हिंदी सिनेमा भले ही साउथ और हॉलिवुड की फ़िल्मों से लगातार पिट रहा हो, पर खांटी देहाती पृष्ठभूमि पर बनी वेब सिरीज़ पंचायत को देशभर में मिले प्यार ने बॉलिवुड को बता दिया है कि कहानी ही किंग है और सादगी अब भी भारत के लोगों की पहली पसंद है. हमारे अपने सिनेमाप्रेमी जय राय इस बार सिर्फ़ समीक्षा नहीं लिख रहे हैं, बल्कि उन कारणों पर भी चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से गांव की पंचायत को इंडिया लेवल शोहरत दिलाई.
वेब सिरीज़: पंचायत 2
कुल एपिसोड: 8
प्लैफ़ॉर्म: अमेज़ॉन प्राइम
सितारे: जितेंद्र कुमार, रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, चंदन रॉय, फ़ैसल मलिक और अन्य
निर्माता: टीवीएफ़
निर्देशक: दीपक कुमार मिश्रा
रेटिंग: 4/5 स्टार
सेंसर की अनिवार्यता न होने के चलते ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म क्राइम, करप्शन, स्कैंडल और राजनीतिक कहानियों से अटे पड़े हैं. अचानक से मनोरंजन जगत में इतना खुलापन अटपटा लगता है. मध्यवर्ग की खट्टी-मीठी ज़िंदगी, छोटे शहरों और क़स्बों की कहानियां ओटीटी के लैंडस्केप से ग़ायब हो गई हैं. नियो-अर्बन कहानियों और बोल्ड कंटेंट के बीच गांवों की सीधी-सादी कहानियों की क्या बिसात. छोटे क़स्बों और गांवों की कहानियां दिखाई भी गईं तो गंदी बात और मिर्ज़ापुर वाले अंदाज़ में. ऐसे में टीवीएफ़ द्वारा पंचायत जैसी वेब सिरीज़ का स्वस्थ मनोरंजन ताज़गी के झोंके जैसा ही रहा. इस बार थोड़ी लंबी भूमिका के बाद हम बात करेंगे पंचायत के दूसरे सीज़न की, जो पिछले ही महीने अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध हुई है.
जब लोग एक जैसी कहानियां देखने के आदी हो चुके हों, उस दौर में पंचायत जैसी वेब सिरीज़ बनाना एक तरह का जोखिम ही कहा जा सकता है. जहां पूरे देश के गांव शहरों में अपना ठिकाना तलाशते हैं, वहां नायक का शहर से गांव आना, भले ही मजबूरी में ही सही, एक नए कॉन्फ़्लिक्ट की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए काफ़ी है. जहां कॉन्फ़्लिक्ट है, वहां कहानी है. पर शायद ही किसी को अंदाज़ा रहा होगा कि पंचायत इतनी पसंद की जाएगी. क़ामयाबी की नई कहानी लिखते हुए शहरी दर्शकों को अपना मुरीद बना लेगी.
इसका पहला सीज़न 2020 के अप्रैल महीने में आया था, जब पूरी दुनिया कोरोना बीमारी के संक्रमण के चलते विश्वव्यापी लॉकडाउन से गुज़र रही थी. सिनेमाघरों पर ताले लटके थे, मनोरंजन के लिए टीवी और ओटीटी प्लैट्फ़ॉर्म ही मौजूद था. जैसे अच्छे संगीत की एक वाइब होती है, जिसे सुनने के बाद वह तुरंत मन-मस्तिष्क में घर बना लेता है. अच्छे सिनेमा की भी एक ख़ासियत होती है, उसे तुरंत माउथ पब्लिसिटी मिल जाती है. पंचायत अपनी बेहतरीन कहानी और अपने उम्दा कलाकारों के अभिनय के दम पर सबकी चहेती और चर्चित वेब सिरीज़ बन गई. सिरीज़ को मिले प्यार ने साबित कर दिया कि इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता की आप हिंदुस्तान के किस हिस्से से सम्बन्ध रखते हैं. बस भारत के हर हिस्से में भाषा बदल जाती है, लेकिन आम जीवन में किरदार लगभग वही होते हैं. जब आप पंचायत को देख रहे होते है तो आप अपने गांव की यात्रा पर होते हैं. आप ढूंढ़ते हैं कि इस तरह का किरदार आपके गांव में कौन है.
