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ओए अफ़लातून
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‘‘अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि बिना ज़्यादा तकलीफ़ झेले, लोग कैंसर से उबर आते हैं.’’

दोस्तों के नाम एक कैंसर सर्वाइवर का पत्र

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
December 27, 2023
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मेरी डायरी
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‘‘अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि बिना ज़्यादा तकलीफ़ झेले, लोग कैंसर से उबर आते हैं.’’
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अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर लेखिका रश्मि रविजा ने इस बात का खुलासा किया कि गत अप्रैल (2023) में उन्हें पता चला कि उन्हें ओवरियन कैंसर है और अभी दिसंबर 2023 में डॉक्टर्स ने उन्हें कैंसर मुक्त कर दिया है. इस बीमारी से लड़ने के अपने अनुभवों को उन्होंने एक पत्र के माध्यम से अपने दोस्तों तक पहुंचाया. यह पत्र सभी को पढ़ना चाहिए. जहां कैंसर के मरीज़ इस पत्र को पढ़कर सकारात्मक महसूस करेंगे, जल्द ही स्वस्थ होने पर उनका भरोसा बढ़ेगा, वहीं उनके परिजन यह समझ सकेंगे कि किसी कैंसर पेशेंट की देखभाल किस तरह की जानी चाहिए.

प्यारे दोस्तों,

अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सोचा आप लोगों को एक चिट्ठी लिखूं. अपनी हर हंसी-ख़ुशी, सुख-दुख, यहां शेयर किया है तो जीवन की इस बड़ी घटना से भी आप सबको अवगत कराना भी फ़र्ज़ है. मुझे इसी वर्ष अप्रैल में कैंसर डायग्नोज़ हुआ. पर आप सब चिंता न करें, अब इलाज पूरा हो गया है और मैं इस बीमारी से बाहर निकल आई हूं. डॉक्टर की अनुमति से वॉक, दोस्तों से मिलना-जुलना सब शुरू हो गयाा है. एहतियात तो अब ज़िंदगी भर रखना है और उस पर अमल भी कर रही हूं. धीरे-धीरे ही सामान्य ज़िंदगी की तरफ़ क़दम बढ़ा रही हूं.

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वैसे भी यहां लिखती ही और क़रीबियों का आग्रह भी था कि विस्तार से अपने अनुभव लिखूं, क्यूंकि इस बीमारी का नाम ही इतना बड़ा है कि सुनकर लोग बेतरह डर जाते हैं. पर अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि बिना ज़्यादा तकलीफ़ झेले, लोग इससे निकल भी आते हैं. वैसे कई तरह का कैंसर होता है, सबके शरीर पर इसका प्रभाव, दवाइयों का असर सब अलग तरीके़ से होता है. हर केस दूसरे से अलग होता है. फिर भी अगर मेरे लिखे से अपने दूर-दराज़ के संबन्धियों, परिचितों, दोस्तों के लिए हौसला मिले, उम्मीद बंधे, निराशा न घेरे तो लिखना सार्थक होगा. अब आप सब सोच रहे होंगे, इन सब बातों की बजाए क्या… कैसे… कब… क्यूं… वगैरह क्यों नहीं लिख रही हूं मैं? सब लिखती हूं, थोड़ा धैर्य रखें.

इस वर्ष10 अप्रैल 2023 तक मैं सामान्य ही थी और उसी दिन एक साहित्यिक कार्यक्रम चौपाल में गई थी. सीढियां चढ़कर मेट्रो से गई, चार घंटे का संगीतमय कार्यक्रम अटेंड कर रात दस बजे तक घर लौटी. अगला दिन भी सामान्य तरीके़ से ही गुज़रा. शाम को मैं जब पार्क में वॉक के लिए गई तो मैं चलते हुए हांफने लगी. थोड़ी देर बैठकर दुबारा चली, फिर से हांफने लगी. फ्रेंड्स ने भी कहा, ‘चलो अभी बैठते हैं, पर तुम डॉक्टर को दिखा लेना.’ दो घंटे गपशप करके जब हम लौटने लगे तो मैंने सोचा घर जाने की बजाए डॉक्टर के पास ही चली जाती हूं (बाद में सबने आश्चर्य किया कि इतनी सी बात पर आप सीधा डॉक्टर के पास चली गईं? पर यह मेरे लिए बहुत ही असामान्य सी बात थी. दस हज़ार क़दम चलने वाली पांच सौ क़दम में हांफने लगे, ये बड़ा अजीब था). डॉक्टर को लगा हृदय रोग की समस्या है. दो दिनों तक हृदय से सम्बन्धित सारे टेस्ट हुए पर सब सही था. (दिल तो हमेशा बहुत सम्भाल कर रखा है न, उसे कैसे कुछ होता?) उन्होंने चेस्ट स्पेशलिस्ट के पास रेफ़र किया और इस डॉक्टर ने तुरंत डायग्नोज़ कर लिया कि फेफड़े में पानी भरा हुआ है. यह पानी ऊपर तक आकर हृदय पर दबाव डाल रहा था इसीलिए हांफने की शिकायत हो रही थी. पानी निकाल कर टेस्ट के लिए भेजा गया. और पता चल कि उस पानी में कैंसर के सेल्स विद्यमान हैं. तो बात ये कि 11 अप्रैल की शाम को शिकायत शुरू हुई और 17 अप्रैल को रिपोर्ट आ गई.

अगले ही दिन बड़ा बेटा अंकुर और बहू स्वरुषी बैंगलोर से आ गए. दो दिनों बाद छोटा बेटा अपूर्व डबलिन से आ गया और फिर बच्चों ने सारी भाग-दौड़ की कमान अपने हाथों में ले ली. नवनीत भी निश्चिन्त हो गए. अलग-अलग डॉक्टर्स के ओपिनियन लेना, पेपर्स पढना, अपॉइंटमेंट लेना सब बच्चों के मत्थे. मैं पहले की तरह मूवी-सीरीज़ देखती रही और फ़ेसबुक पर भ्रमण करती रही. मैंने 18, 21, 23, 24…. अप्रैल और उसके बाद भी लगातार कुछ-न-कुछ पोस्ट किया है. आप सबका भी शुक्रिया आप सबसे हंसते-बतियाते ये कठिन समय गुज़र गया.

पहले लंग्स कैंसर का ही शक था फिर कुछ टेस्ट के बाद पता चला, कैंसर का ओरिजिन ओवरी है. डॉक्टर ने बिल्कुल आम लोगों की भाषा में समझाया, ‘ये सेल पानी बहुत बनाता है इसलिए हम लोग जल्दी कीमो शुरू करेंगे’. यानी ओवरी से जनरेट होकर पहले पानी पेट में गया और फिर लंग्स में चला गया. ओवरियन कैंसर था, पर मुझे कभी कोई गायनिक प्रॉब्लम नहीं हुई थी. कितनी अलग-अलग तरह की बीमारियां होती हैं. इतना सारा पानी बदन में लेकर मैं निश्चिन्त घूम रही थी और सोचती रहती थी कि वॉक-योगा के बाद भी वजन टस से मस क्यूं नहीं होता? कुछ बीमारियां इतने दबे पांव आती हैं कि ज़रा भी आभास नहीं होता और फिर धड़ाक से किवाड़ खोल ज़िंदगी में सीधा दाखिल हो जातीं हैं.

फिर 27 अप्रैल को मेरा पहला कीमो हुआ और 21 दिनों के अंतराल पर तीन कीमो हुए. इसके बाद 6 जुलाई को ‘हिंदुजा हॉस्पिटल’ में ऑपरेशन हुआ. वह भी नौ घंटे का. लंग्स में पानी मिला था इसलिए डॉक्टर्स को डर था कि कहीं लंग्स को भी क्षति न पहुंची हो इसलिए पहले कैमरा डालकर लंग्स की पड़ताल की गई, सौभाग्यवश वहां कुछ डैमेज नहीं हुआ था. फिर पेट का ऑपरेशन हुआ और इसके बाद HIPEC दिया गया. यह नई तकनीक है, जिसमें ऑपरेशन के बाद अंदरूनी अंगों को कीमो के सॉल्यूशन से वाश किया जाता है. समय लगना ही था. इतने बड़े ऑपरेशन के एक घंटे बाद ही मुझे होश आ गया और आठवें दिन मैं घर आ गई. होश आने के बाद तुरंत बात नहीं करनी थी. नर्स ने मुझे कागज़ पेन लाकर दिया और घर में आज तक सब चिढ़ाते हैं कि मैंने लिख-लिखकर ही दो पन्ने भरकर बात कर ली. और बाकायदा क्वेश्चन मार्क लगा लगा कर, सब कुछ पूछ डाला…सबने दिन में खाना खाया या नहीं, यह भी. आप सबको तो मेरी लम्बी पोस्ट पढ़ने की आदत है, पर घरवालों को नहीं.

