तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी हमारी सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद होता है. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि कई रिसर्च का हवाला देते हुए डॉक्टर दीपक आचार्य हमें बता रहे हैं कि क्यों तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना हमारी सेहत के लिए एक अच्छा चुनाव है. तो आइए, जान लेते हैं…
एक दौर था जब पीने का पानी तांबे की गुंडियों, वेसल्स और लोटों में रखा जाता था. गांव देहात में ये प्रचलन आज भी कहीं ना कहीं देखने में आ ही जाता है, लेकिन बीते कुछ दशकों में हमने तांबे को भूलना शुरू कर दिया. मेरे ननिहाल में ताबें की बहुत बड़ी गुंड (मटके के आकार का बर्तन) में पीने का पानी रखा जाता था. नानाजी हमेशा कहते थे कि ये पानी जितना बासा होगा, उतना सेहत के लिए बेहतर होगा.
अक्सर इस तरह के बर्तन में पानी 3-4 दिनों तक रखा जाता था और उसी को पिया जाता था. कई बार बुज़ुर्गों से कहता सुना है कि तांबे के बर्तन में रखा पानी हार्ट के लिए, किडनी के लिए, आंखों के लिए बेस्ट होता है और इसके ऐंटी एजिंग इफ़ेक्ट भी हैं. कहते हैं पीने के पानी की अच्छी-ख़ासी सफ़ाई भी हो जाती है, जब इसे तांबे के बर्तन में रखा जाए. खैर, भारत देश जानकारियों का भंडार है और हर दूसरे आदमी के पास देने के लिए ज्ञान का पिटारा हमेशा तैयार रहता है. अब सवाल ये उठता है कि क्या वाक़ई इतना कारगर है तांबे का पानी?
ओलिगोडायनामिक इफ़ेक्ट
मैंने थोड़ी बहुत खोज-खंगाल की और कोशिश की कि पता किया जाए कि क्या वाक़ई तांबे का पानी हार्ट, किडनी और आंखों के लिए ख़ास है? मुझे कोई रिसर्च इसपर दिखाई नहीं दी. जहां आकर मेरी आंखें टिकीं, वो था ‘ओलिगोडायनामिक इफ़ेक्ट’. लम्बे समय तक तांबे के बर्तन में पानी को रखा जाए तो इस इफ़ेक्ट की वजह से कॉपर आयन्स पानी में उतर आते हैं. कॉपर आयन्स पानी के सूक्ष्मजीवों ख़ासतौर से बैक्टीरिया को मार गिराने में सक्षम हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ़ आयुर्वेदा ऐंड इंटेग्रेटिव मेडिसिन (FRLHT, बैंगलोर का संस्थान) के वैज्ञानिकों (प्रीति, सुधा और अन्य) ने बाक़ायदा एक स्टडी को वर्ष 2012 में जर्नल ऑफ़ हेल्थ न्यूट्रिशन ऐंड पॉपुलेशन में प्रकाशित किया. इस स्टडी में पाया गया कि तांबे के बर्तन में 16 घंटों तक पानी रखने से डायरिया के लिए ज़िम्मेवार बैक्टीरिया जैसे विब्रियो कोलॅरी, शिजेला फ़्लेक्सनेरी, ई.कोलाई, साल्मोनेला एंटेरिका टायफ़ी, साल्मोनेला पैराटायफ़ी मारे जाते हैं.
घातक सूक्ष्मजीवों का बज जाता है बैंड
यहां दीपक आचार्य एक और रोचक स्टडी का ज़िक्र करना चाहेंगे, वैज्ञानिक रीति शरण और उनके साथियों ने एक लैब स्टडी के ज़रिए वर्ष 2011 में जर्नल ‘बीएमसी जर्नल ऑफ़ इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़’ में बताया था कि कम से कम 24 घंटों तक तांबे के बर्तन में पानी रखने से साल्मोनेला टायफ़ी, साल्मोनेला टायफ़ीमरियम और विब्रियो कोलॅरी बेअसर हो जाते हैं. कुल मिलाकर इस बात के पूरे प्रमाण हाज़िर हैं कि तांबे के बर्तन में कम से कम 24 घंटे रखा हुआ पानी कई घातक सूक्ष्मजीवों की बैंड बजा देता है.
कई अन्य क्लेम्स जो किए जाते हैं, उन पर भी स्टडीज़ हो जाएं तो नए ज़माने को भरोसा भी हो जाएगा. तांबे के पानी को लेकर ढेर सारे क्लेम्स जो कई बुज़ुर्ग जानकार करते हैं, सभी क्लेम्स सही हैं, कहना ग़लत होगा तो वहीं सभी क्लेम्स को खारिज करना भी मूर्खता होगी. आख़िर यह लड़ाई एक्सपीरिएंस और एक्सपेरिमेंट्स के बीच की है, आने वाले वक़्त में सबको सब पता चल ही जाएगा कि इनमें से वज़न किसका ज़्यादा है, क्योंकि खोज जारी है!
बात का सार समझिए
आपका दोस्त दीपक आचार्य चाहता है कि आप भी घर में पीने के पानी को रखने के लिए तांबे के बर्तन का जुगाड़ जरूर करें. यह हमारे देश का ज्ञान है, देश के बहुत काम का है. पानी को तांबे के बर्तन में कम से कम 24 घंटे रखें और फिर पिएं, पानी की प्राकृतिक सफ़ाई होगी, पानीजनित रोगों पर लगाम कसेगी और सेहत रहेगी टनाटन! बात जमे तो शेयर मारो, कौन जाने यह पोस्ट किसके काम आ जाए?
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट