• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ओए हीरो

बराबरी के मायने बहुत गहरे हैं, क्या हम कभी इन्हें समझ सकेंगे?

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
August 2, 2021
in ओए हीरो, मेरी डायरी
A A
बराबरी के मायने बहुत गहरे हैं, क्या हम कभी इन्हें समझ सकेंगे?
Share on FacebookShare on Twitter

बात छोटी-सी ही है, पर मेरे मन की डायरी में दर्ज हुए बिन रह न सकी. महिलाओं के साथ हुए और होते आ रहे भेदभाव हर महिला की तरह हमेशा मुझे भी चुभते हैं, लेकिन कुछ घटनाएं जो मेरे सामने, मेरे जानने वालों के साथ घटीं, उन्होंने बराबरी, लैंगिक भेदभाव या फिर लैंगिक समानता के बारे में मुझे सोचने का एक नया नज़रिया दिया है. उनमें से एक घटना का ज़िक्र मैं यहां कर रही हूं. इसे आप भी पढ़ें और सोचें…

हर मां की तरह मैंने भी अपने बच्चे (बेटे) को सिखाया है कि अपने दोस्तों, मिलनेजुलने वालों और ख़ासतौर पर लड़कियों के साथ हमेशा विनम्रता से पेश आना, उनका ख़्याल रखना, उनके प्रति संवेदनशील रहना, जिसे वह मानता भी आया है. मेरा मानना है कि कोई भी अनपढ़/पढ़ी-लिखी और संवेदनशील मांअपने बच्चों और ख़ासतौर पर लड़कों को यही सिखाती है और सिखाना भी चाहिए. देश की आधी आबादी रही महिलाओं के साथ पितृसत्तात्मकता के चलते अतीत में बहुत-सी चीज़ें बहुत ग़लत हुईं, जिन्हें सुधारे जाने की ज़रूरत है, ताकि हर लड़की, युवती और महिला अपनी क़ाबिलियत के अनुरूप ऊंचाई पर पहुंच सके.

यहां एक बात ध्यान रखनेवाली है कि महिलाओं के साथ होनेवाला अधिसंख्य भेदभाव या अत्याचार मौजूदा पीढ़ी के अधिकतर लड़कों ने नहीं किया है. यह अत्याचार पिछली पीढ़ी की महिलाओं के साथ, पिछली पीढ़ी के पुरुषों ने किया, जिसका दोषारोपण आज की लड़कियों, युवतियों या महिलाओं द्वारा आज के लड़कों, युवकों या पुरुषों पर कर देना भी तो क़तई सही नहीं है! हमारे देश के आज के पुरुष, जो बच्चियों, लड़कियों, युवतियों के पिता हैं, वे कितनी शान से अपनी बेटियों को शिक्षा और उच्च शिक्षा दिलाते हैं, उनकी नौकरी लगने पर ख़ुश होते हैं, गर्व महसूस करते हैं और यह भी चाहते हैं कि शादी से पहले लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो जाए. या फिर वे पुरुष भी हैं जो आज की कामकाजी पत्नियों के पति, बहनों के भाई हैं, एक बार उनपर भी तो नज़र डालना बनता है! ये पुरुष तो घर पर अपनी मांओं, बहनों, पत्नियों की मदद भी कर रहे होते हैं… माना कि आज की युवतियों पर भी अत्याचार हो रहे हैं, रेप जैसे जघन्य अपराध घट रहे हैं, पर इनके लिए पूरी पुरुष जाति को ही तो दोषी करार नहीं दिया जा सकता, है ना! कम से कम तब तो बिल्कुल नहीं, जबकि इस ज़माने के बराबरी में विश्वास रखनेवाले पुरुषों की जमात भी हमारे एकदम आसपास मौजूद है.

