सितारे लगे हुए हैं जो वास्तव में पानी की उपस्थिति थी. ऐसा भी लगा जैसे हरी घास पर कोई चमकीला पतला-सा कीड़ा रेंग रहा है. यह एक ट्रेन थी जिसकी छत सूरज के रिफ़्लेक्शन की वजह से चमक रही थी. कुछ और नीचे आए तो छोटे-छोटे घर नज़र आ रहे थे जिन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानों बच्चों ने खिलौने वाली बिल्डिंगों को सेट करके एक कॉलोनी बना दी है. यह सारी क़ुदरती ख़ूबसूरती पलक झपकाने की अनुमति नहीं दे रही थी. सच मानिए! इतनी हरियाली हमने पहले कभी नहीं देखी थी.
कोचीन एयरपोर्ट से बाहर आते ही क्वॉलिस गाड़ी लेकर ड्रायवर तैयार था, जिसके साथ शुरू हो गया मुन्नार का सफ़र. गाड़ी से बाहर झांकते हुए जहां भी नज़र जा रही थी, वहां मां वसुंधरा अपना हरियाला आंचल पसारे हमारे स्वागत में तत्पर खड़ी थीं. पहाड़ों के आसपास बादलों की उपस्थिति थी जो एक नया अनुभव दे रहे थे. जैसे-जैसे मुन्नार क़रीब आया, मोबाइल से सिग्नल ग़ायब होने लगा. सही भी है क्योंकि अब हम शोर और भागती दुनिया से डिस्कनेक्ट होकर शांत प्रकृति की रेंज से कनेक्ट होते जा रहे थे. देखते ही देखते पूरी हरी घाटी को बादलों ने ढंक लिया; मानों सारे पहाड़ों पर मलमल की झीनी-सी चादर ढक दी गई हो. गाड़ी में से सड़क पर 6 फ़ुट की दूरी पर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था. कार की खिड़की केकांच को बादल जिस तरह से स्पर्श कर रहे थे उससे लग रहा था कि एक बार फिर हवाई यात्रा शुरू हो गई है. गहरी घाटी में बादल, सामने बादल, आसमान में बादल और इर्दगिर्द सिर्फ़ बादल और बादल…जैसे हम बादल के आगोश में ही सिमट आए हों.
10 मिनट बाद धुंध छंट गई और हरी चूनर ओढ़े प्रकृति खिलखिलाने लगी. धरती का यह सौंदर्य मैंने पहली बार निहारा था. कुछ दृश्य तो कैमरे में क़ैद कर लिए लेकिन मेरी आंखों में क़ुदरत के जो नज़ारे क़ैद हुए है वे कभी नहीं बिसराए जा सकते. 4 घंटे के सड़क सफ़र में प्रकृति की सारी छटाएं हमसे रूबरू हो गईं थीं. हर रंग नज़र आया… यकीन मानें! सड़क के दोनों ओर ज़रा-सा टुकड़ा भी ऐसा न था, जहां मिट्टी और या कोई रंग नज़र आता हो. सुंदर फूलों की उपस्थिति धरती की ख़ुशहाली के गीत झूम-झूमकर सुना रही थी. चारों ओर जो हरी घाटियां थीं, वहां चाय के बाग़ान ज़्यादा थे. हरी धरती और चमकते बादलों की छुपा-छाई लगातार जारी थी. चूंकि हम जून महीने के आख़िर में वहां थे इसलिए अनायास बूंदाबांदी भी होने लगती.
