शांति यह शब्द विसंगतियों से भरा है. जो सबसे ज़्यादा शांति की बातें करता है, कहीं न कहीं वह युद्ध की तैयारी कर रहा होता है. यूक्रेन पर रूस के हमले से पूरा विश्व व्यथित है, तो समाज के सबसे संवेदनशील तबके यानी हमारे कवि इससे अछूते कैसे रहते. कवि अरुण चन्द्र रॉय युद्ध भूमि और इसकी पृष्ठभूमि को इन दो कविताओं के माध्यम से स्पष्ट कर रहे हैं.
1. युद्ध
यदि युद्ध न हो
तो क्यों बनें हथियार
क्यों बने बम, बन्दूक, बारूद!
जब दुश्मन के गांवों में, स्कूलों में, बच्चों पर
बरसाने ही नहीं हैं गोले
फिर क्यों बनाएं हमने
तोप, तरह-तरह के अत्याधुनिक बमवर्षक विमान!
सेनाओं को प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में लड़ने के
तैयार किया गया है इसीलिए तो
कि एक दिन वे लड़ें, मारें, मर जाएं
और शहीद कहलाएं!
दुनिया कभी युद्ध-मुक्त नहीं हो सकेगी
और जो कह रहे हैं जमा कर सीमा पर सेना
भण्डार कर तरह-तरह के अत्याधुनिक शस्त्र-अस्त्र
कि नहीं चाहते युद्ध,
सरासर झूठ कहते हैं वे
2. अजेय
दुनिया में कुछ भी
अजेय नहीं
वह जो अजेय है
मात्र है एक दंभ
धूल में मिल जाएंगी
ये सभ्यता
पीछे भी मिल गई हैं
कई-कई सभ्यताएं
जो कर रहे हैं हत्याएं आज
समाप्त हो जाएंगे वे भी स्वयं
सेनाएं जो फहरा रही हैं पताकाएं
सब ध्वस्त हो जाएंगी
बची रहेगी
नदी, हवा, पानी और मिट्टी
अजेय हैं ये
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