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मोहभंग: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
May 31, 2023
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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Dr-Sangeeta-Jha_Kahani
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यह एक पवित्र प्रेम कहानी है या बेशर्म बेवफ़ाई की दास्तां? पूरी कहानी को पढ़ने के बाद इसे इन दोनों में से किसी एक कैटेगरी में रखने में आपका सिर चकरा जाएगा. लेखिका डॉ संगीता झा की यह रोमांच से भरी मज़ेदार कहानी आपको इसी जद्दोजहद में छोड़ जाएगी.

सुबह के सात बजते ही फ़ोन की घंटी भी बजने लगी. बेटी ज़ोर से चिल्लाई,“व्हाट्स दिस मॉम? चैन भी नहीं लेने देती आप. मना करो अपने इस आशिक़ को, सुबह-सुबह तो कम से कम फ़ोन ना करे. अपनी बीबी बच्चों पर ध्यान क्यों नहीं देता?’’
कृष्णा ने भी अंगड़ाई लेते हुए जवाब दिया,“छोटी हो, ज़्यादा बात करने की ज़रूरत नहीं है.”
फ़ोन उठा साइलेंट मोड में डाल करवट बदल लेट गई. मालूम था फ़ोन बार-बार बजने वाला है. उसे भी फ़ोन करनेवाले से बात करने में बड़ा मज़ा आता है, लेकिन बेटी आहना की वजह से डर कर चुपचाप लेट गई. क्या स्त्री के पास शादी के बाद किसी से प्रेम करने का अधिकार नहीं है? क्या एक से ज़्यादा प्रेम और संबंध सिर्फ़ मर्दों के लिए जायज़ है? ये सारे सवाल कृष्णा के दिमाग़ की घंटी बजा देते हैं. क्या आहना मुझे माफ़ कर पाएगी मेरे इस क़दम के लिए.
इतने सारे टेड टॉक सुने, इतनी रीसर्च की. हर जगह यही जवाब मिला,‘यू हैव वन सेट ऑफ़ लाइफ़, लिव इट फ़ुली, ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा.’
फिर लगता आहना का क्या दोष, वो तो शर्मा जी से बड़ी अटैच्ड है. काश प्यार की भाषा इतनी सरल होती… प्यार की शारीरिक ज़रूरत भी होती है.
कृष्णा सोचते-सोचते बारह साल पहले की कृष्णलीला स्वामीनाथन बन गई. कलकत्ता के जोका में एडमिशन बहुत बड़ी बात थी. अप्पा और अम्मा तो फूले नहीं समा रहे थे. तमिलनाडु के कोयंबटूर के बॉटनी के प्रोफ़ेसर की बेटी, पूरा शहर बधाई देने पहुंच गया. पहली बार घर से बाहर निकली थी. अम्मा-अप्पा भी उसे इंस्टीट्यूट तक छोड़ने आए थे. हमें दरवाज़े पर ही प्रोफ़ेसर सर्वकांति शर्मा मिल गए. अप्पा तो इतने डाउन टु अर्थ प्रोफ़ेसर को देख गदगद हो गए. शर्मा जी अब आईआईएम में कृष्णा के दूसरे अप्पा बन गए. हिन्दी और बंगाली उसे आती नहीं थी. शर्मा जी असामी होने से बंगला भी अच्छी बोल लेते थे. जहां कृष्णा को डे टुडे लाइफ़ में छोटी-छोटी चीज़ों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी, वहीं शर्मा जी का वेल फ़र्निश्ड अपार्टमेंट था और शर्मा जी पाक विद्या में निपुण. शर्मा जी को भी इस तमिल पोट्टी में एक अलग-सी कशिश दिखी. यूं तो उम्र का अंतर क़रीब नौ साल का था, पर जब स्पार्क हो तो उम्र मायने नहीं रखती. पर शायद ये कृष्णा की तरफ़ से फ़ायदे वाला प्यार ज़्यादा था. सर्वकांति आसाम के छोटे से गांव से थे जिससे इसके पहले उनका किसी पढ़ी-लिखी इंगलिश बोलने वाली लड़की से पाला नहीं