उनका नाम है शशांक गर्ग. वे पुलिस अधिकारी हैं और उनका ऑफ़िशल परिचय है-एसपी रेडियो, भोपाल ज़ोन. लेकिन इन दिनों उनका एक नया परिचय ये है: संवेदनशीलता से भरा ऐसा इंसान, जिसने कोविड महामारी के बीच फ़ेसबुक पर एक स्वस्फूर्त ग्रुप-इंडिया कोविड हेल्प ग्रुप बनाया है. यह ग्रुप आपसी तालमेल के साथ लोगों अस्पतालों में उपलब्ध बेड्स और ऑक्सिजन; मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध दवाइयों; खाने की मुफ़्त आपूर्ति कर रही संस्थाओं की सही जानकारी ज़रूरतमंदों तक पहुंचा रहा है. बनने से लेकर महज़ सात दिनों के भीतर इस ग्रुप में 9.5 हज़ार सक्रिय मेम्बर्स आ जुड़े हैं. यह ग्रुप आपदा के बीच सोशल मीडिया के सार्थक उपयोग का एक बड़ा उदाहरण है.
शंशाक गर्ग से इंटरव्यू का समय मांगते वक़्त मुझे एक झिझक भी थी कि जो व्यक्ति इस कठिनतम समय में अपने काम के साथ-साथ लोगों की मदद में इस क़दर व्यस्त है, कहीं मेरे इंटरव्यू लेने से किसी की मदद में बाधा न आ पहुंचे, लेकिन उनकी इस पहल को लोगों तक पहुंचाना भी उतना ही ज़रूरी था, ताकि और भी लोग उनकी मुहिम से जुड़ें और इस महामारी के समय लोगों की मदद के काम को और विस्तृत दायरा मिल सके, लोग इससे प्रेरित हों. हालांकि मेरी दुविधा को शशांक ने यह कहते हुए दूर कर दिया कि जिस समय उनके पास कम फ़ोन आते हैं, उस समय वे ज़रूर बात करेंगे. और उन्होंने ऐसा किया भी. यहां पेश हैं, उनसे हुई बातचीत के अंश…
इंडिया कोविड हेल्प ग्रुप की संकल्पना आपके दिमाग़ में कैसे आई?
दरअस्ल, मैं अपने स्कूल, कॉलेज के दोस्तों से वॉट्सऐप ग्रुप के ज़रिए जुड़ा हुआ हूं. सामाजिक सरोकारों और साहित्य में मेरी दिलचस्पी है. तो लोगों से कनेक्टेड रहता ही हूं. जब कोरोना की दूसरी लहर को बढ़ता हुआ देखा तो लगा कि कुछ करना होगा. शुरुआत में मैंने इस ग्रुप से अपने क्लास के, बैच के लोगों को जोड़ा. मेरे संपर्क सूत्रों को जोड़ा. एक ही दिन में तीन शहरों के लोग आ जुड़े. उद्देश्य एक ही था- पीड़ित लोगों को सही जानकारी उपलब्ध कराना.
जिस तरह मामले बढ़ रहे थे यह बात समझ में आ रही थी कि मदद के हाथ बढ़ाने होंगे. सरकार हर जगह नहीं पहुंच सकती. जनता को कुछ करना होगा, क्योंकि जनतंत्र में जन और तंत्र जुड़ जाए, तभी यह सफल होता है. इसी सोच के साथ 18 अप्रैल को फ़ेसबुक पर यह ग्रुप बनाया और आज 24 अप्रैल तक इससे जुड़े 20 हज़ार सदस्य और 9.5 हज़ार सक्रिय सदस्य हैं, जो लोगों को सही जानकारी देने में दिन-रात लगे हुए हैं. देश से ही नहीं, विदेशों से भी लोग जुड़ रहे हैं.
मैंने देखा कि ग्रुप में आपने वेरिफ़ाइड जानकारी देने की अपील डाल रखी है. कुछ लोगों ने आपको वित्तीय मदद देने की पेशकश भी की है, जिन्हें आपने ऐसा करने से विनम्रता से इनकार कर दिया है तो यह ग्रुप कैसे काम कर रहा है?
यह एक स्वस्फूर्त ग्रुप है, जिसमें लोग एक-दूसरे के साथ अपनी जानकारी साझा कर रहे हैं. इसके पीछे कुछ क्लोज़्ड वॉट्सऐप ग्रुप भी काम कर रहे हैं, जो डेटाबेस बनाने का काम करते हैं और हमें इसके बारे में सही व सत्यापित की हुई जानकारी दे रहे हैं कि कहां बेड्स, ऑक्सिजन और दवाइयों की उपलब्धता है. कहां भोजन, वाहन आदि की उपलब्धता है. शीघ्र, सटीक और सत्यापित यानी वेरिफ़ाइड जानकारी दे कर ही हम लोगों की मदद समय पर कर सकते हैं. यही वजह है कि मैं समय-समय पर यह रिक्वेस्ट करता हूं कि वेरिफ़ाइड जानकारी पोस्ट करें, क्योंकि आज के समय सटीक जानकारी ही सबसे बड़ा बचाव है. वेरिफ़ाइड जानकारी पोस्ट करने के कारण ही हम अधिकांश मामलों में लोगों को मदद करने में सफल हो पा रहे हैं.
