• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ओए हीरो

कस्तूरबा गांधी के आख़िरी पल: क्यों बापू बीमार बा को पेन्सिलिन के इंजेक्शन लगवाने के ख़िलाफ़ थे?

प्रमोद कुमार by प्रमोद कुमार
April 11, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, शख़्सियत
A A
कस्तूरबा गांधी के आख़िरी पल: क्यों बापू बीमार बा को पेन्सिलिन के इंजेक्शन लगवाने के ख़िलाफ़ थे?
Share on FacebookShare on Twitter

महात्मा गांधी के जीवन पर एक महत्वपूर्ण व चर्चित उपन्यास ‘गिरमिटिया’ लिखने वाले गिरिराज किशोर ने उनकी धर्मपत्नी कस्तूबा के जीवन पर ‘बा’ नामक उपन्यास लिखा है. उसमें उन्होंने गांधी जैसे विराट व्यक्तित्व की पत्नी वाले रूप के साथ-साथ एक स्त्री और एक स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा को रेखांकित किया है. प्रस्तुत है उस किताब का एक अंश, जिसमें कस्तूरबा के आख़िरी पलों का लेखक ने चित्रण किया है.

सुशीला रातभर जगी थी. सवेरे सात बजे उठकर मुंह धो रही थी. बा ने पुकारा,’सुशीला…’
‘हां, बा…’ पास आकर बोली.
‘मुझे घर ले चल, मेरा साज-संवार कर दे…’ आवाज़ में कम्पन आ गया था.
उसको राम का प्यारा चित्र दिखाकर कहा,’आप तो अपने घर में ही हैं, यह देखिए आपका प्यारा चित्र…’
‘मुझे बापू के पास ले चल.’
‘आप बापू के कमरे में ही तो हैं.’ उसे लगा, बापू को पास बुलाना चाहती हैं. वे बराबर के कमरे में नाश्ता कर रहे थे. उसने कहला दिया, घूमने जाने से पहले बा के पास होते जाएं.
बाबू हंसते-हंसते आए. बा की चारपाई के आसपास साथी-संबंधी खड़े थे. कहने लगे,‘तुझे लगा होगा कि इतने सारे सगे-संबंधियों के आ जाने से मैंने तुझे छोड़ दिया, है न!’ कहकर चुपचाप चारपाई पर बैठ गए.
बा सुशीला की गोद में सिर रख के लेटी हुई थी. एकाएक बोली,‘कहां जाएंगे, क्या मर जाएंगे?’
पहले जब मरने जीने की बात करती थी तो सुशीला यह कहकर समझाती थी कि ऐसा क्यों सोचती हो, सब साथ-साथ ही घर जाएंगे. इस बार उसने कहा,‘बा एक दिन आगे-पीछे सबको जाना है, उसकी चिन्ता क्या करनी?’
बा ने हुंकारा भर दिया.

थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा,‘मैं घूम आऊं?’
बा पहले स्वयं घूमने चलने के लिए कहती थी. इस बार मना कर दिया. वे फिर खाट पर बैठ गए. बा उनका सहारा लिए और आंखें बन्द किए लेटी रही. बोली,‘हमने बहुत सुख-दुःख भोगे हैं. मेरे लिए कोई न रोए, अब मुझे शान्ति है.’
दोनों के चेहरों पर अपूर्व शान्ति और सन्तोष था. इस दिव्य दृश्य को पहले सब देखते रहे फिर धीरे से बाहर चले गए.
बापू दस बजे तक उसी तरह बैठे रहे. बीच-बीच में बा से कहते जाते,‘राम नाम कहती रहो. सबसे बड़ा सहारा है.’  खांसी आती तो सहला देते थे. बा के चेहरे से लगता था, अच्छा लग रहा है.