पंचायत वन हो या टू कहानी ग्राम सचिव अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) के इर्द-गिर्द घूमती है. अभिषेक ने बेरोज़गार रहकर तैयारी करने के बजाय, कुछ करते हुए तैयारी का विकल्प चुना और एक छोटे-से गांव में सचिव की नौकरी कर ली है. वह अपने मौजूदा नौकरी से ख़ुश नहीं है. एमबीए करना चाहता है. ग्राम सचिव रहते हुए कैट की परीक्षा देना चाहता है. बस देखना यह है कि गांव वालों के प्यारे सचित जी यानी अभिषेक त्रिपाठी आख़िर में सफल हो पाते हैं या नहीं. ऑस्कर नॉमिनेटेड फ़िल्मों में अभिनय कर चुके रघुवीर यादव फुलेरा पंचायत के प्रधान पति के किरदार में आपको कभी भी निराश नहीं करते. नीना गुप्ता (प्रधान) के किरदार में एकदम फ़िट लगती हैं. ऐसे लगता है जैसे प्रधान का किरदार उनके अलावा कोई और नहीं कर सकता था. फ़ैसल मलिक (उप-प्रधान) की भूमिका में कहानी को हमेशा जोड़े रखने का काम करते हैं. ऑफ़िस सहायक की भूमिका में विकास (चंदन रॉय) ने दोनों सीज़न में ख़ूब तारीफ़ें बटोरी और सबके पसंदीदा बने रहे. पंचायत के पहले सीज़न में इसके पुरुष किरदारों के लिए ज़्यादा समय मिला. पहले सीज़न में जितेंद्र कुमार, चंदन रॉय, रघुवीर यादव, फ़ैसल मलिक जैसे कलाकारों का जलवा रहा. छोटी-छोटी घटनाओं के साथ कहानी जब आगे बढ़ती है, सिरीज़ रोचक होती जाती है. दर्शकों के साथ ही मीमर्स ने भी पंचायत को ख़ूब पसंद किया. “ग़ज़ब बेइज़्ज़ती है भाई” वाले डायलॉग पर ढेर सारे मीम्स बनाए गए. पहले सीज़न का लास्ट एपिसोड “जब जागो तभी सवेरा” ग्राम प्रधान नीना गुप्ता की भूमिका को और बड़ा कर गया. पंचायत के पहले सीज़न की सफलता टीवीएफ़ यानी प्रोडक्शन हाउस द वायरल फ़ीवर की भी सफलता है. टीवीएफ़ पहले यूट्यूब पर अपने बेहतरीन कंटेंट के लिए जाने जाते रहे हैं. छोटे-छोटे कंटेंट के साथ उन्होंने अपनी शुरुआत की थी. पंचायत भारत के विभिन्न प्रांतों में होने वाली छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह है और उसके जन-जीवन का संघर्ष है. कहानी एकदम नई तो नहीं, पर बेहद सरल है जिसे समझना हर दर्शक के लिए आसान है.
पंचायत का दूसरा सिरीज़ आने में काफ़ी वक़्त लगा, जो वर्ष 2022 के मई महीने में रिलीज़ हुआ. दूसरे सीज़न के पहले एपिसोड से ही पंचायत एकदम नया लगने लगता है. दूसरे सिरीज़ में कुछ नए किरदारों को मौक़ा मिला है. जैसे की ग्राम प्रधान की बेटी रिंकी (सान्विका). कहानी पानी की टंकी से शुरू होती है, जहां ग्राम सचिव की मुलाक़ात प्रधान की बेटी रिंकी से होती है. पहले सीज़न के मुक़ाबले दूसरे सीज़न में कुछ गम्भीर संवाद भी हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं. पहले एपिसोड “नाच” में जब सचिव घायल नाचनेवाली लड़की को इलाज़ के लिए क्लीनिक लेकर जाते हैं. इलाज़ के बाद सचिव लड़की से कहते हैं कि यह नाचने का काम छोड़ क्यों नहीं देती? लड़की जवाब में कहती है आप क्या करते हैं? सचिव कहते हैं पड़ोस में एक गांव है फुलेरा वहां सरकारी ग्राम सचिव हूं. लड़की कहती है आपको पसंद है आपका काम? सचिव कहते हैं नहीं एमबीए करना चाहता हूं इसलिए कैट की तैयारी भी कर रहा हूं. लड़की कहती है मतलब आप भी एक तरह से नाच ही रहे हैं, हर कोई कहीं ना कहीं नाच ही रहा है सचिव जी. दूसरे सीज़न में कुछ नए कलाकारों ने जैसे “गुल्लक” सिरीज़ वाली सुनीता राजवार (क्रांति देवी), अशोक पाठक (विनोद), दुर्गेश कुमार (भूषण) पंकज झा (एमएलए चंद्र किशोर सिंह) ने अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों को काफ़ी हंसाया है. दूसरे एपिसोड से दिखने वाले क्रांति देवी और भूषण, फुलेरा प्रधान और प्रधान पति के कॉम्पटिशन में नज़र आते हैं. इनकी कहानी आख़िरी एपिसोड तक चलती है. और आनेवाले तीसरे सीज़न में पंचायत के महत्वपूर्ण किरदार होनेवाले हैं. सचिव अभिषेक त्रिपाठी की अस्मिता की रक्षा के लिए रघुवीर यादव, चंदन रॉय और फ़ैसल मलिक का विधायक के साथ तीखा नोक-झोंक आपको इनके अदाकारी का मुरीद बना देगा. इसके अलावा सिर्फ़ एक एपिसोड में फ़ौजी की भूमिका और उप-प्रधान (फ़ैसल मलिक) के बेटे की भूमिका में नज़र आनेवाले शिव स्वरूप ने सीज़न के आख़िरी एपिसोड को थोड़ा ग़मगीन बना दिया है. आख़िरी एपिसोड के साथ देश के लिए एक मैसेज भी है कि दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आबादी वाले देश की रक्षा के लिए अभी भी हमारे सबसे ज़्यादा फ़ौजी भाई हमारे गांव से ही होते हैं. आख़िरी एपिसोड ख़त्म होते-होते दो पत्रकारों के बीच की वार्ता आपको पक्का रुला देगी. “कहने को तो प्रह्लाद पांडेय के लिए पूरा गांव उनका परिवार है, लेकिन कब तक बाहर रहेंगे कभी तो घर लौटना ही होगा जहां वो सिर्फ़ अकेले होंगे”.
साधारण सी कहानी, बेहतर संवाद, सुंदर लोकेशन और बेहतरीन बैक्ग्राउंड म्यूज़िक के साथ पंचायत का कोई भी एपिसोड आपको कभी भी अकेले नहीं छोड़ता. पहले सीज़न के पहले एपिसोड से लेकर दूसरे सीज़न के आख़िरी एपिसोड तक, इसके सारे कलाकार एकदम जीवंत लगते हैं. आपको आपके गांव में सामान्यतः होने वाली घटनाओं से मिलवाते हैं.