ऑपरेशन के बाद तीन कीमो और हुए और अब सिर्फ़ मेंटेनेस (डॉक्टर के शब्दों में) जारी है.इतने विस्तार से लिखने का प्रयोजन यही है कि अपने किसी अज़ीज़ के साथ ऐसी कोई अनहोनी हो तो घबराएं नहीं. इतना कुछ होने के बाद भी इंसान आसानी से निकल आता है और सामान्य रूटीन शुरू कर सकता है.

बीमारी के विषय में पता चलते ही मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘थैंक गॉड, बेटे की शादी अच्छे से हो गई.’ एक महीने पहले ही अंकुर की शादी हुई थी. अगर उस वक़्त या उससे पहले पता चलता तो मैं कल्पना भी नहीं कर पाती कि क्या होता. मैंने ख़ूब मन से शादी की तैयारियां कीं, बहुत एन्जॉय किया. बच्चे-रिश्तेदार सब अपनी जगह चले गए, सब कुछ निबट जाने के बाद ये बात पता चली. मैंने बीमारी के बारे में ज़्यादा सोचा नहीं, ना पॉजिटिव, न नेगेटिव… बल्कि कुछ भी सोचा ही नहीं. बस जो भी डॉक्टर कहते गए, करती गई और समानांतर में अपनी सामान्य दिनचर्या भी जारी रखी. डॉक्टर भी अच्छे मिले हैं, हमेशा कहते रहे, ‘बिल्कुल सामान्य जीवन बिताइए’. पता नहीं बच्चों को साथ देखकर उन्हें क्या आभास हुआ. उन्होंने बच्चों से कहा, ‘इनकी एक्स्ट्रा केयर मत किया कीजिए.’ मैंने बाद में इस जुमले का ख़ूब इस्तेमाल किया. डॉक्टर ने ये भी कहा, ‘जहां तक हो सके इन्हें नॉर्मल रहने दें, इन्हें पेशेंट की तरह बिल्कुल ट्रीट न करें.’

एक बात और शेयर करती हूं, मैं ऊपर जाने के लिए भी बिल्कुल तैयार थी. बेटों के भविष्य की दिशा तय है, पति अपने काम में व्यस्त हैं, चली भी गई तो कोई बात नहीं… पर फिर एक ख़्याल आया मेरे जाने के बाद कपड़े भले ही ज़रूरतमंदों को दे दें, मेरे कॉस्मेटिक्स तो ये लोग फेंक ही देंगे. उसमें तो एक बारह हज़ार रुपए मूल्य का परफ़्यूम भी था, जो बेटा विदेश से लाया था. मुझे लगा इसकी वैल्यू तो कोई नहीं समझेगा, मैं लगाकर ख़त्म कर देती हूं और मैं चेकअप के लिए, कीमो लेने, हर जगह परफ़्यूम लगा कर जाती. अब मैं तो यही हूं, पर परफ्यूम ख़त्म हो गया है.

पढ़ने-लिखने की रुचि ने भी सामान्य बने रहने में बहुत मदद की. रिपोर्ट आने के दो चार दिनों बाद ही मेरी एक फ्रेंड की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह का समारोह था. मुझे सभी दोस्तों की तरफ़ से कुछ बोलना था. मैंने उस वक्त तक उन्हें अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताया था, ताकि उनकी ख़ुशी में खलल न पड़े. उन्हें सिर्फ़ हांफने वाली बात मालूम थी. एक ने कहा, ‘तुम कुछ लिख कर दे दो, हम पढ़ देंगे’. डॉक्टर के कैबिन के बाहर बैठी मैंने कुछ तुकबन्दियां जोड़कर भेज दीं. रिपोर्ट आने के कुछ ही घंटों बाद एक मैसेज आया, विविध भारती से कहानी की मांग थी. अगले दिन कहीं और से एक आलेख की डिमांड थी. पहले तो मैंने टाल देने का सोचा, फिर सोचा आख़िर मैं ख़ाली ही तो बैठी हूं. लिखकर क्यूं नहीं भेज देती? विविध भारती से कहानी के रेकॉर्डिंग के लिए भी मैसेज आ गया. डॉक्टर ने आश्वस्त किया, ‘आप बिलकुल रेकॉर्डिंग के लिए जा सकती हैं, रेकॉर्डिंग रूम में तो अकेले ही रहना होता है, बेहिचक जाइए.‘ पहले कीमो के चार दिन बाद ही मैंने विविध भारती जाकर कहानी रेकॉर्ड की. आप सबने भी तस्वीरें देखीं थीं. पब्लिक प्लेस पर जाने और बाहर का कुछ भी खाने की मनाही थी, क्योंकि कीमो के बाद इम्यूनिटी कम हो जाती है इसलिए इन्फ़ेक्शन का ख़तरा रहता है. इसका मैंने अक्षरशः पालन किया. मैंने घर में रहकर पेंटिंग शुरू कर दी. वॉट्सऐप स्टेटस में जब पेंटिंग्स की फ़ोटो लगाई तो एक मित्र का मैसेज आया कि वे एक पेंटिंग ख़रीदना चाहते हैं. जब मैंने ये बात अपनी फ्रेंड्स को बताई तो उन्हें लगा, वे भी फ़रमाइश कर सकती हैं और फिर मैं एक पेंटिंग कम्प्लीट कर ग्रुप में फ़ोटो डालती और तुरंत मैसेज आ जाता, ये पेंटिंग मुझे चाहिए.

इस दौरान मैंने आठ पेंटिंग्स बनाईं और सब दोस्तों को दे दीं. पैसे नहीं लिए (पर अब लूंगी इसलिए फ़रमाइश करने से पहले सोच लीजिएगा). इससे मेरा मन लगा रहा, कुछ करने को मिला, यही बड़ी बात थी. फ़िल्में-सिरीज़ भी खूब देखीं. कीमो चढ़ते हुए मैंने फ़िल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’ देखी. घर आकर उसके विषय में लिखकर फ़ेसबुक पर पोस्ट किया और सो गई. सुबह देखा, पोस्ट वायरल हो गई थी. पांच लाख से ऊपर लोगों ने पढ़ा था, पांच सौ के क़रीब शेयर हुए थे. इन सारी ऐक्टिविटीज़ ने सामान्य बने रहने में बहुत मदद की.

इन सबके साथ बच्चे भी चौबीसों घंटे साथ थे. इन्हें वर्क फ्रॉम होम मिल गया था. बहू स्वरूषी अभी अभी परिवार में शामिल हुई थी, पर उसने बहुत साथ दिया. तीनों बच्चे सर जोड़े डॉक्टर और बीमारी के विषय में रिसर्च करते रहते. पर मुझसे बीमारी की कोई बात नहीं करते, हमारा हंसी-मज़ाक चलता रहता. मैंने भी इस दौरान बिल्कुल अनपढ़, गंवार की तरह बिहेव किया. गूगल पर एक शब्द सर्च नहीं करती, रिपोर्ट्स भी नहीं देखती थी. बस, डॉक्टर और मित्र जो सलाह देते, वही करती. खाने-पीने में डॉक्टर ने कुछ भी मना नहीं किया था, पर मैंने अपनी मर्जी से शक्कर, बिस्किट, ब्रेड, तली-भुनी चीज़ें सभी से परहेज़ कर लिया था. प्रोटीन के लिए बच्चों ने पनीर-टोफ़ू बहुत खिलाया, रोज़ाना फल, गाजर-बीटरूट और व्हीटग्रास का जूस भी मुझे घोंटवाया जाता. बच्चों ने अपने बचपन का भरपूर बदला ले लिया, खाने के लिए, टहलने के लिए एकदम सर पर सवार रहते (एक घंटा बिल्डिंग की टेरेस पर, बारिश के दिनों में घर के अंदर भी टहलती थी). मैंने तो बच्चों को दरोगा जी ही नाम दे दिया था. मुझे आंखें दिखाते, आख़िर इलाज पूरा हो जाने के बाद ही अपने स्थान को रवाना हुए.

