पति की मौत के बाद पूरी तरह बिखरी मणी कैसे संभालती है ख़ुद को. हिंदी माह की नई कहानियों की सिरीज़ में आज पढ़ें, सुमन बाजपेयी की कहानी ‘फ़िनिक्स फिर जी उठे’.
‘तूने अपनी जिंदगी के दस बेहतरीन साल उस घर को दिए और आज उसी घर में तेरे लिए कोई जगह नहीं है. एक तपस्या करते हुए तूने अपना र्स्वस्व लगा दिया ताकि उस घर का हर सदस्य ख़ुश रहे, सफल हो सके जीवन में कोई न कोई मुकाम हासिल कर सके…और ऐसा हुआ भी. तेरी तपस्या व्यर्थ नहीं गई मणी. ईंट-ईंट जोड़कर तूने जिस मकान को घर का रूप दिया, जिसे एक मज़बूत नींव पर खड़ा किया था, उसकी एक ईंट हटते ही तू भी उनके लिए ग़ैरज़रूरी हो गई. कितनी आसानी से उन्होंने तेरे अस्तित्व को ही नकार दिया. इतने सालों से तू सबका बोझ ढोती आ रही है और विडंबना तो देखो, आज तू उनके लिए बोझ हो गई है…क्या त्याग और ख़ुद की निजता को राख कर देने की ऐसी सज़ा मिलती है…’ नारायणी के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मणी के जले हुए हाथ को देख उनकी ममता सिसक रही थी. उनकी इतनी क़ाबिल और शालीन बेटी के साथ आख़िर ऐसा क्यों हुआ…
‘आप क्यों परेशान हो रही हैं मां. मैंने जो भी किया अपना फ़र्ज़ समझकर किया और उन्होंने जो किया उसके लिए उन्हें क्यों दोष देना. इंसान का डर, उसकी इंसिक्योरिटीज़ उससे न जाने क्या-क्या करवा लेती है. यह हमारे समाज की आज की विसंगति है जिसकी वजह से परिवार तेज़ी से बिखर रहे हैं. धन-संपति के लिए तो युगों से रिश्ते दरकते आए हैं. इसमें नई बात क्या है. मुझे किसी से भी कोई शिकायत नहीं है, बस उन लोगों से मैंने जो प्यार का नाता जोड़ा था, उसके टूट जाने का दर्द अवश्य है.’ मणी की पीड़ा उसकी आंखों से छलक उठी.
छह महीने ही तो हुए हैं अभी अनुभव को गए हुए. उसके जाने के दुख को अभी समेट भी नहीं पाई थी कि उसे उसके घर की देहरी से चले जाने का हुक़्म सुना दिया गया.
बाएं हाथ में चीसें सी चलती महसूस हुईं तो उस पर ढके आंचल को सरकाते हुए वह हाथ पर मलहम लगाने लगी. वह तो कभी सोच भी नहीं सकती थी जिस देवर को सदा उसने अपना पुत्र माना, वही उसे जलाकर मार देने की कोशिश कर सकता है. जिस ननद को बेटी का प्यार दिया, वही उसे आग में झुलसाने के लिए अपने भाई का साथ दे सकती है. और उसकी सास जिन्होंने उसे हमेशा बेटी माना और जिसकी सेवा करने में मणी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, वह उसे पनौती मान घर से निकालने के लिए कमर कस सकती है. क्यों चले गए अनुभव तुम…तुम्हारे जाने से रिश्तों के सारे मायने ही बदल गए. अपनी भाभी को मां का दर्जा देने वाला उसका देवर अनुराग और ननद अनुभूति ने कैसे तुम्हारे आंख बंद करते ही उसे मां की पदवी से हटा एक मुसीबत के पाले में खड़ा कर दिया.
‘जब भाई ही नहीं रहा तो भाभी इस घर में रहकर क्या करेंगी,’ अनुराग के ये शब्द उसे छलनी कर गए थे. बड़ी आशा से उसने अपनी सास की ओर देखा था, पर उनकी आंखों में हमेशा उसके लिए बसी रहने वाली ममता जैसे बेटे को खोते ही कहीं ग़ायब हो गई थी.
‘सही तो कह रहा है. मेरा बेटा चला गया. फिर तू निपूती…मेरे बेटे का वंश ही ख़त्म कर दिया तूने. पनौती बन गई है तू तो.’ दिन-रात जिस बहू के उसकी सास गुण गाते नहीं थकती थीं, वह ऐसा कह रही थीं. दूसरा बेटा कहीं रूठ न जाए, यही विवशता रही होगी उनके अंदर. बुढ़ापे में उसकी बात न मानने का मतलब था कि अपने बुढ़ापे को ख़राब करना.