इन्हें भीपढ़ें

abul-kalam-azad

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्षधर

June 3, 2025
dil-ka-deep

दिल में और तो क्या रक्खा है: नासिर काज़मी की ग़ज़ल

June 3, 2025
badruddin-taiyabji

बदरुद्दीन तैयबजी: बॉम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय बैरिस्टर

June 2, 2025
economy

क्या विश्व की चौथी बड़ी अर्थ व्यवस्था का सच जानते हैं आप?

May 26, 2025

सरकार चाहती तो बा को छोड़ सकती थी, पर छोड़ नहीं रही थी. सरकार सोचती थी कि बाहर जाने पर बा की तबीयत अधिक गंभीर हुई तो जनता बापू को छोड़ने की मांग करेगी. नहीं छोड़ा गया तो वह सरकार को अत्याचारी समझेगी. यह बात ब्रिटिश सरकार के किसी अफ़सर ने देवदास को बताई थी.
बा ने बापू को दस बजे जाने दिया. उनके जाने के बाद सुशीला उनके स्थान पर बैठ गई. बा बीच-बीच में कुछ-कुछ बोलती जाती थी. गफ़लत में थी. पहला दिन था जब बा ने दातुन वगैरह कुछ नहीं किया था. बोरो ग्लिसरीन से मुंह साफ़ करने के लिए पूछा तो मना कर दिया. बीच में बड़बड़ाती थी, क्‍या मर जाएंगे? मौत का ऐसा ख़ौफ़ पहले कभी नहीं देखा था. बा नहीं, मौत अपनी आमद का संकेत दे रही थी. सुशीला को घबराहट हुई.