मानसिक स्थिति मेरी ठीक-ठाक रही, डिप्रेशन में नहीं गई. कभी दुखी नहीं हुई. ‘‘Why me‘‘ वाला ख़्याल भी मुझे कभी नहीं आया. शारीरिक स्तर पर भी ज़्यादा परेशानी नहीं हुई. और इसके लिए मेडिकल साइंस को साष्टांग दंडवत, क्योंकि इतने प्रयोग हो रहे हैं, नई-नई दवाइयां ईजाद हो रहीं हैं कि मरीज़ का कष्ट कम से कमतर किया जा रहा है. कीमो के कष्ट, साइड इफ़ेक्ट्स के विषय में बहुत सुना था, पर अब कीमो की दवा से पहले एक छोटी बोतल preventive medicines की चढ़ाई जाती है. इसमें दर्द-उल्टी-चक्कर-बुखार की दवा होती है इसलिए मुझे कीमो के बाद तीन दिनों तक सिर्फ़ पैरों में हल्का दर्द रहता था, उसके बाद वह भी नहीं. भूख भी लगती रही, खाने का स्वाद भी बना रहा.

हां, बालों पर ज़रूर असर होता है और इस ट्रॉमा से बचने के लिए जिस दिन पहली बार थोड़े से बाल गिरे, मैंने अर्बन क्लैप से एक हेयर ड्रेसर को बुलाकर सारे बाल उतरवा लिए (ये अलग बात है कि लेडी हेयर ड्रेसर थी, उसके पास ट्रिमर ही नहीं था) तो बेटा अपूर्व भागकर ख़रीदकर ले आया. स्वरुषी ने पहले ही अमेजन से कुछ chemo caps मंगवा दिए थे. मैं मानसिक रूप से बिलकुल तैयार थी इसलिए शायद मुझ पर ज़्यादा असर नहीं हुआ. हालांकि इतनी स्ट्रांग भी नहीं हूं, कई दिनों तक मैंने ख़ुद को भी आईने में नहीं देखा था. बाथरूम में भी मिरर के ऊपर तौलिया डालकर रखती पर एक दिन अचानक सिर उठाया और शावर में मेरा प्रतिबिम्ब दिखा, एक पल को लगा ये लामा जैसा दिखता हुआ कौन है? और इसके बाद मैं ख़ुद से सहज हो गई.

ऑपरेशन के बाद भी रिकवर होने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा. घर आने के तीसरे दिन से मैंने पेंटिंग शुरू कर दी थी. डॉक्टर का कहना था, ‘जितना ऐक्टिव रहिएगा रिकवरी उतनी जल्दी होगी ‘. मेरा छोटा बेटा अपूर्व PhD कर रहा है. मेरी बीमारी के दौरान उसने डॉक्टर्स को बहुत क़रीब से देखा और इतना प्रभावित हुआ कि कहता है मैं कभी अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगाऊंगा, डॉक्टर कहलाने के असली हकदार सिर्फ़ ये लोग ही हैं.

डॉक्टर ने पहली बार में ही एक बात ज़ोर देकर कही थी कि निगेटिव लोगों से दूर रहिएगा. जो भी दुःख जताए, निराशावादी बातें करे, उनका फ़ोन मत उठाया कीजिए. मैंने फ़ोन करके किसी को भी अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताया. जिनका फ़ोन आया उन्हें ज़रूर बताया (हाल में कुछ दोस्तों ने शिकायत की कि क्यूं नहीं बताया, उनके लिए यही जवाब है, ‘फ़ोन करते रहा करो’) जिन मित्रों से नियमित बातचीत होती थी और क़रीबी रिश्तेदारों को ही पता था.

‘आप हंसे जग रोए’ वाली बात सच होती दिखी. ऐसी ‘करनी’ तो नहीं की पर कॉलोनी वाली फ्रेंड्स, कुछ लेखिका सहेलियां भी सुनते ही फ़ोन पर ही रोने लगीं. पहली बार सुनकर एक झटका तो लगता ही है. हंसते हुए उन्हें समझाया. ग्रुप में बकायदा वॉइस नोट भेजना पड़ा कि मैं ज़रा भी दुखी और निराश नहीं हूं, मुझसे नॉर्मल रूप से ही बात किया करो. दोस्तों का, बड़ी दीदियों का बहुत सहारा रहा. सब नियमित फ़ोन करते रहे, हौसला बढाते रहे. सबके मुंह पर एक ही बात थी, ‘तुम जल्दी निकल आओगी’. एक फ्रेंड ने ज़ोर देकर कहा था, ‘देखना रश्मि छह महीने में ठीक होकर हमारे साथ वाक के लिए आने लगेगी.’ उनका विश्वास कायम रहा.

