अपनी मखमली आवाज़ के चलते आमो-ख़ास के पसंदीदा ग़जल गायक रहे जगजीत सिंह की जीवनी ‘कहां तुम चले गए…दास्तान-ए-जगजीत’ उनके फ़ैन्स के लिए बेहद ख़ास तोहफ़ा है. वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की यह किताब बताती है कि कोई भी सपना यूं ही पूरा नहीं हो जाता. ग़ज़ल को ख़ास लोगों के ड्रॉइंग रूम से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाने में जगजीत का क्या योगदान रहा? वो कौन-सी बातें थीं, जिन्होंने ग़ज़लों से जगजीत को जोड़े रखा और उन्हें बाक़ी ग़ज़ल गायकों से अलग बनाया? भारतीय ग़ज़ल गायन में जगजीत की विरासत की पड़ताल करते राजेश बादल, जगजीत के चाहने वालों को मानसिक रूप से उनके और नज़दीक ले जाते हैं.
पुस्तक: कहां तुम चले गए…दास्तान-ए-जगजीत
लेखक: राजेश बादल
प्रकाशक: मंजुल पब्लिशिंग हाउस
मूल्य: 699 रुपए
कैटेगरी: नॉन-फ़िक्शन/ बायोग्राफ़ी
रेटिंग: 4.5/5 स्टार
अगर आप ग़ज़ल प्रेमी हैं और आपको लगता है कि भारत में ग़ज़ल हमेशा से गाई जाती रही है. उसकी भाषा एकदम सरल रही है, तो आपको ग़ज़ल के इतिहास को थोड़ा पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत है. जगजीत के बतौर ग़ज़ल गायक बनने के पहले गायन की यह विधा मूलतः बेग़म अख़्तर, कुंदन लाल सहगल, मेहंदी हसन और तलत महमूद जैसे लोगों के कारण प्रतिष्ठित थी. ग़ज़लों को मुशायरे के दरम्यान तरन्नुम में पढ़ने वाले शायर ही इतने सुरीले होते थे कि शायद अलग से गायकों की ज़रूरत समझी नहीं गई. ग़ज़ल को ख़ास जहीन और कुलीन वर्ग की पसंद माना जाता था. जगजीत सिंह ने ग़ज़ल को ख़ास लोगों के दायरे से खींचकर आम लोगों तक पहुंचाने का काम किया. इन्हीं सब का लेखा जोखा है इस किताब में, जो राजस्थान के गंगानगर के युवक जगमोहन का पंजाब होते हुए मुंबई पहुंचकर जगजीत बनने की यात्रा का बेहद रोमांचक वर्णन है. उस युवक का पहली बार मुंबई से निराश होकर लौटना. उसके बाद दोस्त के प्रोत्साहन से दूसरी बार मुंबई वापस आना और सफल ग़ज़ल गायक बनने की कहानी के साथ छोटे-छोटे क़िस्से आपको हंसा भी सकते हैं और रुला भी. जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव और उनसे दो-दो हाथ करते जगजीत आपको किसी महानायक की तरह प्रेरित कर सकते हैं.
जगजीत सिंह का शुरुआती नाम जगमोहन था. उनके नामधारी गुरु ने उनको दीक्षा देने के बाद उनको गाते हुए सुना तो उनके गीत गाने के अंदाज़ से काफ़ी प्रभावित हुए. उन्होंने कहा यह बच्चा तो इतना अच्छा गाता है कि एक दिन पूरी दुनिया जीत लेगा. इसका नाम जगमोहन नहीं, जगजीत सिंह होना चाहिए. गुरु के सुझाव से जगमोहन के पिता ख़ुश होकर उसका नाम बदल देते हैं.