कलकत्ता से पेंसिलिन हवाई जहाज़ से मंगवाई गई थी. ब्रिटिश सरकार हर मुमक़िन सहायता कर रही थी. कर्नल शाह और कर्नल भंडारी ने इस बारे में सूचित किया. लेकिन बापू ने सब दवाइयां बन्द कर दी थीं. दवाई खाकर ठीक होने की बा को लालसा भी समाप्त हो चुकी थी. देवदास दवा देने के पक्ष में था. कर्नल भंडारी ने बापू से राय जाननी चाही. बापू ने कहा,‘मैं दवा के पक्ष में नहीं. मेरे लड़के और रिश्तेदार चाहते हैं तो सरकार को अनुमति दे देनी चाहिए.’
बा की नाड़ी अनियमित चल रही थी. बीच-बीच में लगता है, ग़ायब हो गई फिर चलने लगती थी. सुशीला रात-भर जागी थी, सवेरे प्रभावती बेन को बैठाकर नहाने गई थी. नहाकर आई तो बापू ने कहा,‘तुझे कम-से-कम पंद्रह मिनट तो घूमना चाहिए.’ वह बापू की बात मानकर घूमने चली गई. पर रास्ते भर प्रार्थना करती रही. कहती रही,‘क्‍या तुम मेरी बा को नहीं बचा सकते?’ फिर अपने-आप ही जवाब भी देती,‘क्या, कब उचित है, तुम ही जानते हो. इस स्वतंत्रता संग्राम में बिरलों को ही शहादत का अवसर मिलता है. यह अवसर बा जैसी तपस्विनी को प्राप्त नहीं होगा तो किसे होगा? गोली खाकर मरना या इस तरह जेल में मरना एक समान है. ईश्वर जो पद बा को प्रदान करने जा रहा है, वह मेरे जैसे मोहग्रस्त प्राणी की प्रार्थना से थोड़े ही बदल देंगे. जैसी तेरी मर्ज़ी.’
सुशीला ने घड़ी देखी तो बापू के दिए पन्द्रह मिनट समाप्त हो रहे थे. वह लौट पड़ी. बापू की दिनचर्या भी बदल गई थी. कई दिन से खाने में तरल पदार्थ का ही सेवन कर रहे थे. बीमारी का इतना दबाव था कि खाने में परिवर्तन किए बिना अपनी तबीयत ठीक नहीं रख सकते थे. खाना-पीना आध-पौन घंटे की जगह दस मिनट में समाप्त करके बा के पास आ बैठते थे. बापू अपना ज़रूरी काम निपटाकर ही आते थे जिससे वे निरन्तर बा के पास बने रहें.
सुशीला लौटी तो बापू वहां मौजूद थे. बा एकाएक सीधी लेट गई. दमे के कारण महीनों से सीधा लेटना सम्भव नहीं हुआ था. या तो पीठ किसी के सहारे टिकाकर लेटती थी, या फिर सामने मेज पर सिर टिकाकर बैठ जाती थी. उन्होंने सीधा लिटाने के लिए देवदास को सूचना दी. सूचना मिलते ही देवदास और मनु वहां पहुंच गए. डॉ. दिनशा मेहता भी आ गए. बापू ने पूछा,‘रामधुन सुनोगी,’ बा ने गर्दन हिला दी. बापू ने बराबर वाले कमरे में गीता का सस्वर पाठ आरम्भ करा दिया. देवदास, प्यारे लाल और कनु बारी-बारी से पाठ कर रहे थे, जिससे बा के कानों तक आवाज़ पहुंचती रहे.
रात को पानी पीने में कष्ट होने लगा. इच्छा भी नहीं हो रही थी. दोपहर को देवदास गंगाजल लाया. उसमें तुलसी दल डाला. बा एकटक तुलसी के बिरवे को देख रही थी. सुशीला समझ गई. उसने बिरवा बा के पास लाकर स्टूल पर रख दिया. बाबू ने कहा,‘देवदास गंगाजल लेकर आया है.’ बा ने मुंह खोल दिया. बापू ने अपने हाथ से एक चम्मच गंगाजल बा के मुंह में डाल दिया. बा झट पी गई. फिर मुंह खोला, बापू ने एक चम्मच और डाल दिया और कहा,‘अब थोड़ी देर बाद.’ बा बीचबीच में ‘गंगाजी’ पुकारती थी. जब पुकारती थी तो बिरवे की ओर देख लेती थी. बापू दूसरे संबंधियों को समय देने के लिए अपनी गद्दी पर जाकर बैठ गए. थोड़ी देर बाद रामी (हरिलाल की बड़ी बेटी) के साथ केशू भाई भी आ गए. देखते ही उठकर बैठ गई. पता नहीं कहां से शक्ति आ गई. बोली,‘देवदास ने बहुत सेवा की है.’
‘बा, मैंने क्या सेवा की है, मैं तो कल रात ही आया हूं. सेवा तो इन सब साथियों ने की है.’ रुककर बताया,‘रामदास भाई भी आ रहे हैं.’
‘वह आकर क्या करेगा?’ रामदास को परेशान करना बा को अच्छा नहीं लगता था.
इसके बाद वह आंखें बन्द करके लेट गई मद्धिम स्वर में हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी,‘हे भगवान, ढोर की तरह खाया, माफ़ करना. अब तेरा प्रेम और भक्ति चाहिए.’ चेहरे पर शान्ति का भाव झलक रहा था. जैसे प्रार्थना सुन ली गई हो. विरक्ति का भाव आ गया था.
कनु गांधी ने बा के कई फ़ोटो लिए. कनु के साथ घर के सभी लोग चाहते थे कि बा के साथ बापू का इस हालत में फ़ोटो खींच लिया जाए. बापू को फ़ोटो खिंचवाने के लिए बैठना पसन्द नहीं था. बापू सबसे कहते रहते थे, सबको बीच-बीच में आराम करते रहना चाहिए. इसी बात को आधार बनाकर सुशीला ने कहा,‘बापूजी, मैं थोड़ा आराम करने जाती हूं, आप बा की ज़िम्मेदारी ले लें.’ सुशीला को आशा थी कि जैसे ही बापू बा के पास बैठेंगे, कनु चुपचाप फ़ोटो ले लेगा.
बापू भी जैसे समझ रहे थे, वे बोले,‘चार्ज तो मैं यहीं बैठे-बैठे ले लेता हूं. दूसरे सब अतिथि जो यहां बैठे हैं, बैठे रहने दो.’ बा बुलाएगी तो उसके पास चला जाऊंगा.’
दोनों के चेहरे उतर गए.

