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ओए अफ़लातून
Home ओए एंटरटेन्मेंट

पैसा वसूल फ़िल्म है तू झूठी मैं मक्कार

जयंती रंगनाथन by जयंती रंगनाथन
March 14, 2023
in ओए एंटरटेन्मेंट, ज़रूर पढ़ें, रिव्यूज़
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पैसा वसूल फ़िल्म है तू झूठी मैं मक्कार
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फ़िल्म तू झूठी मैं मक्कार के बारे में जयंती रंगनाथन का कहना है कि इस फ़िल्म की कहानी में ख़ूब रंग है, दिलचस्प हंसाने वाले संवाद हैं. हीरो-हिरोइन की केमिस्ट्री भी प्यारी है. ढाई घंटे आराम से बीत गए और मैं बोर भी नहीं हुई. तो मेरे हिसाब से इसे कहते हैं पैसा वसूल फ़िल्म.

फ़िल्म: तू झूठी मैं मक्कार
सितारे: श्रद्धा कपूर, रणबीर कपूर, हसलीन कौर , डिम्पल कपाड़िया
निर्माता व निर्देशक: लव रंजन
रन टाइम: 159 मिनट

अगर मैं यह कहूं कि मुझे फ़िल्मों में कालापन नहीं पसंद. मैं ऐसी फ़िल्में देखना चाहती हूं तो दो-तीन घंटे मेरा मनोरंजन करें, मुझे दूसरी दुनिया में ले जाएं तो मैं क्या हूं? ज़ाहिर है, हिंदुस्तानी फ़िल्मों का एक आम दर्शक, जो फ़िल्म अपनी चिंताएं और तनाव बढ़ाने, फ्रस्टेटेड होने और दुखी होने नहीं जाता. मुझे मुंबइया फ़ॉर्मूला फ़िल्में पसंद हैं.

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मुझे हिंदी, तमिल और मराठी की ऐसी फ़िल्में पसंद हैं, जो मुझे हंसाए, गुदगुदाए, ज्ञान ना पेलें और लौटते समय लगे कि वाह मैं कितनी सुंदर हूं, दुनिया कितनी सुंदर है. मेरी ऑल टाइम फ़ेवरेट फ़िल्में हैं, बॉम्बे टु गोआ, कभी-कभी, काला पत्थर, चुपके-चुपके, गोलमाल, अमर-अकबर एंथोनी, शोले, ओम शांति ओम, ज़िंदगी मिलेगी ना दोबारा, दिल धड़कने दो, वेकअप सिड, ये जवानी है दीवानी, डियर ज़िंदगी और इस किस्म की और भी कई फ़िल्में. तमिल फ़िल्म माइकल मदन काम राज, अलई पायुदे, अवै शन्मुखि और इन जैसी कई फ़िल्में.

और एक बात, मुझे थिएटर के बड़े परदे पर फ़िल्म देखना बेहद रोमांचित करता है. साथ में हो गर्म कुरकुरे पॉपकॉर्न. बचपन में हम इंटरवेल में समोसा या कटलेट खाते थे. और ऐसा लगता था जैसे परदे पर हम ही घुसे जा रहे हों. बड़े परदे का यह चमत्कार मुझे खींच ले गया तू झूठी मैं मक्कार देखने.

रिव्यू पढ़ती हूं, पर यक़ीन नहीं करती. मेरा मानना है कि अगर आपको पॉपकार्न फ़िल्मों से मोहब्बत नहीं तो रिव्यू नहीं करना चाहिए. अगर आप इंटेलेक्चुअल हैं और हर वाक्य के बाद तर्क ढूंढ़ते हैं तो हिंदी फ़िल्में देखते ही क्यों हैं?

तो अब मुद्दे की बात. तू झूठी मैं मक्कार ऐसे जॉनर की फ़िल्म है, जो मुझे पसंद है. लव रंजन की पिछली फ़िल्मों को भी आलोचकों ने स्त्री विरोधी कह कर खारिज करने की कोशिश की थी, पर फ़िल्में चलीं ख़ूब.

