हर वर्ष आयोजित होने वाला कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल, इस वर्ष 17 मई 2022 से लेकर 28 मई 2022 तक जारी रहने वाला है. यदि आपको भी इस बात की उत्सुकता है कि आख़िर इस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में क्या-क्या होता है? और भारत समेत अन्य देशों के फ़िल्मी सितारे इसमें क्यों कर शिरक़त करते हैं तो आपको यह आलेख ज़रूर पढ़ना चाहिए.
कई अन्य मशहूर फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स की ही तरह कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भी दुनियाभर से चयनित फ़िल्में और ड्रॉक्यूमेंटरीज़ दिखाई जाती हैं और अच्छी फ़िल्मों, डॉक्यूमेंटरीज़, अदाकारों, निर्देशकों आदि को पुरस्कृत किया जाता है. इन पुरस्कारों के लिए एक जूरी गठित की जाती है, जिसकी अनुशंसा पर ये पुरस्कार दिए जाते हैं. इस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में कई फ़िल्मों का प्रीमियर भी किया जाता है.
कब हुई इसकी शुरुआत
कान्स शहर की ऑफ़िशल वेबसाइट के मुताबिक़, इस फ़िल्म फ़ेस्टिवल की शुरुआत की नींव छठवें वेनिस फ़िल्म फ़ेस्टिवल के दौरान वर्ष 1938 में पड़ी. जहां हिटलर और मुसोलिनी के दबाव में आ कर ऑफ़िशल परिणाम आने से कुछ घंटे पहले ही अवॉर्ड विजेताओं के नाम बदल दिए गए और नाज़ी प्रोपागैंडा डॉक्यूमेंटरी को विजेता घोषित कर दिया गया. इस घटना से हैरान फ्रेंच राजदूत और इतिहासकार फ़िलिप एरलांजर ने हालांकि इससे पहले ही एक ऐसे फ़िल्म फ़ेस्टिवल के बारे में सोचना शुरू कर दिया था, जहां किसी तरह का कोई दबाव न हो. उनकी इस सोच ने तब अमली जामा पहना, जब तत्कालीन फ्रेंच एजुकेशन मिनिस्ट्री से जॉं ज़े ने इसके लिए मंज़ूरी दिलाई. यह अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिल कान्स में 1 सितंबर 1939 से शुरू हुआ, बिल्कुल उसी समय जबकि वेनिस फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित किया जाता था.
लेकिन ठीक उसी समय 1 सितंबर को विश्वयुद्ध की शुरुआत हो गई और जर्मन सैनिकों ने पोलैंड पर कब्ज़ा कर लिया. ऐसे में यह फ़ेस्टिवल 10 दिन के लिए आगे बढ़ा दिया गया. लेकिन विश्वयुद्ध के चलते इस फ़ेस्टिवल में केवल एक ही फ़िल्म की ‘क्वासिमोडो’ निजी स्क्रीनिंग हो सकी. इसके बाद युद्ध के ख़त्म होने के बाद वर्ष 1945 के जुलाई महीने में फ़िलिप एरलांजर ने इसे फिर शुरू करने की कोशिश की और अपनी कोशिशों के बाद वे सितंबर 1946 में इसे आयोजित कर सके.
कौन-कौन से दिए जाते हैं अवॉर्ड्स
कान्स में दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है गोल्डन पाम पुरस्कार, जो सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म को दिया जाता है. इसके अलावा यहां बेस्ट शॉर्ट फ़िल्म, ग्रैंड प्राइज़ ऑफ़ द फ़ेस्टिवल, जूरी प्राइज, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट ऐक्टर, बेस्ट ऐक्ट्रेस, बेस्ट स्क्रीनप्ले के भी अवॉर्ड्स दिए जाते हैं. इसके लिए युवा प्रतिभा, अनूठा काम, स्टूडेंट्स फ़िल्म, फ़ेस्टिवल की बेस्ट फ़िल्म, टेक्निकल आर्टिस्ट्स आदि के अवॉर्ड्स भी यहां दिए जाते हैं. कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिए जाने वाले कुछ दिलचस्प अवॉर्ड्स में पाम डॉग अवॉर्ड भी शामिल है, जो फ़िल्मों में परफ़ॉर्म करने वाले बेस्ट कुत्ते को दिया जाता है. इसके अलावा क्वीर पाम अवॉर्ड एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांस्जेंडर) से संबंधित सबसे अच्छी फ़िल्म को मिलता है. वर्ष 2015 से इसमें एक नया अवॉर्ड भी शामिल किया है, जिसमें महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाने पर विमेन इन मोशन अवॉर्ड दिया जाता है.
