हफ़्ते में एकाध बार गचगचा के तीखा खाएं. मिर्च-मसालेदार खाने को सप्ताह में एक बार अपने खानपान का हिस्सा ज़रूर बनाएं. यह सलाह है डॉक्टर दीपक आचार्य की और वे ये सलाह क्यों दे रहे हैं यह जानना चाहते हैं तो पढ़िए उनका यह आलेख.
मुझे आदिवासियों के साथ काम करते करते 21-22 बरस हो चले हैं और इस दौरान मैंने शायद ही किसी आदिवासी को दिल की बीमारी यानी हार्ट की प्रॉब्लम से जूझते देखा है. पातालकोट में एक बुज़ुर्ग जानकार से चर्चा करते हुए एक बार पूछ ही बैठा था कि आख़िर इनके खानपान में इतना तीखापन क्यों होता है? बुजुर्ग से सीधा सट्ट जवाब मिला “कलेजा और दिल को मजबूत रखना है तो भरपूर तीखा खाओ.” ये तो हुई बात गाँव देहात की. अब पढ़िएआगे की बात…
“न्यूट्रिशन जर्नल” में वर्ष 2014 में एक रिसर्च पेपर में उस खोज के बारे में बताया गया, जिसमें ख़ूब सारे मसालों जैसे दालचीनी, हल्दी, लहसुन, जीरा, अजवायन, तेजपान, लौंग, काली मिर्च, अदरक, प्याज़, मिर्च आदि से तैयार “करी” या सब्ज़ी तैयारी की गई और इसका सेवन 45 वर्ष की आयु के आसपास वाले 14 स्वस्थ लोगों को कराया गया. इतने ही लोग यानी 14 अन्य स्वस्थ लोगों को इसका सेवन नहीं कराया गया और उन्हें बग़ैर मसालों वाले आइटम दिए गए. इस ट्रायल से पहले और बाद में इन लोगों के ब्लड वेसल्स का बाक़ायदा परिक्षण किया गया. इस एक्सपेरिमेंट के बाद दोनों ग्रुप के लोगों के वेसल्स की मेडिकल रिपोर्ट्स कराई गईं. जिन्होनें करी का सेवन किया, उन तमाम लोगों के ब्लड वेसल्स में रक्त प्रवाह (Blood Flow) की दर तेज़ (Increased FMD- Flow Mediated Vasodilation) होने की बात सामने आई, जबकि दूसरे ग्रुप लोगों में इस दर का घटाव (Decreased FMD) देखा गया. रिपोर्ट में बताया गया कि मसालों में पाए जाने वाले ऐंटीऑक्सिडेंट्स की वजह से ऐसा होता है. मुद्दे की बात ये है कि यह रिपोर्ट संकेत देती है कि जिन लोगों के हृदय की धमनियों में कठोरपन (Hardening of Arteries) की शिकायत होती है, जिसे एथिरोस्क्लोरोसिस कहा जाता है, उन्हें इस तरह के तीखे व्यंजन खानपान में ज़रूर शामिल करना चाहिए.
तो अब क्या? बस, सप्ताह में एकाध बार ख़ूब मसालेदार तीखी करी या सब्ज़ी खाना शुरू करें. ऐसे ही तीखे, चटपटे मसालों से तरबतर सब्ज़ियों के सेवन की वजह से आदिवासी भी चुस्त दुरुस्त रहते हैं. ये ढक्कन टाइप की रिसर्च तो वर्ष 2014 में हुई है जबकि हमारे आदिवासी तो तीखे मसालेदार खानपान के आइटम्स 2014 वर्षों से खा रहे होंगे, और वो भी बाकायदा ये मानकर कि ये टनाटन बने रहने के लिए बहुत ज़रूरी है.
भई इस बात को जान लीजिए कि सभी सेहत समस्याओं के रोकथाम का सही जुगाड़ आपकी रसोई में ही है या आपके बिल्कुल इर्दगिर्द में..मल्टीस्पेशियालिटी अस्पताल में तो इलाज होता है, रोकथाम नहीं.
जानता हूं कि तीखा खाने वाले आज दीपक आचार्य को गला लगाने की सोच रहे होंगे. अरे नहीं दद्दा, कोरोना गया नहीं है, आजू-बाजू में ही है, मास्क पहने, डिस्टेन्सिंग रखें अभी. गले-वले लग लेंगे, आराम से फिर कभी. हां, पहले मेरे साथ थोड़ा भटको तो सही…
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट