• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home सुर्ख़ियों में चेहरे

पत्रकारिता को कमाल ख़ान उसकी शर्म लौटाते थे

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
January 14, 2022
in चेहरे, ज़रूर पढ़ें, सुर्ख़ियों में
A A
पत्रकारिता को कमाल ख़ान उसकी शर्म लौटाते थे
Share on FacebookShare on Twitter

कमाल ख़ान एक संजीदगी से भरपूर शख़्सियत और एक ऐसे पत्रकार कि आप उनकी रिपोर्टिंग को देखने के लोभ का संवरण न कर सकें. उनकी रिपोर्ट्स में जानकारियों का वितान, भाषा और भाव-भंगिमा का संतुलन, उसे प्रस्तुत करने का मानवीय तरीक़ा सबकुछ आम लोगों के लिए सहज समझने जैसा और पत्रकारों के लिए सीखने जैसा हुआ करता था. आज, जबकि उनके देहावसान की ख़बर ने उनके सभी चाहनेवालों को ग़मगीन कर रखा है, उन्हें याद कर रहे हैं, उनके सहकर्मी प्रियदर्शन.

 

 

इन्हें भीपढ़ें

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
Butterfly

तितलियों की सुंदरता बनाए रखें, दुनिया सुंदर बनी रहेगी

October 4, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024

जिसके साथ बरसों-बरस काम किया, उसके एक झटके में चले जाने का दुख बहुत तीखा होता है.
कभी उनसे लखनऊ के टुंडे कबाब पर बात हो रही थी. उन्होंने हंसी-हंसी में कहा कि आपको इससे बेहतर कबाब मिल जाएंगे, लेकिन टुंडे कबाब नहीं मिलेगा.
शायद ख़ुद कमाल ख़ान पर यह बात लागू होती थी. उनसे अच्छे-बुरे पत्रकार दूसरे होंगे, लेकिन दूसरा कमाल ख़ान नहीं होगा.
वे कई मायनों में अनूठे और अद्वितीय थे. टीवी ख़बरों की तेज़ रफ़्तार भागती-हांफती दुनिया में वे अपनी गति से चलते थे. यह कहीं से मद्धिम नहीं थी. लेकिन इस गति में भी वे अपनी पत्रकारिता का शील, उसकी गरिमा बनाए रखते थे. यह दरअसल उनके व्यक्तित्व की बुनावट में निहित था. जीवन ने उन्हें पर्याप्त सब्र दिया था. वे तेज़ी से काम करते थे, लेकिन जल्दबाज़ी में नहीं रहते थे. यह शिकायत उनसे कभी नहीं रही कि वे डेडलाइन पर अमल नहीं करते थे. लेकिन जो काम करते थे, उसमें अपनी तरह की नफ़ासत, अपनी तरह का सरोकार- दोनों दिखाई पड़ते थे.

यह चीज़ शायद हिंदी-उर्दू की उनकी साझा पढ़ाई का नतीजा थी. उनके पास समकालीन राजनीति, साहित्य और इतिहास का पर्याप्त अध्ययन था. इसके अलावा पत्रकारिता ने उनको अपने समाज की गहरी समझ दी थी. उनको अपने समय की विडंबनाओं की पहचान थी. वे राजनीतिक मुहावरों में नहीं फंसते थे. उनको मालूम था कि जिस भी रंग की राजनीति हो, उसका अपना अवसरवाद हमारे दौर में चरम पर है. लेकिन ऐसा नहीं कि वे जो कुछ घट रहा है, उससे वे निर्लिप्त थे. देश और दुनिया के हालात उन्हें व्यथित करते थे. कई बार उनके लंबे फ़ोन आते. कभी किसी स्टोरी के बहाने, कभी किसी डॉक्युमेंटरी के बहाने, कभी किसी शो का नाम रखने के बहाने, कभी स्क्रिप्ट में की जाने वाले पीटूसी के बहाने. कई बार दफ़्तर के हालात पर भी बात होती. निजी बातचीत में एक बेचैनी उनके भीतर हमेशा दिखाई पड़ती थी.

