भारत के मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम अपने दौर के सबसे सम्मानित और प्रेरक हस्तियों में एक थे. उनके विचार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कितने ही बच्चों, युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं और आने वाले समय तक प्रेरित करते रहेंगे. आज कलाम होते तो अपना 91वां जन्मदिन मना रहे होते. वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी उनके जन्मदिन पर उन बातों, घटनाओं का ज़िक्र कर रही हैं, जिन्होंने कलाम के व्यक्तित्व को गढ़ा. उन्हें सदी के सबसे प्रेरक भारतीयों में एक बनाया.
अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम यानी एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था. वे एयरफ़ोर्स में जाना चाहते थे, पर उनका चयन नहीं हो पाया था. आगे चलकर उन्होंने भारत के लिए कई मिसाइलें बनाईं. अग्नि और पृथ्वी जैसी विभिन्न मिसाइलों का निर्माण करने के चलते उन्हें मिसाइल मैन कहा जाता था. वे भारत के राष्ट्रपति भी बने. साधु ब्रम्हविहारी दास के शब्दों में, कलाम के बाद दूसरा कोई नेता नहीं हुआ, जिसने हमारे दिलोदिमाग़ को उस तरह जकड़ा और प्रेरित किया हो, जिस तरह डॉ कलाम ने किया था. डॉ कलाम के सलाहकार और अंतिम समय तक उनके साथ रहे लेखक, स्पीकर डॉ सृजन पाल सिंह के मुताबिक़, सादा जीवन, उच्च विचार की फ़िलॉसफ़ी पर जीने वाले डॉ कलाम का व्यक्तित्व बेहद सरल था. सफलता का गुरुमंत्र देते हुए उन्होंने मुझसे कहा था कि, असफलता से डरना छोड़ दो. किसी भी व्यक्ति में बुराई मत ढूंढ़ो. कोशिश ये करो कि उसकी बुराई में भी अच्छाई खोज लो. लोगों में बुराई ढूंढ़ना आसान है, लेकिन यदि इसको पीछे छोड़कर आप अच्छाई खोजना शुरू कर देंगे तो ज़िंदगी बेहद आसान हो जाएगी. अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में समर्पित करनेवाले वाले कलाम से सबने सीखा, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में मिले कुछ महत्वपूर्ण सबक कहां सीखे, आइए जानते हैं.
#1 बहन से सिखाया त्याग का महत्व
रामेश्वर के छोटे से गांव में जन्मे कलाम के परिवार में पांच भाई और पांच बहनें थीं. उनके पिता मछुआरों को बोट किराए पर देकर घर चलाते थे. पिता ज़्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं थे लेकिन ऊंची सोच वाले व्यक्ति थे. कलाम का बचपन आर्थिक तंगी में बीता. यह तो हम कई जगह पढ़ चुके हैं कि कलाम ने अपनी आरम्भिक शिक्षा रामेश्वरम् में पूरी की, सेंट जोसेफ़ कॉलेज से ग्रैजुएशन की डिग्री ली और मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. उनकी लिखी हुई पुस्तकें विंग्स ऑफ़ फ़ायर, इंडिया 2020, इग्नाइटेड मांइड, माय जर्नी आदि हैं. अब्दुल कलाम को 48 यूनिवर्सिटी और इंस्टीट्यूशन से डाक्टरेट की उपाधि मिली थी. पर यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितना लंबा संघर्ष किया. जिस बात की चर्चा हम करने जा रहे हैं, वह उनके छात्र दिनों की है.
कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एमआईटी में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में तीन वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा में पढ़ने के लिए आवेदन किया था. उनका आवेदन मंजूर हो गया, लेकिन इस प्रतिष्ठित संस्था में प्रवेश काफ़ी महंगा था. इस मोड़ पर कलाम की बहन ज़ोहरा उनकी मदद के लिए आगे आईं. दाखिले की फ़ीस के लिए उन्होंने अपनी सोने की चूड़ियां और चेन गिरवी रख दीं. यह काम करके उन्होंने कलाम को असली त्याग का महत्व सिखा दिया.