पड़ा था. कृष्णा तो जैसे उनके लिए आसमान से उतरी उर्वशी थी. वहीं सर्वकांति यानी शर्मा जी कृष्णा के लिए पैम्पर करने वाला, खाना बना के खिलाने वाला साथ ही पढ़ाने वाला फ़ुल पैक प्रेमी. जोका में आने के एक ही महीने बाद ही कृष्णा शर्मा जी के घर शिफ़्ट हो गई. बेचारे शर्मा जी भिन्न-भिन्न तरीक़े से अपनी कृष्णा को ख़ुश करने में लगे रहते. अप्पा-अम्मा खबर मिलते ही दौड़े-दौड़े कलकत्ता आए. यहां समझाने का कोई प्रश्न तो था ही नहीं. उनकी बेटी तो लिव इन रिलेशन में थी. कहां अप्पा को लगा था कि वे अपनी कृष्णा के लिए दूसरे बाप का इंतज़ाम कर के गए थे और यहां तो माजरा ही दूसरा था. शर्मा जी तो कृष्णा के प्यार में पागल थे इसलिए जो अप्पा ने कहा सब मान लिया. वहीं के तमिल समाज के कुछ लोगों को इकट्ठा कर आनन-फ़ानन में तमिल रीति रिवाज से कृष्णा की शादी हो गई. शर्मा जी ने अपने परिवार से किसी को ना बुलाया, ना ही उन्हें इत्तला दी. शादी से बस इतना फ़र्क़ पड़ा कि उनका रिश्ता ऑफ़िशियल हो गया और शर्मा जी माई वाइफ़ कह कृष्णा का इंट्रोडक्शन देने लगे. कृष्णा के अम्मा-अप्पा को थोड़ी निराशा तो हुई, पर शर्मा जी की सेवा ने उनका दिल जीत लिया. अपना कोई बेटा ना होने से शर्मा जी उन्हें बेटे की तरह लगे. अब पूरे कैंपस में कृष्णा की पहचान शर्मा जी की बीवी के रूप में हो गई. शर्मा जी का पूरे आईआईएम में बड़ा नाम था. उनके जैसा माइक्रोइकोनोमिक्स और एकाउंटिंग का ज्ञाता पूरे आईआईएम में कोई नहीं था. शादी के दो महीने बाद ही शर्मा जी को आईआईएम अहमदाबाद में अच्छा प्लेसमेंट मिल गया. पूरे भविष्य का सवाल था और अहमदाबाद वालों ने ख़ुद बुलाया था. कृष्णा, जिसे शर्मा जी प्यार से किचु कहते थे इन दो महीनों में ही शर्मा जी के इतने ज़्यादा प्यार और लाड़ से उकता गई थी. आसामी होने से शर्मा जी च को श और शर्मा को सर्मा उच्चारण करते थे. किचु के तमिल के तन्नी यानी पानी को जोल बोलते थे और पानी और सिगरेट पीते नहीं खाते थे. जब भी बोलते,“हम सिगरेट खा के आता है.’’ किचु को बड़ी शर्म आती थी. वो भी तो किधर को किदर और ख़ुद को आता है शर्मा जी को आती है, वो भी अटक-अटक कर बोलती थी. लेकिन दुनिया की रीत ही है कि हम करे तो होम और आप करे तो पाखंड. जहां शर्मा जी अपनी किचु को छोड़ के जाने के नाम पर रो-रो के बेहाल थे वहीं कृष्णा तो जान छूटी वाले ख़्याल से गुज़र रही थी.
शादी के दस दिन बाद से ही वो अपने फ़ैसले पर पछता रही थी. पूरी तरह से मोहभंग हो चुका था. उसे शर्मा जी से घुटन होने लगी थी और और उसे हीरो मटेरियल की तलाश थी. दूसरे सारे एमबीए स्टूडेंट्स शर्मा सर की बीवी मान कोसों दूर रहते थे. तभी सेकेंड लिस्ट कृष्णा की क्लास में एक हरियाणवी लड़का जोगिंदर सिंह आया. हाइट सिक्स टू, सीना फ़िफ़्टी टू, पेट बिलकुल चिपका और अंग्रेज़ी फ़र्राटेदार. कृष्णा की अंग्रेज़ी भी कुछ दक्षिण भारतीय और दूसरे कॉन्वेंट एजुकेशन सबसे अलग थी. बस कृष्णा की दोस्ती जोगिंदर से हो गई. थोड़े दिनों में वो जोगिंदर से जोगी और वो शर्मा जी की किचु से जोगी की किसु बन गई. उधर शर्मा जी अहमदाबाद में अपनी क़ाबिलियत