क्या आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्हें लगता है कि सेक्स का, बल्कि अच्छी सेक्स लाइफ़ का उम्र से कुछ लेना-देना है? हो सकता है कि इस मामले में आपके एक-दो विचार सही हों, लेकिन संगीत सेबैस्टियन के इस आलेख में आपको बढ़ती उम्र या बुढ़ापे में सेक्स जीवन के बारे में कई ऐसी बातें पता चलेंगी, जो आपको इस संबंध में नया नज़रिया, नई सोच देंगी.
कुछ वर्ष पहले अमेरिकी पत्रकार जॉन टीर्नी, अमेरिका की जानीमानी ऐन्थ्रेपोलॉजिस्ट (मानव व्यवहार की शोधकर्ता) हेलेन फ़िशर को डेट पर ले गए. इस मुलाक़ात के दौरान टीर्नी ने फ़िशर से कहा कि वे उनके साथ केवल ‘‘फ्रेंड्स विद बेनेफ़िट्स’’ (इसे कैशुअल सेक्स समझिए!) वाला रिश्ता रखना चाहते हैं. फ़िशर, जिन्होंने अपना पूरा जीवन प्यार और सेक्स पर अध्ययन में ही बिताया है, ने टीर्नी से कहा,‘‘जब आप किसी के साथ सेक्स करते हैं तो इस बात की बहुत संभावना होती है कि अंतत: आप उससे प्यार ही करने लग जाएं.’’
फ़िशर की कही बात सच हुई और दो साल बाद वर्ष 2020 में टीर्नी और फ़िशर ने शादी कर ली. कुछ ही दिन पहले अपने एक इंटरव्यू में फ़िशर ने लगभग मज़ाकिया शैली में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पिछले दो वर्षों से उनके साथी रहे टीर्नी, कहीं उन्हें चीट न कर रहे हों, क्योंकि अभी वो दोनों लॉन्ग डिस्टेंस रिश्ते में हैं.
ये बातें बिल्कुल सामान्य हैं और आपको भी बिल्कुल सामान्य लग रही होंगी, पर आपको थोड़ा अलग लगेगा, जब मैं बताऊंगा कि टीर्नी की उम्र 69 वर्ष है और फ़िशर 77 वर्ष की हैं. रिश्ते में धोखे के बारे में तो भूल ही जाइए, अधिकतर लोगों के मामाले में तो इस उम्र में सेक्स भी सबसे अंतिम जगह रखता है. लेकिन सच्चाई इससे अलग है!
प्यार का केमिकल
लव हॉर्मोन्स किसी भी उम्र में उछाल मार सकते हैं. फिर चाहे ये किसी पर आपकी भावनात्मक निर्भरता हो; लबालब हो आया ऊर्जा का स्तर हो; अलगाव का सताता हुआ डर हो या फिर मूड स्विंग्स, जो आपने 17 बरस की उम्र में महसूस किए थे. ये सभी आप 70 बरस तक, बल्कि उससे भी आगे की उम्र तक महसूस कर सकते हैं, पर इसकी शर्त यही है कि आप सेहदमंद रहें. इसकी वजह ये है कि प्यार और सेक्स मनुष्य के दिमाग़ की बेहद बुनियादी प्रणालियां हैं, जो तब से ही विकसित हो गई थीं, जब मनुष्य अफ्रीकी सवाना में घूमंतू जीवन जिया करता था.
दिमाग़ सबसे बड़ा सेक्स ऑर्गन है!
सेक्स की इच्छा ऐसी बायोलॉजिकल ड्राइव है, जो बिल्कुल एक जैसी होती है, फिर चाहे आपका दिमाग़ अमेरिकी हो या भारतीय. पर इस बात के बावजूद चीज़ें यहां आकर बदल जाती हैं कि आप अपनी इच्छा को व्यक्त कर पाते हैं या नहीं, क्योंकि यह बात उस संस्कृति के आधार पर तय होती है, जिसमें आप रहते हैं. मसलन, यदि आप ऐसे समाज में रहते हैं, जो बड़ी उम्र या बुढ़ापे में सेक्स को नकारात्मक तरीक़े से देखती है तो आपका दिमाग़ भी यही महसूस करेगा. इसी बात को दूसरे शब्दों में यूं समझा जा सकता है कि यदि आप ख़ुद को ‘‘बूढ़ा’’ महसूस करते हैं और उम्रदराज़ होने के दौरान सेक्स के प्रति नकारात्मक नज़रिया रखते हैं तो आपकी सेक्स लाइफ़ की क्वालिटी उन लोगों की तुलना में तेज़ी से गिरने लगती है, जो आपकी ही उम्र के होते हैं, लेकिन ख़ुद को ‘‘जवां’’ महसूस करते हैं. यह बताता है एक नया अध्ययन, जो जर्नल ऑफ़ सेक्स रिसर्च में प्रकाशित हुआ है. तो इस अध्ययन का सार यही हुआ न कि आपका दिमाग़ ही आपका सबसे बड़ा सेक्स ऑर्गन है!
एक्स्पर्ट्स क्या कहते हैं?
बुढ़ापे और सेक्शुऐलिटी यानी कामुकता के बारे में ज़्यादा जानने के लिए और यह समझने के लिए संस्कृति हमारे यौन व्यवहार (सेक्शुअल बिहेवियर) को कैसे प्रभावित करती है, मैंन डॉक्टर टीएसएस राव से बात की. डॉक्टर राव नामचीन सेक्सोलॉजिस्ट, साइकियाट्रिस्ट और जर्नल ऑफ़ साइकोसेक्शुअल हेल्थ के फ़ाउंडिंग एडिटर हैं. वे वीवॉक्स के को-फ़ाउंडर भी हैं.
डॉक्टर राव कहते हैं,‘‘यह एक ग़लत सोच है कि बुज़ुर्ग लोग अलैंगिक यानी एसेक्शुअल होते हैं. हमारा समाज वृद्धावस्था की कामुकता को लेकर अरुचिकर और उपहासभरे जोक्स बनाता है. सेक्स से जुड़े कई मिथक भी समाज में फैले हैं, जैसे- उम्र के साथ सेक्स की इच्छा में कमी आती है; इच्छा केवल शारीरिक आकर्षण पर ही निर्भर करती है; दिल की बीमारी अन्य बीमारियों से पीड़ित महिलाओं और पुरुषों को सेक्शुअल संबंध नहीं बनाने चाहिए; मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं के भीतर सेक्स की इच्छा में बहुत कमी आ जाती है, वगैरह. ये सभी मिथक उम्रदराज़ लोगों के बीच संबंधों के लेकर नकारात्मक भाव भरते हैं. मीडिया इस तरह की सूचनाओं से भरा हुआ है इसलिए बुढ़ापे में लोग ख़ुद को सेक्सशुअल रिश्तों से विलग मान लेते हैं.’’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर राव कहते हैं,‘‘ये बातें कई बुज़ुर्गों में भ्रम और निराशा पैदा कर देती हैं. सच तो ये है कि सेक्स की इच्छा की कोई एक्स्पायरी डेट नहीं होती! अधिकांश पुरुषों की प्रजनन क्षमता का कोई स्पष्ट अंत नहीं होता है और उनके हॉर्मोन्स के स्तर में भी अचानक कोई गिरावट होती नहीं देखी गई है. कई अध्ययनों में सामने आया है कि उम्रदराज़ महिलाएं और पुरुष दोनों में ही यौन आकर्षण और प्रदर्शन ख़ुश और स्वस्थ रहने का एहसास जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन वे अपनी इस इच्छा को अमल में ला पाते हैं कि नहीं, यह बात उनकी संस्कृति पर निर्भर करती है, इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें इस बात को लेकर कैसा महसूस कराया जाता है.’’
जैसा कि लेखक मार्क ट्वेन का कहना है: उम्र आपके दिमाग़ की सोच का मुद्दा है, यदि आप इसके बारे में नहीं सोचते तो उम्र कोई मुद्दा ही नहीं है.
फ़ोटो: गूगल