हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात की गारंटी दी है कि यदि उन्हें चुना जाता है तो उनके तीसरे कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था को वे दुनिया में तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बना देंगे. आख़िर उन्होंने यह दावा किस आधार पर किया है, उनका यह दावा कितना सही है और इससे देश के आम आदमी को क्या फ़ायदा होगा? आइए, इस बात की पड़ताल सरल भाषा में करते हैं.
राष्ट्रीय राजधानी के बीचोंबीच प्रगति मैदान में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन और प्रदर्शनी केंद्र ‘भारत मंडपम’ का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से पूरा देश उनकी सरकार द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम देख रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पहले कार्यकाल की शुरुआत में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में 10वें स्थान पर था. दूसरे कार्यकाल में आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर मैं देश को ये भी विश्वास दिलाता हूं कि हमारे तीसरे कार्यकाल में भारत शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में पहुंच कर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है.”
हाल ही में एक बैठक के दौरान मुझसे किसी ने एक बात कही थी कि आंकड़ों के साथ आप जैसा चाहे खेल सकते हैं. इसका सबसे सटीक उदाहरण है वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन का वह बयान जिसमें रुपए के कमज़ोर होने पर उन्होंने कहा था कि इसे यूं मत देखिए कि रुपया कमज़ोर हुआ है, बल्कि ऐसे देखिए कि डॉलर मज़बूत हुआ है. आप वित्त मंत्री की बात से सहमत या असहमत भले ही हों, लेकिन आपको इस बात से सहमत होना ही होगा कि आंकड़ों को किसी एक नज़रिए से देखने पर कोई और और दूसरे नज़रिए से देखने पर कोई और नतीजा निकाला जा सकता है. पर साथ ही, आंकड़ों से सही नतीजा निकालने के लिए आपको उन्हें समग्रता में देखना होता है और हम आगे यही करने जा रहे हैं.
पहले जानिए अमीर, मध्यम आय वर्ग और ग़रीब देशों की परिभाषा
आर्थिक बातें थोड़ी जटिल होती हैं, उन्हें समझने के लिए कई पैरामीटर्स पर ध्यान देना होता है. दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ जानने से पहले बहुत ज़रूरी है कि आप यह जान लें कि अमीर देश वे होते हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति सालाना आय 30 हज़ार डॉलर से अधिक हो. मध्यम आय वर्ग के देश वे होते हैं, जिनकी प्रतिव्यक्ति सालाना आया 30 हज़ार से 10 हज़ार डॉलर के बीच हो और ग़रीब देशों की श्रेणी में वे देश आते हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति सालाना आय 10 हज़ार डॉलर से कम हो. यहां आपको जानकारी देते चलें कि भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 2.6 हज़ार डॉलर है यानी विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद ग़रीब देशों की श्रेणी में शुमार होता है.
देशों की श्रेणी | प्रति व्यक्ति वार्षिक आय (डॉलर में) |
अमीर देश | > 30,000 $ |
मध्यम आय वर्ग के देश | < 30,000-10,000 $ |
ग़रीब देश | < 10,000 $ |
* भारत ग़रीब देशों की श्रेणी में आता है (बावजूद इसके कि हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है)
इस उदाहरण से समझिए अर्थव्यवस्था के आकार का खेल
मान लीजिए कि हम दो गांवों की अर्थव्यवस्था का आकार मापना चाहते हैं. पहले गांव की जनसंख्या 100 है और दूसरे गांव की 200 है. पहले गांव में प्रति व्यक्ति आय 500 रुपए है, जबकि दूसरे गांव में प्रति व्यक्ति आय 300 रुपए है. अब पहले गांव की अर्थव्यवस्था 100 गुणा 500 यानी 50 हज़ार रुपए की हुई. दूसरे गांव की अर्थव्यवस्था 200 गुणा 250 यानी 60 हज़ार रुपए की हुई. तो अर्थव्यवस्था के मामले में दूसरा गांव, जहां लोगों की आय कम है और जनसंख्या अधिक, वह पहले नंबर पर आएगा.
वहीं यदि इन दोनों गांवों की तुलना यहां के आम लोगों के जीवन स्तर से की जाए तो ज़ाहिर है कि अर्थव्यवस्था के आकार में पीछे रह जाने वाले पहले गांव के लोगों का जीवन स्तर बेहतर होगा. बात का सार यह है कि अर्थव्यवस्था के आकार से, उस देश के बाशिंदों के जीवन स्तर में सुधार आने का कोई लेना-देना ही नहीं है.
अब समझिए कैसे मापी जाती है अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री के वक्तव्य का संपूर्ण आकलन करने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था का आकलन उसके जीडीपी से किया जाता है. और जीडीपी को अगर मोटा-मोटा समझा जाए तो जैसा कि हमने ऊपर बताया वह उस देश की कुल जनसंख्या की कुल आय होती है. इस लिहाज़ से देखें तो आप पाएंगे कि भारत जनसंख्या में विश्व में पहले स्थान पर है और प्रति वर्ष हमारे देश में काम करने लायक़ लोगों की संख्या में (18 वर्ष से अधिक उम्र के लोग) बढ़ोरती होती जा रही है. उनकी आय अर्थव्यवस्था में जुड़ती जा रही है तो हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है.
