“दिल दे दो क्या दिल का अचार डालोगी”
श्वेता तिवारी ने एक फ़िल्म में इस आइटम सॉन्ग पर डांस किया है और जब फ़िल्म आई थी तो ये गाना चला भी काफ़ी था. ऐसे ही कई गाने हैं जिनमें हम सबके प्यारे, हमारे भोजन की जान हमारे अचार ने अपनी जगह बनाई है. पंजाबी फ़िल्मों के कुछ गानों में भी अचार को जगह मिली है और इस सबसे कहीं ज़्यादा अचार को पूरे विश्व ने अपने दिल में जगह दी है. तो आज करेंगे चटपटी-सी अचार की बातें…
बात अचार की हो रही है तो बता दूं कि जिस तरह का मसालेदार अचार हम भारतीय लोग खाते हैं, वैसा हर जगह नहीं खाया जाता और उसे अचार नाम से जाना भी नहीं जाता. भारतीय उपमहाद्वीप और कुछ अन्य देशों के सिवाय अन्य जगहों पर इसे पिकल के नाम से जाना जाता है.
आपने भी यह बात सुनी होगी कि लोगों के हाथों में स्वाद होता है, इस बात को अगर परखना चाहें तो आप अचार के उदाहरण से समझ सकेंगे कि दो घरों के अचार के स्वाद में हमेशा अंतर होता है. हालांकि अब बाज़ारों में जो अचार मिलता है उसमें तो आप ये अंतर महसूस नहीं कर सकते.
वैसे जब बात अचार की आती है तो एक आम भारतीय किस अचार के बारे में सबसे पहले सोचता है? मुझे लगता है कि जवाब होगा: आम का अचार ,उसके बाद निम्बू, गाजर, चना, गोभी, प्याज़, टमाटर, कटहल, करोंदा, ककड़ी, मूली, लाल मिर्च, हरी मिर्च, लहसुन ,अदरक, हल्दी और कुछ नॉन-वेज अचार भी आपने ज़रूर सुने होंगे.
अचार सामान्य तौर पर तीन तरह से बनाए जाते रहे हैं: सिरके के साथ, पानी के साथ और तेल के साथ. भारत और आसपास के देशों में मुख्य रूप से तेल वाला अचार ही सबसे ज़्यादा बनाया जाता है, जबकि बाक़ी विश्व में सिरके वाले अचार (पिकल) का प्रयोग सबसे ज़्यादा होता है और पानीवाला अचार सामान्य रूप से या तो तेल के साथ मिलकर बनाया जाता है या बहुत ही कम समय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. मूल रूप से अचार को बिना पकाया जाने वाला व्यंजन माना जाता रहा है. खाद्य इतिहासकार के सी आचार्य की किताब ‘अ हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ़ इंडियन फ़ूड’ में भी इसी तरह का उल्लेख मिलता है, पर आजकल अचार बनाने की प्रक्रिया में उसे पकाने का प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है.
अचार का इतिहास: न्यू यॉर्क खाद्य संग्रहालयों के पिकल हिस्टरी टाइमलाइन (Pickle History timeline) के अनुसार 2030 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया के टाइग्रिस (Tigris) घाटी के लोग खीरे के अचार का उपयोग करते थे. समय के साथ-साथ भोजन को लंबे समय तक संरक्षित रखने और कहीं भी आसानी से ले जाने वाले गुणों के कारण अचार लोकप्रिय होने लगा. धीरे-धीरे इसके फ़ायदों की खोज भी होने लगी. यहां तक कि 350 ईसा पूर्व में सुप्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने अपनी कृतियों में कहीं-कहीं खीरे के प्रभावकारी असर की तारीफ़ भी की है. माना जाता है कि रोमन सम्राट जूलियस सीज़र (100-44 ईसा पूर्व) भी अचार के बहुत शौक़ीन थे. उस समय ऐसा माना जाता था कि युद्ध से पहले, पुरुषों को अचार खिलाया जाना चाहिए, क्योंकि अचार से शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है. इस प्रकार अचार पूरी दुनिया में फैल गया.