उनका अपना एक मूल्यबोध था. वे हर लिहाज से प्रगतिशील थे- गंगा-जमनी संस्कृति के हामी, सामाजिक न्याय के पैरोकार, लैंगिक बराबरी के समर्थक- बल्कि उसके प्रति बेहद संवेदनशील. यह बस इत्तिफ़ाक नहीं है कि एनडीटीवी इंडिया पर जो उन्होंने आख़िरी बातचीत की, वह इसी लैंगिक बराबरी के संदर्भ में थी. यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जो 125 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, उसमें 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दिए गए हैं. ऐसी चार महिलाएं गुरुवार के हमारे शो प्राइम टाइम में थीं. यह शो नग़मा कर रही थीं. कमाल खान ने इसमें राजनीतिक समीकरणों की चर्चा नहीं की, वे लैंगिक असमानता के विभिन्न पक्षों पर बात करते रहे.
दरअसल लगातार सतही और उथली होती पत्रकारिता के इस दौर में वे एक उजली मीनार जैसे थे. वे समाज के भीतर से ख़बरें निकालते थे और ख़बरों के आईने में फिर समाज को उसकी पहचान लौटाते थे. वे तात्कालिक वर्तमान को इतिहास से जोड़ते थे और निरी स्थानीयता को एक व्यापक राष्ट्रीय संदर्भ देते थे. और यह काम वे इतनी सहजता से करते थे कि ख़बर में न कोई भारीपन आता और न ही कोई व्यवधान.
मसलन, बरसों पहले एक ख़बर उन्होंने अयोध्या पर की. बताया कि वहां मंदिरों में देवताओं के फूल और वस्त्र मुस्लिम घरों से आते हैं. यह ख़बर कोई दूसरा रिपोर्टर भी कर सकता था. लेकिन कमाल ने इसे अपनी आख़िरी टिप्पणी में एक नया आयाम दिया. उन्होंने कहा कि यहां से 100 मील दूर मगहर में वह कबीर सोया है, जिसने 600 साल पहले….. अचानक कमाल की ख़बर देशकाल की सीमाओं को लांघती हुई जैसे हमारे लिए एक बड़े सच का संधान करने वाली जानकारी हो गई.
इसी तरह यूपी की राजनीति में नेताओं की अशिष्ट भाषा पर बात करते हुए उन्होंने एक लंबी खबर तैयार की. लगभग हर दल के नेता इस अशिष्टता में एक-दूसरे को मात देते दिख रहे थे. ख़बर के अंत में कमाल ख़ान ने इन सबकी भर्त्सना नहीं की. उन्होंने कहा, तहज़ीब के शहर लखनऊ से, शर्मिंदा मैं कमाल ख़ान.

आज की पत्रकारिता में यह शर्म नहीं बची है. यह दंभ वाली, अहंकार वाली, सत्ता के साथ अपने संबंधों पर इतराने वाली पत्रकारिता है. या फिर सत्ता के विरोध में भी किसी और की आवाज़ बन चुकी पत्रकारिता है. इस पत्रकारिता को कमाल ख़ान उसकी शर्म लौटाते थे, उसके सरोकार याद दिलाते थे, बताते थे कि दंभ और अहंकार से बड़ी एक चीज़ वह भाषा है, जिसको क़ायदे से बरत कर ही हम पत्रकार बन सकते हैं.
हिंदी का दुर्भाग्य एक और है. यह लगातार सिकुड़ती हुई भाषा है और इसमें होने वाली पत्रकारिता नितांत इकहरी होती जा रही है. हिंदी के औसत पत्रकार बहुत ख़राब भाषा लिखते और बोलते हैं- यह बस भाषा की शुद्धता और अशुद्धता का मामला नहीं है, कहीं ज़्यादा बड़े सरोकार की बात है. उनकी भाषा में सूचना होती है, सनसनी होती है, चीख-पुकार होती है, लेकिन यह भाषा दर्शक तक पहुंचने के पहले दम तोड़ देती है, किसी शून्य में खो जाती है या फिर किसी तमाशे में बदल जाती है. उसमें हमारी जातीय स्मृति का बोध नहीं होता, उसमें हमारी चेतना स्पंदित नहीं होती.
कमाल इस मामले में विलक्षण थे. वे साफ़-सुथरी हिंदी और उर्दू के मेल से ऐसी सहज भाषा बोलते थे जो हमारी चेतना के तालाब में कंकड़ों की तरह गिरती थी और उसकी तरंगें दूर तक जाती थीं.

