इस समय दुनियाभर में सबसे ज़्यादा चर्चा में जो विषय है, वह है क्लाइमेट चेंज. इसके भयावह परिणामों के बारे में वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञ लंबे समय से हमें चेता रहे हैं. और क्लाइमेट चेंज के नतीजे मौसम में औचक आने वाले बदलावों के रूप में हम सभी महसूस कर रहे हैं. हम सब अपने-अपने स्तर पर ऐसी जीवनशैली को अपना कर, क्लाइमेट चेंज को धीमा करने और रोकने में सहभागी बन सकते हैं, जो पर्यावरण हितैषी हो. और आपको यह भी बता दें कि आमतौर पर जारी मिथकों के विपरीत यह सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल महंगी तो क़तई नहीं है. आइए, इसके बारे में और मालूमात करते हैं.
अमूमन आपने भी क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे शब्द साथ–साथ ही सुने होंगे और ये हमारे ग्रह धरती के स्वास्थ्य से संबंधित हैं, यह भी आप जानते ही होंगे. पिछले कुछ वर्षों में जंगलों में आग, बाढ़ और सूखा, तूफ़ानों की बारंबारता, मौसम में बदलाव, ग्लेशियर्स का पिघलना इन सभी चीज़ों की गति बदली है, बढ़ी है. जिसकी वजह है, विकास के नाम पर, रफ़्तार के नाम पर हमारा इस धरती के संसाधनों का बहुत ज़्यादा दोहन करना. अब यदि हमें ग्रह यानी धरती को बचाना है तो बहुत ज़रूरी है कि हम पर्यावरण हितैषी यानी सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल को अपनाएं. जिस तरह हम कहते हैं कि बूंद बूंद से गागर भरती है, बिल्कुल उसी तरह यदि हम सब प्रयास करें तो ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज को रोक सकते हैं.
सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल की बात करें तो बहुतों के मन में यह संशय होता है कि यह बहुत महंगा पड़ेगा, लेकिन हम आपको बता दें कि भारत में तो सदियों से लोगों की जीवनशैली ऐसी ही रही थी कि पर्यावरण को कम से कम नुक़सान पहुंचे. हमारे देश के लोगों को तो बस उनमें से कई आदतों को जीवन में वापस लौटा लाने की ज़रूरत है.
क्या है सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल?
ऐसी जीवनशैली, जिसमें कचरा कम से कम निकले, ताकि आप हमारी धरती पर कम से कम कार्बन फ़ुट प्रिंट्स छोड़ें. रीसाइकल और रीयूज़ पर ध्यान दें और धरती पर मौजूद सीमित संसाधनों का दोहन कम से कम करें. दरअसल, यदि आप इन तीन चीज़ों के इस्तेमाल में सावधानी बरतें तो आप सस्टेनेबल लाइफ़स्टाल को काफ़ी हद तक अपना लेंगे. ये तीन चीज़ें हैं: लकड़ी, पानी और ऊर्जा.
यदि आप सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल अपनाते हैं तो आप अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को ऐसा छोड़ पाएंगे कि वे भी यहां जीवन का आनंद ले सकें. सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल पाने के लिए आपको अपने खानपान की आदतों, यातायात के साधनों और ऊर्जा के उपभोग पर ध्यान देना होगा. इन्हें इस तरह बनाना होगा कि पर्यावरण को कम से कम नुक़सान पहुंचे. केवल इतना ही करने से हम धरती के स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं.
पर्यावरण हितैषी जीवनशैली अपनाने के रोज़मर्रा के आसान तरीक़े
जैसा कि हमने ऊपर ही बताया कि इस तरह की जीवनशैली को अपनाना महंगा नहीं है और हमें अपनी कुछ पुरानी आदतों को अपनाने की ज़रूरत है. क्या आपको याद है? आज से कुछ 25-30 बरस पहले तक हमारे देश में दांत साफ़ करने के लिए दातून का इस्तेमाल होता था. टूथब्रश का नामोनिशान नहीं था. और क्या आप ये जानते हैं कि एक टूथब्रश को पूरी तरह मिट्टी बनने में 500 से भी ज़्यादा वर्षों का समय लगता है? दुनियाभर में हर वर्ष लगभग 35 लाख टूथब्रश बिकते हैं. इन बातों को समग्रता में सोचकर देखिए कि आख़िर हम धरती को केवल टूथब्रश की वजह से ही कितना गंदा कर रहे हैं. जब इसमें इसी तरह की और चीज़ें शामिल हो जाएंगी तो आप अंदाज़ा लगाइए कि हमारी धरती किस तरह कचरे से पटी जा रही है. इससे बचने के लिए आप ये अपने स्तर पर ये छोटे–छोटे क़दम उठा सकते हैं:
ऊर्जा की बचत और वैकल्पिक तरीक़े
दिन के समय कभी लाइट न जलाएं, बल्कि खिड़कियों के पर्दे खोल कर काम चलाएं. जिस कमरे में न हों, वहां के पंखे, लाइट बंद रखें. लिफ़्ट का इस्तेमाल करने की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करें. इससे न सिर्फ़ ऊर्जा की बचत होगी, बल्कि आप स्वस्थ भी रहेंगे. लगभग 15 बरस पहले हम सभी के घरों में सोलर कुकर हुआ करता था. अपने स्टोर रूम से उसे बाहर निकालें और दाल, चावल जैसी चीज़ें उसी में बना लें. इस तरह आप कुकिंग गैस की बचत कर सकेंगे. यदि कपड़े कम हों तो वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल न करें. अगर आपका बजट इजाज़त दे तो घर की बिजली के लिए सोलर पैनल्स लगवा लें.