धूप कमरे में झांकने लगी तो उसने परदे हटा दिए. एक तपिश उसे सहला गई, लगा अनुभव का स्पर्श उसके मन और शरीर के घावों को सहला रहा है. कितना प्यार करता था वह उसे, एक एक्सीडेंट हुआ और सब ख़त्म हो गया. अनुभव का एहसास ही उसे रोमांचित कर गया. मणी बीते दिनों की सुखद यादों की परतें खोलने लगी.
दस साल पहले उसकी और अनुभव की अरेंज मैरिज हुई थी. वह हमेशा अरेंज मैरिज को लेकर आशंकित रहती थी, पर अनुभव के साथ और विश्वास ने मानो उसकी ज़िंदगी में असंख्य चटक रंग भर दिए थे. वह हाईली क्वॉलिफ़ाइड थी, नौकरी भी करती थी और घर भी बख़ूबी संभालना जानती थी, इसलिए उसे लगता था कि शादी के बाद कहीं उसके पर न कतर जाएं. कहीं उसकी ख़ुशियों को रुढ़ियों की संकरी सोच के नीचे दबा न दिया जाए. पर अनुभव ने पग-पग पर उसे नए माहौल में एड्जस्ट करने में मदद की. देवर, ननद छोटे थे, सास से अकेले घर नहीं संभल रहा था उनके घुटनों का दर्द उन्हें परेशान करता था. अनुभव ने कहा कि कुछ समय के लिए वह नौकरी छोड़ दे. उसके भाई-बहन लायक बन जाएं तब वह जो चाहे कर सकती है. उसके प्यार में झूलती मणी ने वैसा ही किया. अपने घर की नींव को पुख्ता करने के लिए और अनुभव के उसके प्रति विश्वास का मान रखने के लिए वह इस बात के लिए सहर्ष तैयार हो गई. मां ने टोका भी था उसे इस बात के लिए कि नौकरी करते हुए भी घर संभाला जा सकता है, अपनी पढ़ाई को यूं व्यर्थ न करे. ठीक भी था उनका समझाना कि आज वह जिस मुकाम पर उसे पाने के लिए उसने बड़ी मेहनत की थी. फिर एक बार समय का अंतराल आ गया तो उसे दुबारा से मेहनत करनी पड़ेगी अपनी पहचान बनाने के लिए. पर तब अनुभव के प्यार के रंग में रंगी मणी ने ही कहा था, ‘मां, मेरी पहचान अब अनुभव से है और मैं उनके विरुद्ध नहीं जा सकती. कुछ सालों की तो बात है और फिर पढ़ाई कहां कभी बेकार जाती है.’
अनुराग और अनुभूति को क़ामयाब बनाने का ज़िम्मा उसने अपने हाथ में ले लिया. सास को आराम करने के लिए कहा और झोंक दिया ख़ुद को उस घर में. अनुभव के लिए वह कुछ भी कर सकती थी, इसलिए कभी न तो अपने करियर को दांव पर लगाने का अफ़सोस हुआ और न ही अपनी पढ़ाई-लिखाई को व्यर्थ कर देने का पछतावा.
अनुभव भी तो कितना मान करते थे उसका. मां और अपने भाई-बहन पर जान छिड़कते थे. घर की ज़िम्मेवारियों में वह ऐसी उलझी कि यह भी नहीं सोचा कि आख़िर वह मां क्यों नहीं बन पा रही है. अनुभव ही कहते, ‘कोई नहीं, हमारे दो बच्चे तो पहले ही हैं. बस उनकी परवरिश अच्छे से हो जाए तो सोच लेंगे अपने बच्चे के बारे में.’
देवर-ननद की परवरिश भी अच्छे से हो गई और वे क़ाबिल भी बन गए, बस वही दोनों संतान सुख से वंचित रह गए. मणि ही कहां फिर कुछ सोच पाई. अपडेट रहना कितना ज़रूरी है दौड़ में बने रहने के लिए, यह बात कब उसके ज़हन से उतर गई, उसे पता ही नहीं चला. बस एक धुन सी लग गई थी कि उसे कि एक परफ़ेक्ट पत्नी, बहू और भाभी-मां बनना है. उसे ये भूमिकाएं निभाने में मज़ा आने लगा है, इस बात का एहसास ही नहीं हुआ. सच में किसी औरत को दूसरों के लिए जीना, अपने सपनों को अंधेरों में धकेल देना, किसी को सिखाना नहीं पड़ता, वह तो जैसे उसके स्वभाव में होता है, उसके अंतस में हर पल पलते बीज की तरह ज़रा सी हवा मिली, ज़रा सा पानी डाला, वह लहलहाने लगता है.
अनुभव भी तो जब तक जीवित थे, मेहनत ही करते रहे. बाप-दादा की संपति को कभी हाथ नहीं लगाया, पर ख़ुद ही भाई-बहन के लिए जोड़ते रहे. बहन की शादी धूमधाम से हो, हमेशा यही चाहते थे. जाने से एक महीने पहले यह काम भी वह कर गए थे. अनुभव के बाद जब अनुराग ने घर की बागडोर संभाल ली तो मणि ने सोचा था कि अब वह आराम कर पाएगी, कुछ अपने बारे में सोच पाएगी…एकदम ख़ाली-सी हो गई थी वह. लेकिन उससे पहले ही अनुराग ने अपना फ़ैसला सुना दिया था.
‘भइया नहीं रहे, तो आप यहां रहकर क्या करेंगीॽ आपको प्रॉपर्टी में हिस्सा देने का तो सवाल ही नहीं होता. घर में सारा दिन बैठी रहती हैं, कोई नौकरी कर रही होतीं तो कम से कम अपना ख़र्च तो उठा लेतीं. मैं आपको ख़र्चा नहीं उठा पाऊंगा. मुझे भी अपना घर बसाना है.’
‘वैसे भी जब आप इस घर को एक चिराग न दे सकीं तो आपकी वैल्यू ही क्या है,’ अनुभूति के शब्द किसी थप्पड़ की तरह उसके गाल पर लगे थे. जिन पर अपनी ममता लुटाई, लाड़-प्यार दिया, स्नेह के दीप जिनके लिए जलाती रही, उनके लिए वह यूज़लेस हो गई थी…यानी सिर्फ़ वह अनुभव से जुड़े होने के कारण ही यहां थी. बदलते समाज की तसवीर ही शायद उन दोनों के चेहरे पर तैर रही थी. पैसा रिश्तों को चटकाने की ताक़त रखता है.
जब उसने घर छोड़कर जाने से मना कर दिया तो उन दोनों ने उसे जलाने की कोशिश की, पर शायद सास के अंदर की मां अभी जीवित थी, जैसे उनकी सेवा कर जो पुण्य कमाए थे, वही उसके काम आ गए. उन्होंने उसे बचा लिया, बस हाथ जल गया था. दिल और हाथ पर मोटे-मोटे फफोले लिए वह मां के पास आ गई थी. चाहती तो अपने हक़ के लिए कोर्ट में जा सकती थी, पर जब मन पर ही अलगाव और कटुता के मोटे-मोटे ताले पड़ गए हों तो अदालत के दरवाज़े खटखटाने का क्या फ़ायदा था. संपति में हिस्सा मिल भी जाता तो भी उन लोगों की जि़ंदगी का वह फिर से हिस्सा नहीं बन पाती.
‘कितना समझाया था तुझे. समय रहते ख़ुद की पहचान को खोने न देती तो आज यह स्थिति न आती. उन्होंने तो तेरा हाथ ही जलाया है पर तूने तो उनके लिए अपनी निजता को ही राख कर दिया, मेरी बच्ची.’ नारायणी फिर से रोने लगी थीं.
‘मां, आपकी बेटी कमज़ोर नहीं है. सच है कि मेरी निजता राख हो गई है, मेरे स्नेह और तपस्या का मजाक उड़ाया गया है पर मां यह मत भूलो कि अपनी राख से ही फ़िनिक्स पक्षी दुबारा जन्म लेता है. मैं हार नहीं मानूंगी. जीने की लय को गुनगुनाना नहीं छोडूंगी. मैं तो अभी जिंदा हूं.’
उसने कहीं पढ़ा था फ़िनिक्स नाम का पक्षी जब मरने वाला होता है तो गाने लगता है. उसकी आवाज़ से उसके शरीर के मांस में से आग पैदा होती है…और वह उसी में जल जाता है..जल कर राख हो जाता है..फिर उस राख पर जब बारिश पड़ती है..तो एक अंडा बन जाता है..जिसमें से कुछ समय बाद एक और फ़िनिक्स निकलता है…इसे ही उसका जीवन चक्र चलता रहता है…वह मर कर फिर जी उठता है..
उसे लगा वह भी कुछ समय के लिए फ़िनिक्स ही बन गई थी. लेकिन जलने के बाद फिर से वह भी जीएगी फ़िनिक्स की तरह. वैसे भी अनुभव का प्यार व विश्वास सदा उसके साथ रहेगा.
‘मां समझ लो, राख होने के बाद मेरा दूसरा जन्म हुआ है. मैं फिर से एक नई राह तलाशूंगी. भी अंत कहां हुआ है…बस विराम आ गया था और विराम का अंतराल थोड़े समय के लिए ही होता है…
शाम गहरा गई थी. अचानक तेज़ बारिश होने लगी. वह बाहर बरामदे में भागी. उसे भीगना था, ताकि फ़िनिक्स फिर से जी उठे.
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