मां को बलिदान की मूरत बनाकर पेश किया जाता है, पर क्या एक मां सिर्फ़ मां ही होती है? बच्चे कैसे भी हों, पर मां ‘अच्छी’ हो, ऐसी अपेक्षा की जाती है. डॉ कनकलता तिवारी की कविता बताती है, क्यों एक मां को त्याग की देवी की जगह सबसे पहले इंसान बनना चाहिए.
मैं एक अच्छी मां नहीं हूं
शायद मेरे बच्चे ऐसा सोचते हैं
अच्छी मां वो होती है
जिसका अपना कोई व्यक्तित्व न हो
बच्चों के लिए हो उसका जीवन
उनके बिना उसका अस्तित्व न हो
जो मां ख़ुद की अस्मिता के लिए हो संघर्षरत
उसे अच्छी मां कैसे कह सकते हैं?
अच्छी मां वो है जो
बच्चों के मानसिक उत्थान में भले योगदान न करे
लेकिन दिन रात भोजन पानी की व्यवस्था का निदान करे
जो दूसरों से भोजन बनवाती हो
उसे अच्छी मां कैसे कह सकते हैं?
अच्छी मां को रसोईदारिन होना चाहिए
धोबिन और जमादारिन होना चाहिए
जो मां कविता कहानी लिखती हो
उसे अच्छी मां कैसे कह सकते हैं?
ये बच्चे जब जवान हो जाते हैं
अपने जीवन संघर्ष में लग जाते हैं
अपना परिवार और करियर बनाते हैं
तब उस बूढ़ी मां की उन्हें याद नहीं आती
जो अकेली बैठे उनका रस्ता तकती है
अगर ये अच्छी मां है
तो मुझे अच्छे मां नहीं बनना है
कवयित्री: डॉ कनकलता तिवारी
कविता संग्रह: आत्मकथा, जो आत्मकथा नहीं है
प्रकाशक: राहुल पब्लिशिंग हाउस
Illustration: Pinterest