#2 असफलता ने बताया कि तक़दीर में कुछ और बनना लिखा है
जनवरी 1958 में अब्दुल कलाम एयरफ़ोर्स की परीक्षा में असफल होने से व्यथित थे. उन्हीं के शब्दों में,‘‘मैं बहुत बुरी तरह निराश था. यह समझने में मुझे थोड़ा वक़्त लगा कि वायु सेना में भर्ती होने का अवसर मेरे हाथों से फिसल गया था.’’ हताश कलाम ने ऋषिकेश में कुछ समय बिताने का निर्णय लिया. उन्होंने गंगा में स्नान किया और थोड़ी दूर पहाड़ी के ऊपर बने शिवानंद आश्रम गए. वहां वे स्वामी शिवानंद से मिले, उन्होंने कलाम के कुछ बोलने से पहले पूछ लिया कि वे क्यों दुखी हैं. कलाम ने उन्हें भारतीय वायुसेना में भर्ती होने की अपनी नाकाम कोशिश और आसमान में उड़ान भरने की अपनी लंबे समय की इच्छा को बताया. स्वामीजी ने कहा कि जीवन जैसे-जैसे खुलता है, उसे उसी रूप में लेना चाहिए,‘अपने भाग्य को स्वीकार करो और जीवन में आगे बढ़ो. वायु सेना का पायलट बनना तुम्हारी तक़दीर में नहीं है. तुम्हारी तक़दीर में क्या बनना लिखा है, यह अभी तुम्हारे सामने स्पष्ट नहीं है, लेकिन सही समय पर वह सामने आ जाएगा. इस असफलता को भूल जाओ, क्योंकि तुम्हें तुम्हारे तय मार्ग तक ले जाने के लिए इसका अपना मक़सद था. ख़ुद के साथ एक हो जाओ, तुम्हें बस इतना ही करना है, बाकी सब तुम्हारे लिए कर दिया जाएगा.’
#3 पिता ने सिखाया सादे और विनम्र जीवन का महत्व
1956 में गर्मियों में एक महीने तक कलाम ने अपने बीमार पिता की देखभाल की. उनके पिता जैनुलाबदीन उनके पहले शिक्षक थे, और हमेशा सबसे ऊपर बने रहे. उन्होंने कलाम से कभी झूठ नहीं बोला. जब कलाम उनसे कोई प्रश्न करते थे, तो वे हमेशा उसका जवाब देते थे. कलाम कम उम्र में ही कई चीज़ें जानने लगे थे, क्योंकि उनके पिता ने उन्हें चीज़ें जानने, शंकाएं व्यक्त करने और जवाब खोजने के लिए प्रोत्साहित किया था. कलाम के एमआईटी लौटने से पहले जैनुलाबदीन ने अपनी सभी संतानों को एक साथ बैठाया और उन्हें एक गहरी बात बताई, जो उनके 82 वर्ष के जीवन का सार थी. उन्होंने कहा, यह मिट्टी नहीं, बल्कि मिट्टी का डर है, जो इंसान के अधोपतन की निशानी है. जिन अधिकारी परिवारों के बच्चे जीने की महंगी आदतें सीखते हैं, वे सिर्फ़ एक-दो पीढ़ी तक समृद्ध होते हैं. जो व्यापारी परिवार मेहनती और मितव्ययी होते हैं, वे तीन-चार पीढ़ियों तक समृद्ध हो सकते हैं. जो परिवार ज़मीन जोतते हैं, पुस्तकें पढ़ते हैं और जिनमें सादा जीवन तथा सावधान आदतें होती हैं, वे पांच-छह पीढ़ियों तक समृद्ध होते हैं. जिन परिवारों में पिता, बुज़ुर्गों और पूर्वजों के प्रति सम्मान व मित्रता भाव के सद्गुण होते हैं, वे आठ-दस पीढ़ियों तक समृद्ध होते हैं. यह बात गांठ बांध लो और ग़रीबों के प्रति कभी निष्ठुर या रुखे मत बनो.