साढ़े पांच बजे कर्नल शाह और कर्नल भंडारी पेन्सिलिन के इंजेक्शन लेकर आए. बापू से पूछा तो उन्होंने तटस्थ भाव से कहा,‘डॉ. गिल्डर और सुशीला देना चाहें तो दे दें.’ देवदास पहले से ही इस मत के थे कि पेन्सिलिन दी जाए. दो अहम सवाल थे. एक था-मृत्युशैया पर पड़ी बा को अब सुइयों से चीथने से क्‍या लाभ! बापू का मत यही था. दूसरा मत था-जब तक सांस, तब तक आस. यह सामान्य और डॉक्टरी पक्ष था.
पेन्सिलिन तब चली ही चली थी. वह जीवन-बचाऊ दवा समझी जाती थी. डॉ. गिल्डर ने इशारा किया तो सुशीला सिरिंज उबालने लगी. सुशीला से बापू ने पूछा,‘तो तुम सबने तय कर लिया, तुम मानते हो कि इससे फ़ायदा होगा?’ सुशीला ख़ामोश रही.
बा ने सुबह से खाना नहीं खाया था. तबीयत अच्छी लगी. सब साथ खाना खाने बैठे. गिल्डर ने सुशीला को बताया,‘बापू को पहले पता नहीं था कि पेन्सिलिन के कई इंजेक्शन लगेंगे. जब पता चला तो उन्होंने मना कर दिया. अपने आत्मीय के संदर्भ में ऐसे निर्णय ले लेना किसी के लिए भी इतना आसान नहीं होता!’ सुशीला तो बीच में फंसी थी, क्या बोलती. सरकार ने हवाई जहाज़ से कलकत्ता से पेन्सिलिन मंगाई थी. सरकार नहीं चाहती थी कि उसपर बा के इलाज में लापरवाही का आरोप लगे.
बापू ने देवदास को समझाया,‘तू ईश्वर में विश्वास क्यों नहीं करता? तू कैसी भी चमत्कारी दवा क्यों न ले आए, तू अपनी बा को चंगा नहीं कर सकता. तू आग्रह करेगा तो मैं अपनी बात छोड़ दूंगा, लेकिन तेरा आग्रह बिल्कुल निराधार है. इन दो दिनों में उसने दवा या पानी लेने से इनकार कर दिया. अब तो ईश्वर के हाथ में है. तेरी इच्छा हो तो उसमें दखल दे. लेकिन जो रास्ता तूने चुना है, मेरी सलाह है, तू उस रास्ते पर मत जा. याद रख, हर चार घंटे बाद इंजेक्शन दिलाकर तू अपनी मरती हुई बा को शारीरिक पीड़ा पहुंचाने का काम करेगा.’
उसके बाद तर्क की गुंजाइश नहीं बची थी. डॉक्टरों ने राहत की सांस ली.
बापू प्रतिदिन सवा छह बजे सैर करने जाते थे. उस दिन बातचीत में सवा सात बज गए. बापू तैयार होने के लिए जैसे ही गुसलख़ाने में आए, बा ने पुकारा,‘बापू जी!’
प्रभावती जी पास बैठी थीं, तुरन्त बापू को बुलवाया. वे आकर बा के पास बैठ गए. बा की बेचैनी बढ़ गई थी. दो बार उठकर बैठी, फिर लेट गई. बापू ने पूछा,‘क्या बा, कैसा लग रहा है ?’
किसी नई जगह को देखकर भ्रमित बच्चे की तरह कुछ तुतलाते हुए-सा कहा,‘कुछ समझ नहीं आ रहा, कहां हूं.’
नाड़ी उस समय मद्धिम चल रही थी. ऐसा अक्सर हो जाता था. बापू ने मनु को फ़ोटो लेने के लिए क्‍यों मना कर दिया था, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. शायद बापू के लिए बहुत पवित्र थी. वे अपने अन्दर ही रखना चाहते थे.
तभी बा के भाई माधवदास आ गए. बा ने बहुत दिन बाद देखा था. उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, पर बोल नहीं पाई. मिलने का सुख था या कुछ न कह पाने का दुःख. बा ने एक बार फिर उठना चाहा पर बापू ने सहारे से लिटा दिया. सिर सहलाते हुए कहा,‘उठो नहीं, लेटी रहो.’