जहां तक वित्तीय सहायता की पेशकश करने वालों का सवाल है तो मौद्रिक लेनदेन को हम हतोत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि यह संदेह और आशंकाओं को जन्म देता है. यह एक स्वत: स्फूर्त हेल्प ग्रुप है, जिसका उद्देश्य सही जानकारी पहुंचा कर कोविड के मरीज़ों, उनके परिजनों की मदद करना मात्र है.
अभी भारत के हर कोने से इस ग्रुप पर मदद की गुहार आ रही है. इसे स्ट्रीमलाइन करते हुए और अधिक लोगों तक सटीक जानकारी पहुंचाने के लिए क्या आपकी कोई योजना है?
जी बिल्कुल. शुरू से ही हमने लोगों को एक फ़ॉर्मैट में अपनी जानकारी शेयर करने को कहा है. हम मरीज़ का नाम, उम्र, शहर, ऑक्सिजन का स्तर, अस्पताल का नाम, क्या ज़रूरत है, आधार कार्ड, अटेंडेंट का नाम और नंबर शेयर करने कह रहे हैं, ताकि उस पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनकी मदद हो सके. आज ही हम एक मीटिंग करने जा रहे हैं, जहां हर राज्य से कम से कम चार-पांच सक्रिय सदस्यों को वॉट्सऐप ग्रुप से जोड़ा जाएगा और जो अपने जैसे साथियों को जोड़कर अपने स्तर पर इस तरह के सबग्रुप बनाएंगे. ये सभी आवश्यक सूचनाओं और संसाधनों की सूची बनाकर अपने स्तर पर सत्यापित करेंगे और समूह में किसी भी तरह की मदद की गुहार लगने पर इस सत्यापित जानकारी को तुरंत साझा करेंगे. इस तरह हर राज्य/शहर के लिए एक सबग्रुप बनेगा और अपडेटेड जानकारी लोगों तक पहुंचेगी.
इस ग्रुप के काम के लिए समय कैसे निकाल पाते हैं? आपको किस तरह के अनुभव हो रहे हैं?
सच पूछिए तो आज 16 दिन हो चुके हैं ठीक से सो ही नहीं सका हूं. दिन में और रातभर मदद के लिए फ़ोन, मैसेज आते रहते हैं. सभी के पास केवल 24 घंटे का समय होता है. ऑफ़िस का काम तो अनिवार्य ही है, बाक़ी का समय पर्सनल कैपेसिटी में निकालता हूं. आख़िर समाज से इतना कुछ मिला है, उसका प्रतिदान तो करना ही है. यह काम निजी समय में और अपनी ख़ुशी के लिए कर रहा हूं.
यह काम करते हुए बहुत तरह के अनुभव हो रहे हैं, जैसे- दिल्ली से एक विधायक साहब का फ़ोन आया कि चार बेड दिलावा दीजिए हमें सख़्त ज़रूरत है. तो सोचिए, जब जन प्रतिनिधि को ही अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल पा रहे हैं, आम आदमी की हालत क्या होगी. अंतत: उनके लिए भी इंतज़ाम हो गया. फिर एक नवाजत बच्ची की मां कोविड से चल बसीं तो बच्ची के दूध के लिए व्यवस्था करवानी थी. हमने इस बारे में लोगों को बताया तो दो महिलाएं आगे आईं और उन्होंने बच्ची को ब्रेस्ट फ़ीड कराया.
जो अस्पताल में हैं, उन्हें अस्पतालों में और उनके घरों में खाना पहुंचाने का बंदोबस्त करने को कितने लोग आगे आ गए. यही नहीं, जबलपुर में मृतकों के दाह-संस्कार के लिए किसी ने दो टन लकड़ियां श्मशान घाट में दान कर दीं. कितने ही मुस्लिम साथियों ने हिंदू शवों का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार किया और कहा कि हमारा नाम किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है, ये हमारा फ़र्ज़ था. ऐसी बातें मनोबल बढ़ाती रहती हैं.
देश के नागरिकों के लिए आपका कोई संदेश?
कई बच्चों के फ़ोन आ रहे हैं कि हम क्या मदद करें. हम उन तक वेरिफ़ाइड जानकारियां पहुंचा रहे हैं, उनसे कह रहे हैं कि अपने शहर के लिए ऐसा ही सत्यापित डेटाबेस तैयार करो. अपने शहर की मदद करो. क्योंकि यह आपदाकाल है, जब तक जन जागृत नहीं होगा तंत्र कुछ नहीं कर पाएगा. और भारत तो मशहूर है किसी फ़ीनिक्स की तरह अपनी राख से फिर उठ खड़ा होने के लिए. हम ज़रूर ही कठिन समय से उबर आएंगे, क्योंकि शुभेच्छा और कृतज्ञता हमेशा लोगों को जोड़ते हैं और हमारे लोगों में ये दोनों भावनाएं प्रबलता से मौजूद हैं.