के झंडे गाड़ रहे थे और इधर उनकी किचु अपने जोगी के साथ प्यार के कशीदे. जोका में सारे टीचर्स-स्टूडेंट शर्मा जी को अच्छे से जानते थे. एक दो लोगों ने कृष्णा को अपने चेंबर में बुला कर समझाने की कोशिश भी की. कृष्णा का तो अपने शर्मा जी से पूरी तरह ‘मोह भंग’ हो चुका था लेकिन शर्मा जी अपनी किचु के पीछे पूरी तरह से पागल थे. किचु ने उन्हें मल्होत्रा और मिश्रा सर की इस तरह शिकायत की कि,“शर्मा जी नाउ आई एम अलोन, यू आर आल्सो नॉट देयर. देयर इज़ ए न्यू क्लास फ़ेलो ऑफ़ माइन जोगिंदर हू हेल्प्स मी इन गेटिंग ग्रॉसरी ऐंड स्टडीज़ टू. योर फ़्रेंड्स मल्होत्रा ऐंड मिश्रा आर मेकिंग बिग स्टोरी आउट ऑफ़ इट. दे हैड दी गट्स टू कॉल मी ऐंड वॉर्न्ड मी. बिग गॉसिप मोंकर’’ इतना बोल वो झूठ-मूठ का रोने लगी. बेचारे शर्मा जी प्यार में अंधे ने दोनों दोस्तों को फटकार लगाई और उन्हें अपनी प्यारी किचु की ज़िंदगी से दूर रहने कहा. उसके बाद तो किचु मैडम ने हद ही कर दी. दोनों यानी किचु और जोगी जॉइंट स्टडी के बहाने कभी डिपार्टमेंट में तो कभी किचु के अपार्टमेंट में पड़े रहते. पूरे जोका में हर तीसरा आदमी जोगी और की किचु की बातें करता और शर्मा जी की नादानी पर तरस खाता.
शर्मा जी इस बीच अपनी किचु से मिलने भी आए और मज़े की बात शर्मा जी ने जोगी को भी अपने यहां शिफ़्ट करा लिया और वे दोनों को पढ़ाने भी लगे. ठीक उनकी नाक के नीचे ही किचु और जोगी की प्रेम कहानी चलने लगी. शर्मा जी ,जोगी के आभारी हो गए कि उनकी अनुपस्थिति में भी वो उनकी किचु का कितना ध्यान रखता है. जब उनके दोस्तों को उनकी इस सोच का पता चला, सबने सर पकड़ लिया. शर्मा जी ख़ुद फ़क़ीरों की तरह रहते और अपनी सारी कमाई किचु पर उड़ा देते. इधर किचु की ज़िंदगी में एक बड़ा भूचाल आया जब उसे पता चला कि उसके जोगी जी पहले से ही ना केवल शादीशुदा, बल्कि दो बच्चों के बाप हैं. ज़्यों ही हरियाणा के सिरसा तक ये बात पहुंची कि जोगी जी अक्सर एक लड़की के साथ पाए जाते हैं. उनकी बीवी, जिसे जोगी में उसके मां-बाप के पास छोड़ रखा था दोनों बच्चों को लेकर इंस्टीट्यूट आ गई और डायरेक्टर के कमरे के सामने धरना दे कर बैठ गई. पूरे जोका में हल्ला हो गया. जब सबको पता चला कि उसका नाम एंड्रिया है और उससे जोगी का प्रेम विवाह है और वो भी घर वालों से लड़कर… सुन सबके होश उड़ गए. यहां भी किसु यानी कृष्णा ने बिना जोगी पर नाराज़ हुए दिमाग़ लड़ाया. सोचा वो भी मिसेज़ शर्मा है, क्या हुआ अगर उसका जोगी शादीशुदा है. वो ख़ुद डायरेक्टर ऑफ़िस गई और एंड्रिया और बच्चों को अपने घर ले आई. लाने के पहले उसने अपने घर से वो सारे निशान जो जोगी की मौजूदगी दर्शाते थे मिटा दिए. कलकत्ता शहर में मदर टेरेसा बन उसने उनका ख़ूब ख़याल रखा और एंड्रिया के सामने जोगी को ख़ूब खरी खोटी सुनाई. उन्हें अपने घर पनाह दे, वो जोगी के रूम में पढ़ाई के बहाने जा ख़ूब गुलछर्रे उड़ाने लगी. इधर सारे गॉसिप करने वाले देखते रहे, उधर एंड्रिया और शर्मा जी उसके फैन. सबसे कहते फिरते “कृष्णा हैज़ लार्ज हार्ट, लुक हाउ शी इज हेल्पिंग एंड्रिया डिसपाइट हर रुडनेस.”
