उर्दू शायरी को उसकी नफ़ासत के लिए जाना जाता है. उर्दू शायर शायरी के अपने सलीके के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में जॉन एलिया की शायरियां सलीके के इस फ्रेम को तोड़ती हैं. यही कारण है, आज की पीढ़ी को नफ़ासत भरे शायरों के बजाय जॉन एलिया ज़्यादा पसंद आते हैं. यहां पढ़ें उनकी शायरी ‘जब हम कहीं न होंगे तब शहर भर में होंगे’.
जब हम कहीं न होंगे तब शहर भर में होंगे
पहुंचेगी जो न उस तक हम उस ख़बर में होंगे
थक कर गिरेंगे जिस दम बांहों में तेरी आ कर
उस दम भी कौन जाने हम किस सफ़र में होंगे
ऐ जाने-अहदो-पैमां, हम घर बसाएंगे हां
तू अपने घर में होगा, हम अपने घर में होंगे
मैं ले के दिल के रिश्ते घर से निकल चुका हूं
दीवारो-दर के रिश्ते, दीवारो-दर में होंगे
तुझ अक्स के सिवा भी ऐ हुस्ने-वक़्ते-रुख़्सत
कुछ और अक्स भी तो उस चश्मे-तर में होंगे
ऐसे सराब थे वो ऐसे थे कुछ कि अब भी
मैं आंख बंद कर लूं तब भी नज़र में होंगे
उस के नक़ूशे-पा को राहों में ढूंढ़ना क्या
जो उस के ज़ेरे-पा थे वो मेरे सर में होंगे
वो बेशतर हैं जिन को कल का ख़याल कम है
तू रुक सके तो हम भी उन बेशतर में होंगे
आंगन से वो जो पिछले दालान तक बसे थे
जाने वो मेरे साए अब किस खन्डर में होंगे
जब हम कहीं न होंगे तब शहर भर में होंगे
पहुंचेगी जो न उस तक हम उस ख़बर में होंगे
पुस्तक: मैं जो हूं, ‘जॉन एलिया’ हूं
संकलन: शीन काफ़ निज़ाम
संपादन: डॉ कुमार विश्वास
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
Illustration: Pinterest