हिंदी के संवेदनशील कहानीकारों में एक दूधनाथ सिंह बेजोड़ कविताएं भी लिखते थे. नारी जीवन पर लिखी उनकी एक दिल को छू लेनेवाली कविता पढ़िए.
मैं तुम्हारी पीठ पर बैठा हुआ घाव हूं
जो तुम्हें दिखेगा नहीं
मैं तुम्हारी कोमल कलाई पर उगी हुई धूप हूं
अतिरिक्त उजाला, ज़रूरत नहीं जिसकी
मैं तुम्हारी ठोढ़ी के बिल्कुल पास
चुपचाप सोया हुआ भरम हूं सांवला
मर्म हूं दर्पण में अमूर्त हुआ
उपरला होंठ हूं खुलता हंसी की पंखुरियों में
एक बरबस झांकते मोती के दर्शन कराता
कानों में बजता हुआ चुम्बन हूं
उंगलियों की आंच हूं
लपट हूं तुम्हारी
वज्रासन तुम्हारा हूं पृथ्वी पर
तपता झनझनाता क्षतिग्रस्त
मातृत्व हूं तुम्हारा
हिचकोले लेती हंसी हूं तुम्हारी
पर्दा हूं बंधा हुआ
हुक् हूं पीठ पर
दुख हूं सधा हुआ
अमृत-घट रहट हूं
बाहर उलीच रहा सारा
सुख हूं तुम्हारा
गौरव हूं रौरव हूं
करुण-कठिन दिनों का
गर्भ हूं गिरा हुआ
देवता-दैत्य हूं नाशवान
मर्त्य असंसारी धुन हूं
अनसुनी नींद हूं
तुम्हारी
ओ, नारी!
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