हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मानाया जाने वाला गणेश-चतुर्थी का त्यौहार आज है. हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव को सभ्यता के उत्कर्ष पर ले जाने वाले गुणों को धारण करना सिखाने के लिए बनाया था. हर देव की तरह हमारे प्यारे-दुलारे गणेश जी भी अपने भीतर बहुत से प्रतीकार्थों को संजोए हैं. भावना प्रकाश यही प्रतीकार्थ हमें समझा रही हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मानाया जाने वाला गणेश-चतुर्थी का त्योहार आज है. आज के दिन गणेश जी को अपने घर या मुहल्ले के प्रांगण में स्थापित किया जाता है और उनका विधि पूर्वक पूजन आरंभ होता है. दस दिन के पूजन के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन किया जाता है.
हमारे सभी त्योहारों की तरह इस त्योहार को भी हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव को सभ्यता के उत्कर्ष पर ले जाने वाले गुणों को धारण करना सिखाने के लिए बनाया था. हर देव की तरह हमारे प्यारे-दुलारे गणेश जी भी अपने भीतर बहुत से प्रतीकार्थों को संजोए हैं. तो आइए जानें, हम कैसे उन्हें समझकर, उन्हें अपने हृदय में धारण कर उनकी सार्थक और कल्याणकारी पूजा कर सकते हैं.
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे गणेश जी की इतनी विचित्र काया के क्या मतलब हो सकते हैं? जी हां, गणेश जी की काया भी अपने पिता देवाधिदेव शिव शंभु की विचित्रता की तरह बहुत कुछ सिखाती है.
हाथी बहुत ही शांत, बुद्धिमान और दयालु जानवर होता है. हाथी का मस्तक धारण करके गणेश जी पहली सीख तो हाथी का मस्तक अर्थात् बुद्धि धारण करने की ही देते हैं. अब आप कहेंगे कि हाथी की बुद्धि धारण करने से मतलब? अब सोचिए जंगल के इस सबसे विशालकाय जानवर की जीवन-शैली क्या है. शक्ति होते हुए भी ये कभी अकारण निर्बल जीवों को तंग नहीं करता. सौम्य इतना जैसे अपनी शक्ति का एहसास ही न हो. इस प्रकार अहंकारहीनता ही हाथी की वो सबसे बड़ी ख़ूबी है, जिसे धारण करना गणेश जी की सच्ची पूजा है.
हाथी समूह में रहते हैं और मांसाहारी जीवों का संगठित होकर सामना करते हैं. समूह में बच्चे और निर्बल बीच में होते हैं और उन्हें सुरक्षा देते हुए युवा और सक्षम किनारे. इस संगठन और निर्बलों की चिंता की सामाजिक बुद्धि को समग्र समाज को सीखने की आवश्यकता आज अत्यधिक हो गई है.
हाथी सदा चलायमान रहते हैं. जब तक जंगलों में इनसान का हस्तक्षेप सीमा पार नहीं हुआ था, हाथियों की ये जीवन शैली प्रकृति के संरक्षण का बहुत बड़ा उपाय थी. हाथी हमेशा खाद्य पदार्थों की कमी होने से पहले ही इलाका छोड़ देते थे. इस प्रकार वो निर्बल तथा छोटे जीवों का ध्यान रखते थे और जितना जंगल खाते थे, अपने गोबर के साथ समूचे बीजों को छोड़कर उतना ही जंगल उगाने का इंतज़ाम करके जाते थे. तो ‘गजानन’ की सामाजिक जीवन-शैली हमें अपने से निर्बलों का ध्यान रखने, उनकी चिंता करने और जीवन में हमेशा चलायमान रहने अर्थात् अतीत की कुंठाओं को विस्मृत कर भविष्योन्मुख रहने की सीख देती है.
हाथी की मस्ती भरी चाल एक लोकप्रिय मुहावरा है और ‘गम खाओ’ या ‘सब पचाने की क्षमता विकसित करो’ देसी भाषा की लोकोक्तियां. तो हाथी की तरह की मस्ती हम द्वेष को पचाकर अर्थात् वैमनस्य को अथवा किसी की कड़वी बात को दिल पर न लेकर ही अपना सकते हैं. ‘सब पचा जाना क्या है’ इसका जवाब हमारे ‘लंबोदर’ जी के ‘उदर’ के प्रतीकार्थ में भी छिपा है. विद्वतजनों के अनुसार जो हर प्रकार के द्वेष और और दुर्भावनाओं पर न कोई प्रतिक्रिया दें और न मन में कुंठा पाले मतलब उन्हें ‘पचा’ जाए, वो ‘लंबोदर’ है.
आज दुनिया इतनी आत्मकेंद्रित हो गई है और लोगों के मन में केवल खुद के सही होने की धारणा इतनी बल पा गई है कि बोलना सब चाहते हैं पर सुनना कोई नहीं चाहता. सुन भी लिया तो ग्रहण नहीं करते लोग. हाथी के कान बड़े हैं. तो हमारे ‘लंबकर्ण’, जिनका मुंह सूंड़ के पीछे छिपा है; हमें सुनने और ग्रहण करने की महत्ता सिखाते हैं. लंबे कान प्रतीक हैं ग्राह्यता का और छिपा छोटा सा हुआ मुंह प्रतीक है सोच-समझ कर बिना शोर मचाए विनम्रता से बोलने का.
गणेश जी का एक दांत टूट गया पर उनकी मनमोहक मुद्रा पर कोई फ़र्क़ पड़ा? वो हमेशा मुस्कुराते रहते हैं और हमारे ‘एकदंत’ जीवन की अपूर्णताओं के साथ उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकारने की प्रेरणा देते हैं.
चूहा हमेशा से हमें परेशान करता आया है. यही एक ऐसा जानवर है, जिसे लेकर पर्यावरणविद भी इससे बचने और कृषि को इसके नुकसानों से बचाने के उपाय बताने वाले लेख निरंतर लिखते रहते हैं. हमारी पौराणिक परंपराएं इतनी अहिंसक और समझदार थीं कि कभी किसी जीव को समूल नष्ट कर देने के बारे में नहीं सोचती थीं. ऐसे में चूहा कृषि प्रधान समाज की सबसे बड़ी व्यावहारिक समस्या था, जिसकी गणेश जी ने हमेशा सवारी की अर्थात् उस पर नियंत्रण रखा. हर व्यावहारिक समस्या का हल अपने विवेक और चतुराई से ढूंढ़ निकालना या कहे उसकी सवारी कर लेना अर्थात् आपदा में अवसर निकाल लेना ही मूषक-सवारी का प्रथीकार्थ है. इस प्रकार गणेश जी किताबी ज्ञान से ऊपर उठकर व्यावहारिक बुद्धि के संवर्धन की प्रेरणा देते हैं.
चार भुजाएं चारों दिशाओं अर्थात् जीवन के हर क्षेत्र मे हर मोर्चे पर तैयार रहने और हर उत्तरदायित्व को समग्रता से निभाने की प्रेरक हैं. छोटी आंखें सूक्ष्म बुद्धि अर्थात् हर विषय को बारीक़ी से देखने और छोटे से छोटे तथ्य पर विचार करने की क्षमता दर्शाती हैं. तो आइए, इस बार गणेश जी की स्थापना और उनका पूजन करने के साथ उनकी काया में प्रतीकार्थ के रूप में बसे उनके गुणो की भी अपने व्यवहार में स्थापना करने का प्रयास करें और एक बेहतर समाज बनाने में योगदान दें.