थोड़े दिनों तक तो जोगी भी हैरान था, लेकिन जब उसकी किसु उसके साथ उसके रूम में गुलछर्रे उड़ाने लगी, तो उसे समझ में आया कि किसु जितनी बाहर बेचारी है, उतनी ही अन्दर भी है. लेकिन ये नाटक एक महीने से ज़्यादा नहीं चला. एंड्रिया को बेवक़ूफ़ बनाना आसान नहीं था. पति जोगी की हरकतें और कृष्णा की ज़रूरत से ज़्यादा अच्छाई ने उसके अन्दर शक़ पैदा कर दिया. अचानक बच्चों को घर पर शर्मा जी के साथ छोड़, बाज़ार जाने के बहाने उसने जोगी के रूम में छापा मार दिया. अन्दर जोगी और कृष्णा थे और वो एक विवाहित जोड़े का कमरा लग रहा थ. एंड्रिया ने हल्ला मचा पड़ोसियों को इकट्ठा कर लिया जो ज़्यादातर एमबीए स्टूडेंट थे. तभी वहां शर्मा जी, कृष्णा के कृष्ण बन वहां पहुंच गए और बेचारी एंड्रिया को ही दोषी ठहराने लगे कि,“तुम्हारा हिम्मत कैसे हुआ किचु को कुछ बोलने का? वो तुमको तुम्हारा बच्चा लोग को अपनी घर लाया. इधर दोनों पढ़ती है, कितना पढ़ाई है तुमको मालूम!’’
एंड्रिया तो मुंह खोल के सिर्फ़ पूरी सिचुएशन को देख रही थी, करे भी तो क्या. दो बच्चों के साथ मां कितनी मजबूर होती है, उस पर से छोटी बेटी को देख बहुत लोग उसे पूछते कि उसकी बेटी ऑटिस्टिक तो नहीं है. बेचारी एंड्रिया और पागल शर्मा जी… सबने ऐसा सिर्फ़ ऐसा सोचा पर कोई भी एंड्रिया की मदद करने या शर्मा जी का दिमाग़ ठीक करने में इंटरेस्टेड नहीं था.
जोगी अपनी पत्नी और प्रेमिका के बीच बड़ी अच्छी तरह से ज़िंदगी मैनेज कर रहा था. कृष्णा भी उसकी बेटियों के लिए अक्सर कुछ ना कुछ गिफ़्ट ले आया करती थी. बेचारी एंड्रिया… सब कुछ देख भी चुप रहती, लेकिन एक बात ज़रूर थी कि जोगी से उसका मोहभंग हो गया था. कई बार सोचा, अपनी पुरानी नर्स की ड्यूटी फिर से शुरू कर दे, पर परेशानी ये थी कि बच्चों को देखेगा कौन? जोगी के पिता एक बार आईसीयू में एडमिट थे तब एंड्रिया ने बतौर नर्स उनकी बहुत सेवा की थी. उसी दौरान जोगी और एंड्रिया क़रीब आए और घर वालों को बिना बताए कोर्ट मैरिज कर ली, क्योंकि एंड्रिया का ईसाई होना उसके अच्छे इंसान होने से ज़्यादा मायने रखता था. एंड्रिया अक्सर सोचती कि कहां तो साथ जीने मरने की कसमें और अब ये मोहभंग.
इसी बीच शर्मा जी की किचु और जोगी की किसु प्रेगनेंट हो गई. उसने अपना कोर्स पूरा कर आईआईएम में ही बतौर शर्मा जी की ऐकडेमिक एसोसिएट ज्वाइन कर लिया. सात महीने में ही प्रीमैच्योर बेबी यानी आहना का जन्म हुआ. जोगी ने पूरे एमबीए में टॉप किया और उसने भी शर्मा जी की मदद से आईआईएम अहमदाबाद में फ़ैकल्टी के रूप में ज्वाइन कर लिया. शर्मा जी, जोगी और यहां तक एंड्रिया भी आहना की सेवा में लग गए और दो महीने वेंटिलेटर में रहने के बाद आहना मौत के मुंह से बाहर आई.
शर्मा जी, कृष्णा, जोगी और एंड्रिया की ज़िंदगी उसी तरह चल रही है. आहना अपने पिता शर्मा जी के दिल का टुकड़ा है. उसे जोगी अपने मम्मा-पापा की ज़िंदगी में बड़ा खटकता है. उसे भी ठीक एंड्रिया की तरह इंतज़ार है काश… जोगिंदर अंकल का उसकी मम्मा के प्रति मोहभंग हो जाए. काश…

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डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

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