प्रेम, स्नेह, प्यार, इश्क़, मोहब्बत आप इसे चाहे कितने भी नाम दें, कितने भी आयाम दें, यही है जो इस दुनिया को चला रहा है. प्रेम न होता तो इस दुनिया में कुछ भी इतना हसीं न होता, दुनिया जीने के क़ाबिल न होती. प्रेम का दायरा कभी संकुचित नहीं होता. वो बांटता है, देता है. कभी रोकता नहीं, बांधता नहीं. फिर इस प्रेम की व्याख्या आप चाहे किसी भी रिश्ते में कीजिए: प्रेमी युगल, पति-पत्नी, माता-पिता, माता-पिता और संतान, दोस्त, सखि या वह अनजान व्यक्ति, जिसे पहली बार देखकर आप बिना किसी स्वार्थ के मुस्कुरा देते हैं, फिर चाहे वह महिला हो, पुरुष; बच्चा हो, युवा हो या वृद्ध. मेरी डायरी में आज आपको वो चंद अशआर मिलेंगे, जो मोहब्बत के नाम लिखे गए हैं.
चूंकि मौक़ा भी है और दस्तूर भी (वैलेंटाइन्स डे!) तो आपको अपनी डायरी के उन पन्नों तक लिए चलती हूं, जहां कई नामी शायरों के मोहब्बत से जुड़े वो अशआर दर्ज हैं, जो मोहब्बत के हर पड़ाव को यूं बयां कर जाते हैं कि जैसे ये हमारे समय में, हमारे बीच की, हमारे लिए कही गई बाते हों. आज जबकि देश का माहौल, सोशल मीडिया के चलते पहले से कहीं ज़्यादा सियासी हो चला है, तल्ख़ हो चला है, हमें ज़रूरत है एक अलग बोली की. शायर हफ़ीज़ जालंधरी की सुनें तो ये बोली ऐसी होनी चाहिए:
‘हफ़ीज़’ अपनी बोली मोहब्बत की बोली
न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी
मोहब्बत करनेवाले प्रेमी युगलों का साथी होता है चांद. कहते हैं मोहब्बत में पड़े प्रेमी युगलों की आंखों से नींदें नदारद रहती हैं. हर समय उन्हें रहता है अपने महबूब का ख़्याल. अब ये बात अलग है कि किसी का महबूब कौन है? ये हमारा-आपका कोई चाहनेवाला भी हो सकता है और हमारा कोई ऐसा उद्देश्य भी हो सकता है, जिसे हम पाना चाहते हों. साहिर लखनवी का का ये शेर इसी तरह की बात करता लगता है:
क्यूं मेरी तरह रातों को रहता है परेशां
ऐ चांद बता किस से तिरी आंख लड़ी है
इश्क़ एक ऐसी शै है, जिसपर किसी का बस नहीं चलता, जिसे, जिससे और जब होना होगा, हो ही जाता है. यह बात हमने-आपने अपने आसपास देखी भी होगी और क्या जाने, हममें से कईयों ने इसे महसूस भी किया हो. इस इश्क़ के मामले में मिर्ज़ा ग़ालिब से सुंदर बात भला कौन कह सकता है:
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
शायर तो ये भी कह गए हैं कि होशवालों को बेख़ुदी की ख़बर ही नहीं होती और ना ही उन्हें ज़िंदगी की समझ होती है. ज़िंदगी की असली समझ तो तभी विकसित होती है, जब आप किसी से बेवजह, बेइंतहां प्यार करते हैं. प्यार में पड़े हुए लोगों से पूछिए, वे यक़ीनन निदा फ़ाज़ली की इस बात से सहमत होंगे:
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
–
मोहब्बत करने वालों को अपने प्यार पर ग़ुमान भी होता है और अक्सर ये डर भी कि कहीं उनके प्रेम को किसी की नज़र न लग जाए. और तो और वो इस बात के लिए भी चौकस रहते हैं कि उनकी मोहब्बत को ज़माने की कैसी प्रतिक्रिया मिलती है. क़तील शिफ़ाई का यह शेर इस बात पर मुहर लगाता-सा लगता है:
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
मज़े की बात ये है कि मोहब्बत करने वाले युगल अपने प्यार को ज़माने से छुपाए भी रखना चाहते हैं और थोड़ा-थोड़ा जताना भी चाहते हैं कि उनके जीवन में कोई ऐसा ख़ास व्यक्ति है, जो औरों से कहीं ज़्यादा मायने रखता है. जां निसार अख़्तर का यह शेर इसी बात का इशारा करता है:
अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं
इक वक़्त आता है, जब प्रेमी जोड़े एक-दूसरे से प्यार का इज़हार करते हैं, जिसे दोनों ओर से स्वीकार कर लिया जाता है. तब पूरी दुनिया का मौसम गुलाबी हो या न हो, प्रेमी जोड़ों के लिए तो मौसम गुलाबी ही रहता है. उन्हें एक-दूसरे को देखभर लेने से जैसे जन्नत की ख़ुशी मिल जाती है. जिगर मुरादाबादी का यह शेर इसी ख़ुशी की तस्दीक करता है:
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूं मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूं मैं
जब प्रेमी जोड़े मिलते हैं तो उनके बीच समय की कमी को लेकर, कम मिल पाने को लेकर, एक-दूसरे के साथ ज़्यादा समय न बिता पाने को लेकर तमाम तरह के गिले-शिकवे होते हैं. बशीर बद्र ने मोहब्बत के इसी अंदाज़ को ऐसे कहा है:
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
प्रेमी जोड़ों में या फिर जिन दो लोगों के बीच मोहब्बत हो उनमें नोक-झोंक न हो तो प्यार गहराता कहां है? प्रेमी युगलों के रूठने-मनाने के क़िस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, लेकिन इस बात को बख़ूबी बयां किया है बासिर सुल्तान काज़मी ने:
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
इश्क़ अपने साथ कई तरह के इम्तिहां भी लेकर आता है. यह प्रेमी जोड़ों के बीच की दूरी हो, समाज से उन्हें न मिल पाई मंज़ूरी हो या फिर कोई और मजबूरी. इस बात को अलम्मा इक़बाल ने बड़े व्याहारिक तरीक़े से यूं समझा दिया:
सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं
लेकिन यह भी तो ज़रूरी तो नहीं कि हमेशा मोहब्बत दोतरफ़ा हो. कभी-कभी यह इकतरफ़ा भी होती है. ये इकतरफ़ा मोहब्बत, मोहब्बत करनेवाले को कितना घायल कर देती है उसकी बानगी आपको मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी के इस शेर में दिखाई देगी:
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
कौन से शहर में होता है किधर होता है
प्रेम में मिलना और मिल पाना होता भी होगा, पर इश्क़ के दीवानों को अक्सर जुदाई मिलती है और प्रेम में जुदाई पर इतने ज़्यादा शेर मिलते हैं कि यूं लगता है, जैसे एक न एक बार इन शायरों को दिल टूटा ज़रूर होगा. हफ़ीज़ होशियारपुरी ने इस बात को शब्दों में यूं पिरोया है:
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे
अपने स्नेहीजन से बिछड़ना कभी आसान नहीं होता. इसे भी शायरों ने अपने-अपने अंदाज़ में बयां किया है. जानेवाले के बाद उसकी यादों के बीच हम किस तरह तन्हा रह जाते हैं, मोहब्बत के इस रंग को गुलज़ार ने यूं जीवंत किया है:
आप के बा’द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
बिछड़ने के बाद जब हम अपने क़रीबी लोगों के बारे में सोचते हैं तो हमेशा पाते हैं कि हम बहुत अकेले हो गए हैं या हमारी दुनिया के आबाद होने के पीछे उस स्नेही व्यक्ति का कितना बड़ा हाथ था. अहमद फ़राज़ ने इस जज़्बे को इस शेर में जैसे साकार कर दिया है:
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
मोहब्बत की परिभाषा में रूहानियत का और पूरी दुनिया का समावेश होता है. हर तरह के स्नेह और प्रेम को इस परिभाषा में कैसे समेटा जा सकता है, किस तरह लोगों के बीच आपसी वैमनस्यता को ख़त्म करने का, मोहब्बत से साथ-साथ रहने का पैग़ाम दिया जा सकता है यह आपको दिखेगा दाग़ देहलवी के इस शेर में:
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता
फ़ोटो: गूगल