ख़ैर… जिन मसलों पर मैं बात करने जा रही थी, वो हैं: बराबरी, जेंडर इक्वैलिटी और बात करने का सामान्य सलीका. तो बात यूं है कि मेरा बेटा, जो हाल ही में 18 वर्ष का हुआ है, उसने अपना पासपोर्ट रिन्यू कराया. जब उसे पुलिस वैरिफ़िकेशन का कॉल आया तो मैं उसके साथ गई, पर बाहर ही खड़ी रही, क्योंकि अब वह अपने अधिकतर कामों में मुझे इन्वॉल्व नहीं करना चाहता, ख़ुद ही करना चाहता है… एक वयस्क नागरिक को ऐसा करना भी चाहिए! जब वह वापस लौटा तो उसने मुझे मुस्कुराते हुए ये वाक़या सुनाया- ‘‘मां, मेरे साथ जो आंटी गई थीं न अंदर उनके साथ कितने सलीके से बात की पुलिस अंकल ने. उनसे विनम्रता से पूछा- नाम और फिर पूछा –पिताजी का नाम… मुझसे तो रौबदार आवाज़ में ऐसे पूछा- नाम? नाम बताने के बाद पूछा- बाप का नाम?’’ मैं समझ गई कि मेरे बेटे को नैतिक यानी मॉरल और सांस्कृतिक यानी कल्चरल शॉक लगा है. मुझे उसकी बात सुनकर जहां, इस बात की ख़ुशी हुई कि कम से कम उसके साथ गई महिला के साथ पुलिस ने सम्मानजनक व्यवहार किया… लेकिन वहीं उसी पल इस बात के लिए दुख भी हुआ कि जिस पुलिस को जेंडर इक्वैलिटी के दबाव में युवतियों और महिलाओं से अच्छी तरह बर्ताव करने को कहा गया है, उसे युवकों और पुरुषों के साथ भी उतने ही सलीके से बर्ताव करने का प्रशिक्षण क्यों नहीं दिया गया? बराबरी या जेंडर इक्वैलिटी या फिर बातचीत के सामान्य शिष्टाचार के तहत तो महिला-पुरुष दोनों के साथ ही समान और सलीकेदार व्यवहार किया जाना चाहिए, है ना?

मैं अपने बेटे के साथ बहुत अजीब, अनमनी मन:स्थिति में घर पहुंची. मेरे भीतर यही सवाल घुमड़ रहा था कि जेंडर इक्वैलिटी या फिर बराबरी के मायने कितने गूढ़ हैं, कितने गहरे हैं. और ये हमारे-आपके दैनिक व्यवहार से सलीके से ही संभव है कि हम इसके अर्थ समझने के क़रीब पहुंच सकें. न जाने कब हमारे देश के लोग बराबरी और सलीके का सही अर्थ समझ सकेंगे…!

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, freepik.com

इन्हें भीपढ़ें

‘‘अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि बिना ज़्यादा तकलीफ़ झेले, लोग कैंसर से उबर आते हैं.’’

‘‘अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि बिना ज़्यादा तकलीफ़ झेले, लोग कैंसर से उबर आते हैं.’’

December 27, 2023
मैं नास्तिक क्यों हूं: भगत सिंह

मैं नास्तिक क्यों हूं: भगत सिंह

September 28, 2023
ध्यानसिंह, जो बन गए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद

ध्यानसिंह, जो बन गए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद

September 26, 2023
चौधरी देवीलाल

जन्मदिन विशेष: किसानों एवं श्रमिकों के मसीहा और असली जननायक ‘चौधरी देवीलाल’

September 25, 2023
Tags: BehaviorBlamingCommon behaviorCommon mannersdiaryequalityEquality will come with open mindFrustrationgender equalityheroPracticalityrespect for allThe deep meaning of equalityThe habit of blamingThe real meaning of equalitywhat is equality after allWhen will we understandआख़िर बराबरी क्या हैकुंठागहरे मायने हैं बराबरी केडायरीदोष मढ़ने की आदतदोषी ठहरानाबराबरीबराबरी के असल मायनेमहिला-पुरुष बराबरीलैंगिक समानताव्यवहारव्यावहारिकतासबको मिले सम्मानसलीकासलीके से आएगी बराबरीसामान्य व्यवहारसामान्य शिष्टाचारहम कब समझेंगेहीरो
शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

Related Posts

जो मिले, मुरीद हो जाए ऐसी शख़्सियत थे डॉक्टर दीपक आचार्य
ओए हीरो

जो मिले, मुरीद हो जाए ऐसी शख़्सियत थे डॉक्टर दीपक आचार्य

September 19, 2023
हवाई दुर्घटना के बाद भी ओलंपिक में वापसी करने वाली साहसी ऐथ्लीट एलिज़ाबेथ रॉबिन्सन
ओए हीरो

हवाई दुर्घटना के बाद भी ओलंपिक में वापसी करने वाली साहसी ऐथ्लीट एलिज़ाबेथ रॉबिन्सन

August 29, 2023
clara_hale
ओए हीरो

क्लारा हेल: वंचित बच्चों के प्रति जिनके प्रेम की कोई सरहद न थी

August 4, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.