जगजीत के पिता को संगीत से बहुत लगाव था. इसलिए उन्होंने अपने बेटे को संगीत सीखने के लिए पहले पंडित छगन लाल शर्मा और फिर उस्ताद जमाल ख़ान के पास भेजा. जगजीत के पिता और उनके गुरु नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मी गाना गाएं. लेकिन शास्त्रीय संगीत में पारंगत जगजीत शुरुआत में मुंबई फ़िल्मी गायक ही बनने आए थे. आगे चलकर उन्होंने अपने अंदर के कुशल ग़ज़ल गायक को पहचाना और सिफ़र से शिखर तक कि यात्रा शुरू की. जगजीत को शुरुआती दिनों में म्यूज़िक कम्पनी एचएमवी द्वारा सुझाव मिला कि शायद लोग किसी सरदार को ग़ज़ल गायक के तौर पर ज़्यादा पसंद न करें, इसलिए उन्हें अपनी दाढ़ी और लम्बे बाल कटवाने पड़ेंगे. यह एक असमंजस वाली स्थिति थी, लेकिन सपने को साकार करने की राह में जगजीत ने दुखी मन से रोते हुए ख़ुद को सफ़ाचट करवा लिया था.
उन्हीं दिनों की बात है, एक सभा में पहुंचने पर उन्हें यह कहकर रोका गया कि आयोजकों की बात तो एक सरदार गायक से हुई थी, आप जगजीत सिंह नहीं हो सकते. हम आपको ऐसे गाने नहीं दे सकते. जगजीत के काफ़ी अनुरोध करने पर उन्हें वहां गाने दिया गया था. वो भी इस शर्त के साथ कि अगर उनका गाना पसंद नहीं आया तो वो उसके लिए एक भी पैसा नहीं लेंगे.
जगजीत और चित्रा की जोड़ी को लोगों ने काफ़ी पसंद किया, लेकिन कम लोगों को ही पता होगा की शुरुआती दिनों में जब उनकी नई-नई मुलाक़ात हुई थी तो चित्रा की उनमें कोई रुचि नहीं थी. इसके दो कारण थे. एक तो चित्रा पहले से शादी-शुदा थीं और दूसरा जगजीत की भारी आवाज़ के कारण वे उन्हें पसंद नहीं करती थीं. फिर धीरे-धीरे हालात बदले और वे एक दूसरे के क़रीब आए. साथ में गाने से लेकर परिवार बसाने तक के सफ़र को राजेश बादल ने अच्छे से कवर किया है.
राजेश बादल ने जगजीत सिंह से हुई अपनी कई मुलाक़ातों का हवाला देते हुए कहानियां आगे बढ़ाई हैं. उनसे हुई बातचीत को साझा किया है. शुरुआत में ग़ज़ल गायन के लिए जगजीत सिंह पर पाश्चात्य वाद्य यंत्रों के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे. राजेश बादल से इस बारे में उन्होंने कहा था कि भले ही मैं पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करता हूं, लेकिन उनसे सुर तो सारेगामापा ही निकालता हूं.
इस किताब को पढ़ने के बाद आपके ज़ेहन में एक और बात स्पष्ट हो जाएगी कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए पहले उसे एक अच्छा इंसान बनना पड़ता है. जब आपमें कुछ ख़ास होता है और आप विनम्र होते हैं तो लोग आपकी मदद के लिए साथ आते हैं. जगजीत को जगजीत बनाने के सफ़र में उन तमाम लोगों ने उनका साथ दिया, जिनसे उनका ख़ून का रिश्ता नहीं था. जगजीत ने भी कभी किसी को भी निराश नहीं किया. कभी किसी से द्वेष भाव नहीं रखा. कभी किसी को भी प्रतिद्वंद्वी की नज़र से नहीं देखा. बहुत सारे नए गायकों को मौक़ा दिया. व्यक्तिगत तौर पर भी अपने से जुड़े हुए लोगों के अलावा अपने दोस्त-साथियों और बहुत सारे अनजान लोगों के लिए मसीहा थे जगजीत. इस किताब में उन तमाम लोगों का ज़िक्र है जिनका नाम आजतक आपने कहीं नहीं सुना होगा.
अगर आप ग़ज़ल प्रेमी हैं तो आपको यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए. मैं, यक़ीन से कह सकता हूं कि यह किताब पढ़ने के बाद आपको जगजीत और ग़ज़ल दोनों से प्यार हो जाएगा, पहले से कहीं ज़्यादा. यह इस किताब और लेखक की सफलता है.