रिसॉर्ट पहुंचने पर कमरे की खिड़की खोलते ही ऐसा लगा कि जैसे नज़रों के सामने कोई बड़ा सा वॉलपेपर पेस्ट किया गया है, जिसमें हल्के और गहरे रंगों की पर्वत श्रृंखला है, जिस पर कई घने पेड़ हैं… बीच-बीच में कल-कल करती नदी… और एकरसता को ख़त्म करते रंग-बिरंगे फूल! बिल्कुल जीवंत बड़ा सा वॉल पेपर. फिर सुबह के वॉल पेपर के भी क्या कहने. एक बार फिर सफ़ेद बादल अठखेलियों के साथ मौजूद थे. सारी हरियाली ने ओस से स्नान कर लिया था. फूलों पर शबनम की बूंदें छंद रच रही थीं. एक ख़ास बात जो शाम के धुंधलके में नहीं दिखी थी वह थी रिसॉर्ट का पर्वत पर होना जिसके तीनों ओर भी पर्वतों का सुरक्षा चक्र था. बीच में गहरी हरियाली घाटी. एक बार फिर क़ुदरत अपने नए-नवेले रंगों के साथ उपस्थित थी. हर प्रहर के साथ एक नया अंदाज़, एक नया स्वांग और एक नई वेशभूषा पहनकर निःसर्ग सामने आ रहा था. हरी घाटी में सफ़ेद पट्टियां भी नज़र आती थीं. यह वे पहाड़ी झरने थे जो कभी सड़क के किनारे भरपूर जोश के साथ गिरते हुए दूध की धारा जैसा आभास दे रहे थे. धरती पर आने के बाद भी यह पानी कांच की मानिंद साफ़ था.
इस विहंगम दृश्य को देखकर हमारी आंखें सुखद आश्चर्य से भरी हुई थीं. हमें लगा हमने श्रेष्ठ को निहार लिया लेकिन प्रकृति के रंग निराले हैं. वह हरदम अपनी सुंदरता से किसी सस्पेंस नॉवेल की भांति हमें हैरान कर रही थी. मुन्नार में तीन दिन बिताने के बाद जब थेकड़ी (पेरियार) से एलप्पी की ओर रवाना हुए तो एक और सुखद आश्चर्य हमारा इंतज़ार कर रहा था. अब तक हमें पहाड़, पानी और हरियाली ने मंत्रमुग्ध किया था जो बैक वॉटर का हिस्सा थी लेकिन अब सड़क के साथ-साथ पानी का चलना और उसके साथ नारियल के वृक्षों की कतारें धरती के वैभव को नया आयाम दे रही थी.
धरती की सुंदरता को निहारते-निहारते जैसे ही एलप्पी आया तो वहीं बैक वॉटर में लैक पैलेस रिसॉर्ट की बोट हमारे स्वागत में चाक-चौबंद खड़ी थी. सामान सहित हम उसमें सवार हुए. ऐसा लगा कि किसी नहर में यह बोट चलने वाली है लेकिन बाद में संकरी सी यह कैनाल विशाल झील में तब्दील हो गई. उसी झील के लेक पैलेस रिसॉर्ट में हमारा अगला पड़ाव था. याद आ गई फ़िल्मों में देखे गए वेनिस शहर के उन नज़ारों की जिसमें जलमग्न पूरा का पूरा शहर नाव से ही इस कोने से उस कोने तक घूमता-फिरता रहता है. यही वजह है कि केरल को एशिया का वेनिस कहा गया है.
पूरा केरल ही क़ुदरत की नियामत पेश करता है. इसे वहां के परिश्रमी और जीवट लोगों ने कुछ और समृद्ध कर दिया है. कहीं भी कोई व्यक्ति भिक्षावृत्ति करता नहीं दिखा. हर आदमी सरल, निश्छल और संतुष्ट. इस बात से हमेशा बाख़बर कि हमारा अंचल टूरिज़्म का महत्वपूर्ण ठिकाना है. यहां आए लोगों को क़ुदरत के साथ हमारी मुस्कानों की भी ज़रूरत है. इसी के साथ हिन्दुस्तान के इस पूर्णत:साक्षर राज्य को हमने कहा ‘पोइचवरम…’ यानी फिर मिलेंगे.
पुस्तक साभार: यात्राओं का इंद्रधनुष
लेखिका: ज्योति जैन
प्रकाशन: शिवना प्रकाशन