नई फ़िल्म में नई पेयरिंग है. रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर. कहानी दो लाइन की है. लड़का अमीर है. फ़ैमिली बिज़नेस के साथ रोमांस ब्रेकिंग का बिज़नेस भी करता है. उसके पक्के वाले दोस्त की शादी होने वाली है. उसकी बैचलर पार्टी में वह दोस्त के मंगेतर की दोस्त टिन्नी से मिलता है और पहली नज़र में दिल दे बैठता है. अपना हीरो मिकी संजीदा है. ऐसा प्यार कि लड़की को अपने परिवार से मिला दे. लड़की अपनी जॉइंट फ़ैमिली को छोड़ कर अकेली रहती है. करियर माइंडेड है. फ्री बर्ड है. लड़के से मोहब्बत उसे भी हो जाती है. पर फिर कुछ ऐसा होता है कि वो शादी नहीं करना चाहती और अनजाने में हीरो की ही मदद लेती है अपनी शादी तुड़वाने के लिए.

एक बात और, इस फ़िल्म में कुछ गहरी बातें भी हैं, ये जो आजकल के युवा शादी के कमिटमेंट से डर जाते हैं, शादी से पहले रिश्ता बना लेते हैं, परिवार के साथ रहने पर घबराते हैं, एड्जस्टमेंट से पीछे हट जाते हैं, इन सबको भी उठाया है. यह भी कि हमेशा लड़का गलत नहीं होता. फिर अंत में तो सब ठीक ही हो जाता है.

इस फ़िल्म की कहानी में ख़ूब रंग है, दिलचस्प हंसाने वाले संवाद हैं और बिकिनी पहने हीरोइन है, जो ग़ज़ब की दिखती है. दोनों की केमिस्ट्री भी प्यारी है. रणबीर कपूर इस भूमिका के लिए सही था, अपने परिवार को, दोस्तों को, प्रेमिका को प्यार करने वाला भावुक बंदा.

ढाई घंटे आराम से बीत गए. पॉप कॉर्न खाया. आलू टिक्की भी खाई. बोर भी नहीं हुई. तो मेरे हिसाब से इसे कहते हैं पैसा वसूल फ़िल्म. वैसे आपको बता दूं कि होली के दिन रिलीज़ हुई यह फ़िल्म ख़ूब चल रही है और हिट होने के रास्ते पर है.

एक बात यह भी बताना चाहूंगी कि तू झूठी मैं मक्कार फ़िल्म के शुरू होने से पहले मैंने आने वाली लगभग छह फ़िल्मों के ट्रेलर देखे. निराशा से भरे, हिंसा से भरे या काले. ऐसी फ़िल्में नहीं चलेंगी तो कहा जाएगा कि दर्शक फ़िल्मों से दूर हो गए हैं. सच तो यह है कि ऐसे फ़िल्मकार ख़ुद दर्शकों से दूर हो गए हैं. जब ओटीटी पर सर खपाने के लिए हमें इतने रंग मिल रहे हैं तो बड़े परदे पर कुंठित होने क्यों जाएं? मेरे लिए रॉम कॉम और सपनों से भरपूर फ़िल्म ही सही हैं. और आपके लिए?

फ़ोटो: गूगल

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जयंती रंगनाथन

जयंती रंगनाथन

वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने धर्मयुग, सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न, वनिता और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया है. पिछले दस वर्षों से वे दैनिक हिंदुस्तान में एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर हैं. उनके पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. देश का पहला फ़ेसबुक उपन्यास भी उनकी संकल्पना थी और यह उनके संपादन में छपा. बच्चों पर लिखी उनकी 100 से अधिक कहानियां रेडियो, टीवी, पत्रिकाओं और ऑडियोबुक के रूप में प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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