आज के भारत में महात्मा गांधी (बापू) की तलाश कर रही है हूबनाथ पांडे की कविता ‘बापू’.
मैं जब तक राजघाट पहुंचा
आप निकल चुके थे
बा और चारों बच्चों को लिए
पैदल ही पोरबंदर चल दिए
बेरोज़गार मज़दूरों के साथ
बाद में पता चला कि
पुणे के पास कहीं
थककर बा ने दम तोड़ दिए
उसी समय अख़बार में पढ़ा
कि कुछ लोगों ने आपको
फिर से गोली मार दी
बाद में पता चला कि
वह तो आपका पुतला था
आप तो अपने बेटों के साथ
कोविड सेंटर में
मरीज़ों की सेवा कर रहे थे
मैं वहां भी आया
तब तक आप काशी में
मुर्दों के अंतिम संस्कार में
व्यस्त हो गए
इस बुढ़ापे में एक जगह
स्थिर होकर बैठना था
तो जाकर बैठ गए
किसानों के साथ
राजधानी की सीमा पर
कड़कड़ाती ठंड में
जिस दिन मैं पहुंचा
सिंघु बॉर्डर पर
आपकी चिता जल रही थी
फिर से राजघाट पर
कुछ हताश निराश
सिर झुकाए सिसक रहे
तो कई अलाव की तरह
ताप रहे चिता आपकी
पर मैं जानता हूं
कल पकड़े जाओगे
नक्सलियों के बीच
जल ज़मीन जंगल के लिए
किसी अदालत में चलेगा
मुक़दमा राजद्रोह का
और क़ैद कर दिए जाओगे
सरकारी दीवारों पर टंगी
मुस्कुराती तस्वीरों में
नज़रबंद किए जाओगे
संग्रहालयों ग्रंथालयों में
सेमिनारों गोष्ठियों में
देश के दुर्भाग्य का ठीकरा
आपके ही सिर फूटेगा
बहुत रूप बदलते हो ना!
अब पूरी ज़िंदगी तड़पोगे
मोटी मोटी पोथियों में
घुन लगी व्यवस्था में
खा जाएंगे निर्लज्ज दीमक
तब फिर एक बार
मैं आऊंगा आपसे मिलने
उसी राजघाट पर
जहां हर साल जलती है
चिता आपकी
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