#4 अपने अनुभवों से सीखा, दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने का हुनर
स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़े स्वामी ब्रह्मा विहारी दास लगभग 14 वर्ष तक कलाम के मित्र रहे हैं. इस दौरान के कई किस्से हैं. स्वामी ब्रम्हा ने लिखा है कि जब हमने एक बार उनसे पूछा कि वे इतने युवा और ख़ुश कैसे रहते हैं, तो उनका जवाब था, मैं बस ख़ुद से पूछता हूं. मैं क्या दे सकता हूं? अगर हर इंसान ख़ुद से और दूसरों से यही सवाल पूछने लगे, तो पूरा संसार ख़ुश और युवा रहेगा. स्वामी जी के मुताबिक़ एक बार युवाओं को संबोधन के बाद कलाम बेहद थके हुए थे. तभी एक छोटा बच्चा गंदा मुड़ा हुआ कागज लेकर आया. कलाम ने उसे सुरक्षा घेरे के अंदर आने दिया. लड़का उनका ऑटोग्राफ़ चाहता था, मगर उसके पास पेन नहीं था. डॉ कलाम ने किसी से पेन मांगा और बड़े प्यार से उस काग़ज़ पर ऑटोग्राफ़ दे दिए, जिसे लड़के ने लापरवाही से मोड़कर जेब में रख लिया. डॉ कलाम ने मुस्कुराकर कहा कि, कभी किसी बच्चे को निराश मत करो, क्योंकि वह अपने जीवन के शुरुआती वर्ष जी रहा है. इसके कुछ मिनट बाद वे अपनी कार की तरफ़ जा रहे थे. नब्बे साल के एक किसान ने भीड़ में से अपना हाथ उठाया. डॉ कलाम तुरंत उस तक पहुंच गए. उनका परनाती डॉ कलाम के साथ फ़ोटो खि़ंचाना चाहता था. उसे संतुष्ट करते हुए उन्होंने कहा, कभी किसी बुज़ुर्ग को निराश मत करो, क्योंकि वह अपने जीवन के अंतिम वर्षों को जी रहा है. उनके जीवन का दर्शन बस इतना ही सरल था. वे इस पृथ्वी पर एक भी दुखी चेहरा नहीं देखना चाहते थे.
#5 धर्म से पर आस्था ने सिखाया किस्मत के विरूद्ध शिकायत करना सही नहीं है
समुद्र किनारे बसे हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल रामेश्वरम में रहने वाले अब्दुल कलाम के पिता जैनुलाबदीन के पिता की नाव चक्रवाती तूफ़ान में ख़राब हो गई. तब उन्होंने अपना संयम कायम रखा और अपने दुर्भाग्य पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजिउन. तब छोटे से कलाम ने इसका अर्थ पूछा तो जैनुलाबदीन बोले, संसार में ऐसा अक्सर होता है कि कोई इंसान कोई चीज़ गंवा देता है या कोई तबाही होती है. इस्लाम हमें सिखाता है कि ऐसे मौक़ों पर हम इसे अल्लाह की मर्जी मानें और स्वेच्छा से अपने दुर्भाग्य के प्रति तटस्थ हो जाएं. ईश्वर ने यह संसार मानव जाति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से बनाया था. यहां पाना और खोना दोनों ईश्वर की परीक्षाएं हैं. इसलिए जब कोई इंसान कोई चीज़ पाता है, तो उसे ख़ुद को ईश्वर का कृतज्ञ सेवक साबित करना चाहिए. जब वह कोई चीज़ खो देता है, तो उसे धैर्य का नज़रिया अपनाना चाहिए. ऐसा करने वाला इंसान ईश्वर की परीक्षा में खरा उतरता है. आज़ाद ने इस घटना से यह सबक सीखा कि क़िस्मत के ख़िलाफ शिकायत करने के बजाय ईश्वर की मर्जी के प्रति समर्पण का नज़रिया होना चाहिए. उन्होंने नुक़सान को एक नई खोज में बदलने का रहस्य सीखा.