कीमो के सायकल ख़त्म होते ही सब मिलने भी आए. एकाध अलग अनुभव भी हुए, एक रिश्तेदार ने बहुत आह भरकर कहा, ‘चलो… एक बेटे की शादी तो देख ली.’ मैंने तपाक से कहा, ‘दूसरे की भी देखूंगी’. मेरे लिए लगातार प्रार्थनाएं होती रहीं. दोस्तों ने अपने प्रेयर ग्रुप में मेरा नाम भेजा. कुछ दोस्तों ने तो मन्नत भी मान रखी है, सुदूर कर्नाटक के किसी क़स्बे के देवताओं की. मैंने उन देवताओं का नाम भी नहीं सुना, पर उन सबका आशीर्वाद मुझे मिला. बिल्डिंग में जिन पुरुषों से कभी बात भी नहीं हुई, वे भी अब रोक कर बातें करते हैं और बताते हैं कि मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे. बच्चों के फ्रेंड्स अलग अलग देशों के हैं. उन सबकी दुआएं भी मिलती रहीं. इटली व अमेरिका से एक लड़की ने और गिलगिट पाकिस्तान से एक लड़के ने अपनी मांओं की फ़ोटो भेजी कि इसी बीमारी से गुज़रकर वे बाहर निकल आई हैं. सबकी दुआओं का ही असर है कि मैं इस झंझावात से सही सलामत निकल आई. अप्रत्यक्ष रूप से आप सबकी शुभकामनाएं भी हमेशा साथ थीं. कभी भी इस प्रेम से उऋण नहीं हो पाऊंगी. सबका बहुत बहुत आभार.

मेरी बीमारी की बात सुनकर बहुतों को पहला ख़्याल यही आता है, ‘इतना वॉक करती थी, योग करती थी, खान-पान भी सही था, फिर भी ये बीमारी कैसे हो गई?‘ मुझे लगता है वॉक और योग बीमारी तो नहीं रोक सकती, पर जल्दी उबरने में ज़रूर मदद कर सकती है. कम कष्ट होने और जल्दी रिकवर होने में इसने पूरा सहयोग दिया. एक फ्रेंड ने कहा, ‘नियमित वॉक और योग से तुम्हारे दूसरे अंग इतने स्वस्थ थे कि उन पर असर नहीं पड़ा. क्या पता यह भी सही हो.

अंत मे दो ज़रूरी बातें: पहली ये कि पचास की उम्र के बाद पूरा बॉडी चेक अप ज़रूर करवा लें. ईश्वर करे कोई बीमारी न निकले, पर अगर कोई बीमारी हो तो जल्दी पता चल जाएगा, क्योंकि मेरी इस बीमारी की तरह कुछ बीमारियों के कोई लक्षण नहीं होते. और दूसरी बात ये कि मेडिकल इंश्योरेंस ज़रूर करवा कर रखें. यह मरीज़ के परिजनों को राहत ही नहीं देता, मरीज़ को ठीक होने में भी बहुत मदद करता है. अगर मेरा इंश्योरेंस नहीं रहता तो मैं गिल्ट के बोझ तले ही दब जाती कि मेरे ऊपर इतने पैसे ख़र्च हो रहे हैं, फिर इतनी जल्दी और ख़ुश-ख़ुश ठीक नहीं हो पाती.
ये पत्र भी रिकवर होने के पीछे एक बड़ा मोटिवेशन रहा, क्योंकि मैंने सोच रखा था कि ठीक होने के बाद चिट्ठी लिखूंगी और इसके लिए मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था. आप सब अपना खूब ख़्याल रखें.

आप सबकी
-रश्मि रविजा

पुनश्च, अब ये पुनश्चः ना हो तो पत्र का फ़ॉरमेट कैसे पूरा होगा? लिखते-लिखते यह पत्र इतना लंबा हो गया, जब फ्रेंड्स से आशंका जताई तो उन्होंने भेजने के लिए कहा और बताया कि वो एक सांस में पढ़ गईं. मुझे धमकाया भी गया, ‘ इसमें से कुछ भी कट किया तो देखना! अब यह पत्र नॉर्मल पोस्ट थोड़े ही है, लंबा तो होना ही है हुआ. देख लो, भई सारा वैसे ही पोस्ट कर दिया है.

फ़ोटो साभार: फ्रीपिक

 

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