कौन चयन करता है अवॉर्ड्स का
इन अवॉर्ड्स का सलेक्शन जूरी मेम्बर्स करते हैं और कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल की जूरी में अलग-अलग देशों के ख्याति प्राप्त कलाकारों को चुना जाता है. इस वर्ष 2022 में भारतीय अभिनेत्री दीपिका पादुकोन ने कान्स फ़ेस्टिवल में बतौर जूरी मेम्बर शिरक़त की है. पर आपको बता दें कि दीपिका से पहले भी नौ भारतीय लोग कान्स के जूरी मेम्बर बन चुके हैं.
भारतीय, जो रह चुके हैं जूरी मेम्बर्स
यदि आपकी दिलचस्पी यह जानने में है कि वे कौन हैं तो उनके नाम भी बताए देते हैं. वर्ष 1982 में फ़िल्म निर्माता मृणाल सेन, वर्ष 1990 में फ़िल्म निर्देशिका मीरा नायर, वर्ष 2000 में लेखिका अरुंधती रॉय, वर्ष 2003 में ऐश्वर्या राय कान्स में जूरी मेम्बर बनने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री थीं, वर्ष 2005 में अभिनेत्री और फ़िल्म निर्माता नंदिता दास, वर्ष 2009 में वरिष्ठ अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, वर्ष 2010 में फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर आर वर्ष 2013 में अभिनेत्री विद्या बालन भी कान्स में बतौर जूरी मेम्बर शिरक़त की है. इसके अलावा वर्ष 2013 में नंदिता दास, सिनेफ़ॉउनडेशन, कान्स फ़ाउंडेशन के उस फ़ोरम में जहां नेक्स्ट-जनरेशन इंटरनैशनल फ़िल्ममेकर्स को प्रमोट करने के साथ साथ शॉट फ़िल्म का चयन किया जाता है, की जूरी मेम्बर थीं.
क्या है भारत के लिए ख़ास इस वर्ष
इस वर्ष स्वतंत्र भारत और फ्रांस के रिश्तों के राजनयिक संबंधों को भी 75 वर्ष हो चुके हैं. अत: भारत को इस का कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में कंट्री ऑफ़ ऑनर घोषित किया गया है. इस फ़ेस्टिवल में भारत को पहला कंट्री ऑफ़ ऑनर चुना गया है. इसके अलावा अभिनेत्री दीपिका पादुकोन का जूरी मेम्बर बनना भी हमारे देश के लिए अपने आप में ख़ास बात है.
इस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भारत की छह फ़िल्मों की स्क्रीनिंग की जाएगी, जिन्हें भारतीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा चुना गया है. ये फ़िल्में हैं निखिल महाजन की-गोदावरी, आर माधवन की-रॉकेट्री द नाम्बी इफ़ेक्ट, जयराज की-थ्री फ़ुल ऑफ़ पैरट्स, अचल मिश्रा की-धुइन, बिस्वजीत बोरा की-बूम्बा राइड और शंकर श्रीकुमार की-अल्फ़ बीटा गामा. हालांकि ये फ़िल्में कान्स के ऑफ़िशल सलेक्शन में शामिल नहीं हैं. भारत की एकमात्र फ़िल्म जो इस फ़ेस्टिवल में ऑफ़िशल सलेक्शन के तहत दिखाई जा रही है, वो है शौनक सेन की डॉक्यूमेंटरी- ऑल दैट ब्रीद्स. सेन की यह डॉक्यूमेंटरी दिल्ली के प्रदूषण और किस तरह यह प्रदूषण यहां के ईको-सिस्टम को प्रभावित कर रहा है, इस बात पर आधारित है.
इतनी भारतीय अभिनेत्रियां आख़िर कान्स में क्यों नज़र आती हैं?
यदि आपके ज़हन में भी यही सवाल है कि आख़िर जो भारतीय अभिनेत्रियां कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल के रेड कारपेट पर अपने जलवे बिखेरती नज़र आती हैं, अपनी फ़िल्मों के वहां प्रदर्शित न होने के बावजूद वे वहां क्यों जाती हैं? तो इसका जवाब ये है कि यह एक ऐसा दौर है, जहां मल्टिनैशनल कंपनियां हमारे देश तक पहुंचना और व्यापार करना चाहती हैं. ये कंपनियां अपने प्रचार के लिए कई बॉलिवुड अभिनेत्रियों को अपना ब्रैंड ऐम्बैसडर बनाती हैं और उन्हें अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए कान्स में भेजती हैं. ताकि इस वैश्विक मंच पर अपने उत्पाद को अपने ब्रैंड ऐम्बैसेडर के ज़रिए लोगों के ज़ेहन में बैठा सकें.
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