बा ने बापू की गोदी में सिर डाल दिया, जैसे वही विराम-स्थली हो! बापू ने सिर के नीचे से तकिया हटा दिया. खाट को सीधा कर दिया. मीराबेन ने खाट की दिशा उत्तर-दक्षिण कर दी. बापू ने हंसकर कहा,‘तू भले ही लन्दन में जन्मी हो, आत्मा भारतीय है.’ बापू ने दोनों हाथ फैलाकर शवासन पर लिटा दिया. बापू ने पहले से ही सबको बारी-बारी से ब्यालू के लिए भेज दिया था. सामान्य जेलों में खाने का समय शाम को छह बजे होता है, इस मामले में, आग़ा ख़ां पैलेस जेल विशेष होते हुए, सामान्य थी.
उस दिन सांझ एकाएक उतर आई थी. अंधेरा भी काली चादर की तरह फैलता जा रहा था. बापू ने अपनी घड़ी निकालकर देखा, साढ़े सात बज जुके थे. जब सब लोग दोबारा इकट्ठे हुए तो बा के गले से विचित्र आवाज़ आ रही थी. देवदास बा के पायंते खड़ा एकटक निहार रहा था. सबसे छोटा बेटा…! बा की गर्दन एक तरफ़ को ढलक गई. देवदास बच्चों की तरह पांवों पर सिर रखकर,‘बा…बा…’ पुकारते हुए फूट-फूटकर रो पड़ा. बापू की आंखों के कोओं से दो बूंद टपकीं. पता नहीं, बा की विदाई थी या छोटे बेटे को तड़पन की शान्त प्रतिध्वनि. बापू ने एक बार कहा था कि बा किसकी गोद में देह का परित्याग करेगी? यह सौभाग्य किसका होगा? सुशीला को बापू के वे शब्द याद आ गए. वह स्वयं से ही बोली,‘वह गोद बाबू के सिवाय किसकी हो सकती है?’ उसकी आंखें डबडबा आईं.
बापू अपने आसन से उठे. देवदास के पास गए, कंधे पर हाथ रखा, रुके. सबको कमरा ख़ाली करने का संकेत किया. एक-एक कर सब आंखें पोंछते हुए बाहर चले गए. कुछ ही देर पहले जब बोल सकती थी तो बा ने कहा था,‘मैं जाती हूं, जाना है तो आज ही क्यों न जाऊं?’ देवदास के कानों में वे शब्द जीवित होकर उछले, फिर बैठते चले गए.


पुस्तक: बा
लेखक: गिरिराज किशोर
प्रस्तुत अंश: पेज 270 से 275
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
मूल्य: 595 (हार्ड बाउंड)

Tags: BaaBaa Giriraj KishoreBaa Rajkamal PrakashanGandhiGiriraj KishoreKasturba GandhiKasturba Gandhi and Mahatma GandhiMahatma GandhiRajkamal Prakashanकस्तूरबा गांधीकस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधीगांधीगिरिराज किशोरबाबा गिरिराज किशोरबा राजकमल प्रकाशनमहात्मा गांधीराजकमल प्रकाशन
प्रमोद कुमार

प्रमोद कुमार

Related Posts

स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी
ज़रूर पढ़ें

स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी

May 12, 2025
kid-reading-news-paper
कविताएं

ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा: राजेश रेड्डी की ग़ज़ल

April 21, 2025
executive-and-judiciary
ज़रूर पढ़ें

क्या सुप्रीम कोर्ट को संसद के बनाए क़ानून की समीक्षा का अधिकार है?

April 20, 2025
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.