कई शताब्दियों बाद क्रिस्टोफ़र कोलम्बस (1451-1506 सीई) और अमेरिगो वेस्पूची (1454-1512 सीई) जैसे खोजकर्ताओं और समुद्री यात्रियों ने लम्बी यात्राओं में कुछ खाद्य पदार्थों को बचाए रखने के लिए उनका पिकल बनाया और अपने साथ ले जाने लगे.
कहा जाता है कि अचार शब्द फ़ारसी मूल का है. इसका उच्चारण व्यापक रूप से फ़ारस में किया जाता था. फ़ारस के लोग सिरका, तेल, नमक और शहद या सिरप (syrup) में नमकीन मांस, फल और सब्ज़ियों आदि को संरक्षित रखते थे, जिसे वे अचार कहते थे.
भारत में तो उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक न जाने कितने तरह के अचार बनाए जाते हैं और हर प्रदेश के अचार का अपना अलग रंग-ढंग और स्वाद है.
मेरी यादों वाला अचार: अच्छा याद तो करिए जब आप स्कूल जाते थे तो आपकी कौन-सी सहेली या दोस्त था, जिसके घर के अचार आपको सबसे अच्छा लगता था? अब ये मत ही कहिएगा मुझे तो मेरे घर का अचार ही सबसे अच्छा लगता था, क्योंकि हम सब जानते हैं कि हमें अचार हमेशा दूसरों के घरों का भाता रहा है… चाहे हमारे दोस्त हमसे हमारे घर का अचार मंगवाते रहे हों, पर हमें भी उनके घर के अचार में बड़ा स्वाद आता था.
सर्दियों में निम्बू का तीखा और मीठा अचार या निम्बू-मिर्ची का अचार और उसमें डाली हुई खारक. मैं आज भी वैसी खट्टी-मीठी और ज़रा-सी तीखी खारक को याद करती हूं. इसी मौसम में बनता गाजर और गोभी वाला अचार. गर्मियों में जब कैरियां आतीं और फिर उन्हें कटवाया जाता. अच्छे से कटे टुकड़े छांटकर अलग किए जाते और उनसे बनाया जाता तेल वाला अचार और थोड़ी कम ढंग से कटी कैरियों से बनाया जाता पानी वाला कैरी का अचार. फिर इसी वक़्त कुछ कैरियों को घिसा जाता और उसमें मिलाए जाते काबुली चने और तैयार होता काबुली चने और कैरी का अचार. इस अचार के मर्तबान रिश्तेदारों के यहां भी पहुंचाए जाते. पानी वाला अचार और काबुली चने वाला अचार मेरी मम्मी की स्पेशिअलिटी था, जो खाता तारीफ़ करता. गर्मियों में बड़े-बड़े चीनी मिट्टी के मर्तबान भरकर अचार बनाए जाते और सालभर खाए, खिलाए जाते. चाहे किसी सफ़र में जाना हो या स्कूल के टिफ़िन में और बाद में ऑफ़िस में, अचार ने बच्चों-बड़ों सबका हमेशा साथ निभाया. मेरे पास अचार से जुड़ी इतनी यादें और और क़िस्से हैं कि घंटों उस पर बातें हो सकती हैं, जैसे- हमारे एक पड़ोसी पंजाबी थे. वो अपने अचार में कलौंजी डालते थे, जो हमें बड़ी अच्छी लगती थी. और अचार के मर्तबानों को धोकर सुखाकर उसमें हींग की धूनी दी जाती थी, ताकि अचार लम्बे समय तक ख़राब न हो. ऐसी न जाने कितनी ही बातें, यादें और क़िस्से मेरे पास हैं और जानती हूं कि आप सबके पास भी होंगे, क्योंकि ये वो वक़्त था जब घरों की छतें जुड़ी हुआ करती थीं और दिल भी… और सारे घरों की छत में अचार होता था और सारे पड़ोसियों को एक-दूसरे के घर के अचार का स्वाद पता होता था. आप भी बताइए न कुछ क़िस्से इस आई डी [email protected] पर. मुझे इंतज़ार रहेगा. चलिए, जल्द ही मिलूंगी किसी और क़िस्से के साथ.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट