अक्सर अपने बड़ों से आपने कई ऐसी बातें सुनी होंगी, जैसे- सकारात्मक सोचो; जैसा सोचोगे, वैसे बन जाओगे; जो हम सोचते हैं, वही चीज़ें हमारी ओर आकर्षित होती हैं वगैरह. हो सकता है कि ये बातें आपको मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी लगती हों, लेकिन सच्चाई यह है कि आपकी सोच से उपजने वाली ये भावनाएं आपकी मानसिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक सेहत को भी प्रभावित करती हैं. यानी ये सभी बातें, जो आपके इमोशन्स को बेहतर बनाने के लिए कही जाती हैं, यदि अमल में लाई जाएं तो ये आपकी फ़िज़िकल हेल्थ को भी सुधारती हैं. यहां हम हमारी सेहत और हमारी भावनाओं के बीच के संबंध पर बात कर रहे हैं.
हमारी भावनाओं और हमारी सेहत के बीच लगातार बदलते रहने वाला रिश्ता बना रहता है, यह बात नैशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन, अमेरिका में छपे एक अध्ययन में सामने आई है. इस अध्ययन में 30 दिनों तक कुछ स्वस्थ व्यक्तियों में दर्द व थकान और भावनात्मकता के बीच संबंध आंका गया. इसके नतीजों में पाया गया कि भावनाओं में सकारात्मक बदलाव हो तो शारीरिक स्थिति में सुधार आता है और दर्द व थकान में कमी आती है, वहीं यदि भावनाएं नकारात्मक होती हैं तो शरीर ज़्यादा दर्द व थकान महसूस करता है.
यही बात होलस्टिक लाइफ़स्टाइल कोच ल्यूक कुटीन्हो भी हमेशा कहते हैं कि गंभीर शारीरिक बीमारियों के पीछे भी हमारी भावनात्मक सोच या भावनाओं से जुड़े घाव ही ज़्यादा ज़िम्मेदार होते हैं. यदि हमारे भीतर की सोच सकारात्मक हो तो यह हमारे शरीर की कोशिकाओं के भीतर के कंपन को भी पॉज़िटिव बनाती है, जिसकी वजह से शारीरिक गतिविधियां अच्छी तरह चल पाती हैं.
यदि हम अपनी भावनाओं को मन में दबाते हैं या मन ही मन किसी से ईर्ष्या करते हैं या फिर मन के भीतर नाराज़गी पाले रखते हैं तो इसका परिणाम किसी गंभीर बीमारी के रूप में देखने मिल सकता है. इस तरह की भावनाओं को पोसने से मानसिक और शारीरिक सेहत को नुक़सान पहुंचता है.
भावनाएं किस तरह हम पर असर डालती हैं इसे कुछ सामान्य से उदाहरणों से समझा जा सकता है. कई बार कुछ बच्चे जो परीक्षाओं का तनाव लेते हैं, वे परीक्षा के ठीक पहले बीमार हो जाते हैं. इसी तरह कई लोगों को यात्रा करने से पूर्व बार-बार टॉयलेट जाने की इच्छा होती है. यह सब इसीलिए तो होता है कि भावनात्मक चिंता आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही है.
सकारात्मक या नकारात्मक भावनाओं के कारण हमारे शरीर में स्रवित होने वाले हॉर्मोन्स का स्तर भी प्रभावित होता है. जिसकी वजह से हमारी शारीरिक गतिविधियों पर असर पड़ता है. तो आख़िर इन भावनाओं को सकारात्मक बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? आइए जानते हैं…
योग और प्राणायाम
योगासन और प्राणायाम आपके तन और मन में स्फूर्ति जगाते हैं. योगासन जहां आपके शरीर को लचीला बनाते हैं, वहीं प्राणायाम करने पर निश्चित लय में गहरी सांसें लेने से हमारे शरीर में अधिक मात्रा में ऑक्सिजन पहुंचती है, जिससे तनाव तुरंत कम होता है, क्योंकि शरीर के सभी अंगों तक भरपूर ऊर्जा पहुंचती है और हम सकारात्मक महसूस करते हैं.
भावनाओं को व्यक्त करें
आपके भीतर जो भी भाव आ रहा हो, उसे दबाने की बजाय, उसे व्यक्त करना सीखें. क्रोध, दुख, करुणा, प्रेम ये सभी भाव बेहद स्वाभाविक हैं. आप जैसा भी महसूस कर रहे हों, उसे अपने परिजनों से न छुपाएं. जब हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर देते हैं तो भावनाओं के उस दबाव से मुक्त हो जाते हैं, जो यदि हमारे भीतर ही रह जाए तो हमारे शरीर को बीमारियों का घर बना देता है.
लोगों को पहचानें
यह आपने भी महसूस किया होगा कि कुछ लोगों से बात करते ही आप प्रसन्नता महसूस करते/करती हैं, लेकिन वहीं कुछ दूसरे लोगों से बात करने पर आप खिन्न हो जाते/जाती हैं. यूं लगता है, जैसे उन लोगों ने आपकी पूरी ऊर्जा सोख ली हो. अब समय आ गया है कि आप अपने जीवन में मौजूद सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से भरे लोगों को पहचान लें. और केवल उन्हीं लोगों के साथ समय बिताने का प्रयास करें, जो आपको सकारात्मक बनाते हों.
अपनी सोच बदलें
हमारे मन में हर तरह की भावनाएं आती हैं, अच्छी और बुरी भी. अक्सर हम किसी तरह की डर या कुंठा में जीते हैं और इससे हमारी भावनाएं आहत होती हैं. जो अंतत: हमारी शारीरिक या मानसिक पीड़ा का कारण बनती हैं. लेकिन यदि हम अपनी सोच में थोड़ा-सा बदलाव लाएं तो यह पूरी तरह संभव है कि हम अपने मन में आने वाली बुरी भावनाओं को हटा सकते हैं. इसके लिए जब भी आपके मन के भीतर कोई नकारात्मक विचार आए, तुरंत ही उससे जुड़ा कोई सकारात्मक भाव अपने भीतर लाएं और उसे मन ही मन दोहराते रहें. ऐसा करने और करते रहने से धीरे-धीरे नकारात्मक भावनाएं दूर होने लगेंगी.
फ़ोटो : फ्रीपिक