हालांकि इस दौर में उनका काम लगातार मुश्किल होता जा रहा था. वे जैसे एक बर्बर दौर में पत्रकारिता कर रहे थे जिसके यथार्थ को सहन करना, उसका भाषा में वहन करना आसान काम नहीं है. अयोध्या में मंदिर निर्माण के नाम पर चली कई तरह की राजनीति के बीच सही ख़बर देना, एक संतुलन बनाए रखना किसी के लिए भी एक बड़ी चुनौती है. लेकिन वे राजनीति के वर्तमान के बीच राम की परंपरा को खोज लाते थे, वे राम के मर्म तक पहुंचते थे. वे कुंभ की कहानी कहते-कहते परंपरा की नदी में पांव रखते थे, वे तीन तलाक के नाम पर चल रही नाइंसाफियों की शिनाख़्त करते हिचकते नहीं थे, वे किसी भी समाज के कठमुल्लेपन को पूरी सख़्ती से आईना दिखाते थे.

इस टिप्पणी में मैं लगातार उस निजी शोक को स्थगित रखने की कोशिश कर रहा हूं जो उनके न रहने के बाद मेरे भीतर किसी सन्नाटे की तरह गूंज रहा है. लेकिन बहुत सारी बातें सहजता से चली आ रही हैं. कुछ दिन पहले दफ़्तर में अदिति राजपूत ने मुझसे पूछा- आप बड़े हैं या कमाल ख़ान. बात उम्र के संदर्भ में हो रही थी. मैंने कहा, सीधे कमाल से पूछ लेते हैं. उनको फ़ोन मिलाकर पूछा, कमाल, आप कितने बड़े हैं? क्या मुझसे बड़े हैं? एक क्षण की अचकचाहट के बाद कमाल हंसने लगे. फिर हमने कुछ हल्की-फुल्की बात की. उनकी फ़िटनेस की भी चर्चा हुई. कल भी दफ़्तर में इस पर चर्चा होती रही कि कमाल कितने चुस्त-दुरुस्त रहते हैं.
लेकिन कमाल जैसे सुबह-सबह झटका देने को तैयार थे. वे जल्द ख़बर देते थे, लेकिन ब्रेकिंग न्यूज़ वाली फूहड़ता में फंसने से बचते थे. उन्होंने अपने ढंग से ख़बर ब्रेक कर दी- ज़िंदगी बहुत भरोसे लायक नहीं, आख़िरी बाज़ी मौत के हाथ लगती है.
अब मौत को मात देने का काम हमारा है. कमाल ख़ान को बचाना है तो जड़ स्मृतियों से ज़्यादा उनकी पत्रकारिता की परंपरा को बचाना होगा. यह हम सबकी साझा चुनौती है. फ़िराक़ गोरखपुरी का मशहूर शेर है- आने वाली नस्लें रश्क करेंगी तुम पर ऐ हमअसरों / उनको जब मालूम ये होगा कि तुमने फ़िराक़ को देखा है. हम भी कुछ गुरूर से कह सकते हैं- हमने कमाल को देखा है.

साभार: ndtv.in
फ़ोटो: गूगल

Tags: Headlinesjournalist Kamal KhanKamal KhanKamal Khan's departurelast farewellNDTV journalistPriyadarshantribute to Kamal Khanwe have seen Kamalअंतिम विदाईएनडीटीवी पत्रकारकमाल ख़ानकमाल ख़ान का जानाकमाल ख़ान को श्रद्धांजलिपत्रकार कमाल ख़ानप्रियदर्शनसुर्ख़ियां चेहरेहमने कमाल को देखा है
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

ktm
ख़बरें

केरल ट्रैवल मार्ट- एक अनूठा प्रदर्शन हुआ संपन्न

September 30, 2024
Bird_Waching
ज़रूर पढ़ें

पर्यावरण से प्यार का दूसरा नाम है बर्ड वॉचिंग

September 30, 2024
food-of-astronauts
ख़बरें

स्पेस स्टेशन में कैसे खाते-पीते हैं ऐस्ट्रोनॉट्स?

September 25, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.