कहने का अर्थ यह कि जनसंख्या अधिक होती चली जाए और यदि सरकार अपनी नीतियों को जस का तस बनाए रखे तब भी जनसंख्या के बढ़ने से अर्थव्यवस्था का आकार अपने आप बड़ा होता जाएगा. और इस लिहाज से यदि अपने तीसरे कार्यकाल में (यदि मोदी आते हैं!) वे कोई बदलाव न करें, तब भी भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी. यही नहीं, यदि वे नहीं आते हैं और कोई अन्य व्यक्ति प्रधानमंत्री बन जाता है तो भी हमारे देश की अर्थव्यवस्था विश्व के तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी. यह बात तो तय है.
अर्थव्यवस्था के इस पैमाने का आम जनता पर क्या असर होता है?
इकॉनमी के किसी भी नंबर पर होने से आम जनता को कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता, क्योंकि जीडीपी तो सभी की साझा आय है. आम जनता पर असर तब पड़ता है, जब हम बात पर कैपिटा जीडीपी यानी प्रति व्यक्ति जीडीपी की बात करें. जब पर कैपिटा जीडीपी बढ़ती है, तब आम आदमी की आय बढ़ती है और वह लाभान्वित होता है. यहां यह बताना बहुत ज़रूरी है आज जबकि हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया के पांचवे नंबर की अर्थव्यवस्था है पर कैपिटा जीडीपी के हिसाब से हम दुनिया के सभी देशों की सूची में 128 वें स्थान पर हैं. यहां हम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 2.6 हज़ार डॉलर की आय के साथ आइवरी कोस्ट, निकरागुआ और कांगो जैसे ग़रीब देशों के बीच मौजूद हैं.
आर्थिक नीतियों का असर लंबे समय बाद नज़र आता है
अर्थव्यवस्था पर बनाई गई नीतियों का असर दिखाई देने में लंबा समय लगता है. अस्सी के दशक में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कम्प्यूटर की जिस क्रांति की शुरुआत की थी उसका असर हमें नब्बे के दशक के उत्तरार्ध और वर्ष 2000 के आसपास मिलना शुरू हुआ. आईटी सेक्टर में लाखों लोगों को रोज़गार मिला, भारत के कई लोग सिलिकॉन वैली पहुंचे और वहां बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ के पद पर क़ाबिज़ हुए. इसी तरह नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल में जो आर्थिक सुधार किए गए, उसके नतीजे वर्ष 2004-05 के आसपास दिखाई दिए, शेयर बाज़ार का आकार बढ़ा, रोज़गार के अवसर बढ़े. इसी तरह आज जो इकॉनमी की बढ़ोतरी दिखाई दे रही है यह 10 से 15 बरस पहले बनाई गई नीतियों के अमल में आने की वजह से नज़र आ रही है. और आज भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार जो नीतियां बना रही है, उसके नतीजे आने में भी 10 से 15 बरस का समय लगेगा. अत: प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि वे गारंटी देते हैं, दरअसल यह भी बताता है कि पिछली सरकारों का कामकाज इतना अच्छा रहा था कि वे अर्थव्यवस्था के मामले में ऐसी गारंटी दे सकते हैं.
अर्थव्यवस्था की विकास दर बहुत मायने रखती है
तो लब्बोलुआब यह है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था चाहे किसी भी पायदान पर क्यों न हो, उसके आम लोगों का जीवन तब बेहतर होता है, जबकि प्रति व्यक्ति जीडीपी बढ़े. इसके लिए देश की अर्थव्यवस्था के विकास की दर मायने रखती है, जो किसी भी सरकार की आर्थिक नीतियों पर निर्भर करती है. अब आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 वर्षीय कार्यकाल में विकास दर का औसत 8% रहा, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नौ वर्षीय कार्यकाल में विकास दर का औसत 5.7% रहा. इस विकास दर के कम होने की वजह में नोटबंदी और जीएसटी को जल्दबाज़ी में लागू होने का पूरा-पूरा योगदान है.
हम सभी चाहते हैं कि हमारा देश ग़रीब देशों की श्रेणी से ऊपर उठकर कम से कम मध्यम वर्ग के देशों की श्रेणी में आए, ताकि देश के लोगों का जीवन स्तर सुधरे. इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि हमारे देश का विकास अगले डेढ़ से दो दशकों में कम से कम 8-9% प्रतिशत की दर से हो. इसके लिए बढ़िया, कसी हुई आर्थिक नीतियां बनाने के साथ-साथ, उन्हें सही ढंग से अमलीजामा पहनाने की ज़रूरत होगी. पर दुर्भाग्य की बात यह है कि वर्तमान सरकार में आंकड़ों का खेल रचकर श्रेय लेने की होड़ तो दिखाई देती है, लेकिन इस बात के प्रति कोई इच्छाशक्ति और तैयारी दिखाई नहीं देती कि सही नीतियां बनाकर अगले एक-दो दशकों में भारत को ग़रीब देशों की श्रेणी से उठाकर मध्यमवर्गीय आय वाले देश की श्रेणी तक ले जाया जाए.
फ़ोटो साभार: फ्रीपिक