जब कभी बाहर जा रहे हों
अपनी कार की जगह सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करें या कार पूलिंग करें आसपास जा रहे हों तो पैदल जाएं या साइकल का प्रयोग करें. यह आपके पूरे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी बेहतर रहेगा. इससे आप कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्पादन को कम करेंगे.
प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें
यह तो हम सभी को बरसों से बताया जा रहा है. और हम भारतीय तो हमेशा से ऐसा करते रहे हैं. बाज़ार से आए घी या डालडा के डब्बे आए और उनके भीतर की सामग्री ख़त्म हुई तो हम उनमें कुछऔर भर लिया करते थे. इस तरह के किचन आपको भले ही अच्छे न लगते रहे हों, लेकिन हमारे और इस धरती के स्वास्थ्य के लिए वे बहुत सेहतमंद थे. हम रीयूज़ और रीसाइकल की संकल्पना को समझते थे, पर बाज़ार ने हमें यह सिखाया कि किचन में सारे डब्बे एक जैसे दिखने चाहिए. अब वापस लौटिए और इस तरह के डब्बों को रीयूज़ करने में बिल्कुल न झिझकिए, क्योंकि ऐसा कर के आप एन्वायरन्मेंट वॉरियर की भूमिका निभा रहे हैं. पॉलिथिन बैग्स, जो आपके पास हैं उन्हें रीयूज़ कीजिए, बार–बार कीजिए. बाहर जाएं तो अपना कपड़े से बना थैला ले जाना न भूलिए, ताकि आप और प्लास्टिक लिए घर न लौटें.
कोई सामान ख़रीदने से पहले हज़ार बार सोचिए
आपको घर के लिए कोई भी सामान ख़रीदन हो तो उससे पहले हज़ार बार सोचिए कि क्या उसे क्या उसे ख़रीदना वाक़ई ज़रूरी है? या फिर आप उसका इस्तेमाल कभी–कभार करेंगे तो किसी दोस्त से कुछ समय के लिए मांग कर भी इस्तेमाल किया जा सकता है? यदि ऐसा होगा तो दो फ़ायदे होंगे, जबरन कोई सामान घर पर नहीं आएगा और सामान मांगने के बहाने दोस्त से मुलाक़ात होगी, स्क्रीन से छुटकारा मिलेगा सो मुनाफ़े में.
केमिकल्स का इस्तेमाल कम से कम कीजिए
यदि आप पूरा दिन एसी में बैठे हैं तो आपके कपड़े इतने गंदे नहीं हो सकते कि उन्हें धोने के लिए आपको किसी डिटर्जेंट बार, पाउडर और उनमें ख़ुशबू लाने के लिए उन्हें किसी आफ़्टर वॉश में भिगोने की ज़रूरत पड़े. जैसे ही आप केमिकल्स का इस्तेमाल करते हैं, अंत में ज़मीन और पानी को ज़हरीला बनाते हैं. ज़हरीली ज़मीन पर उगी हुई फ़सल को खाने से ये केमिकल्स आपके शरीर में पहुंच जाते हैं और आप बीमार हो जाते हैं. भले ही आपने खाना घर पर क्यों न खाया हो. तो जब ज़रूरी न हो, अपने कपड़ों के केवल पानी में 10-15 मिनट भिगो कर निचोड़ लें और धूप में सुखा लें. पसीने की गंध निकल जाएगी और कपड़े ज़्याद दिनों तक चलेंगे, आपके धन्यवाद कहेंगे. इसी तरह घर को चमकाने वाले केमिकल्स का इस्तेमाल भी कम करें, अन्यथा आप पर्यावरण को नुक़सान पहुंचा रहे होंगे.
कपड़ों को डोनेट करें या अंत तक इस्तेमाल करें
ये जो आजकल का फ़ास्ट फ़ैशन है, उसके चलते हम धरती को कपड़ों से भी पाट रहे हैं. ऐसा करना बंद कीजिए यदि आप कोई कपड़े नहीं पहनना चाहते हैं तो उन्हें डोनेट कीजिए. या फिर जिस तरह हम पहले किया करते थे, उनकी झाड़न–पोछन बना कर उनके गलने तक उनको इस्तेमाल कीजिए. यह सब पढ़ कर तो आप भी मान गए होंगे कि सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल क़तई महंगी नहीं है, बल्कि यह वह सस्ता, सुंदर और टिकाऊ तरीक़ा है, जिसे हम भारतीय सदियों से अपनाते आ रहे थे. बस, इसे फिर अपनाना शुरू कर दीजिए और बन जाइए प्रकृति के संरक्षक.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट