तिब्बत के आध्यात्मिक नेता, धर्म गुरु दलाई लामा को आप जानते ही होंगे, उन्हें वर्ष 1989 में शांति का नोबल पुरस्कार मिला था. लामा का अर्थ गुरु होता है और लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने को प्रेरित करते हैं. पर क्या आपने कभी सोचा है कि दलाई लामा यदि इस आध्यात्मिक विरासत को न संभाल रहे होते तो वे क्या होते? अशोक पांडे इसी बात का जवाब आपको दे रहे हैं, ताकि आप उनके व्यक्तित्व के इस पहलू को भी जान सकें.
मशीनों ने दलाई लामा को बचपन से ही आकर्षित किया. पोटाला महल में जो भी मशीन दिखाई देती, पेंचकस वगैरह लेकर उसके उर्जे-पुर्जे खोल कर अलग करना और उन्हें फिर से जोड़ने का खेल उन्हें पसंद था.
ल्हासा में तब कुल तीन कारें थीं. तीनों उन्हीं की थीं. उन्होंने इन कारों को भी कई दफ़ा खोला-जोड़ा.
ऑस्ट्रियाई पर्वतारोही हाइनरिख हैरर एक बेहद मुश्क़िल और दुस्साहस-भरे अभियान के बाद 1946 में जब तिब्बत पहुंचे तो उनकी मुलाक़ात किशोर दलाई लामा से हुई. यह मुलाक़ात एक बेहद अन्तरंग मित्रता में तब्दील हुई और 2006 में हुए हैरर के देहांत तक बनी रही. हैरर ने तिब्बत के अपने अनुभवों को ‘सेवेन ईयर्स इन तिब्बत’ के नाम से प्रकाशित किया. इस बेस्टसेलर पर इसी नाम से फ़िल्म भी बनी है.
हाइनरिख हैरर और दलाई लामा के बीच पच्चीस साल का फ़ासला था. दोनों की जन्मतिथि इत्तफाकन एक ही थी – 6 जुलाई. किशोर दलाई लामा के लिए हैरर एक ऐसी खिड़की बन गए जिसकी मदद से आधुनिक संसार को देखा-समझा जा सकता था. हैरर को तिब्बत सरकार में बाकायदा नौकरी दी गई और बहुत सारे महत्वपूर्ण काम सौंपे गए. उन्हें विदेशी समाचारों का अनुवाद करना होता था, महत्वपूर्ण अवसरों के फ़ोटो खींचने होते थे और दलाई लामा को ट्यूशन पढ़ाना होता था. इस तरह खेल-विज्ञान के ग्रैजुएट हाइनरिख हैरर तिब्बत के किशोर धर्मगुरु के अंग्रेज़ी, भूगोल और विज्ञान अध्यापक बने. हैरर ने दलाई लामा के लिए स्केटिंग रिंक तैयार करने के अलावा एक सिनेमाहॉल भी बनाया, जिसके प्रोजेक्टर को जीप इंजिन की सहायता से चलाया जाता था.
उधर अमेरिका किसी तरह भारत के रास्ते चीन तक सड़क बनाने के मंसूबे देख रहा था. तिब्बत से होकर जाने वाले रास्ते में उसे संभावना दिखाई दी तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने अपने दो प्रतिनिधियों को ल्हासा भेजा. प्रसंगवश इन दो में से एक आदमी रूसी मूल का था, जिसका नाम इल्या था और वह लियो टॉलस्टॉय का पोता था. रूज़वेल्ट ने बालक दलाई लामा के लिए एक विशेष उपहार भेजा. जेनेवा की मशहूर घड़ीसाज़ कम्पनी पाटेक फिलिप ने उस एक्स्क्लूसिव मॉडल की 1937 और 1950 के बीच कुल 15 घड़ियां बनाई थीं. ऐसी एक घड़ी 2014 में पांच लाख डॉलर में नीलाम हुई थी.
बहरहाल पोटाला महल की एक-एक घड़ी के अस्थि-पंजर ढीले कर चुके दलाई लामा ने इस घड़ी के साथ भी वही सुलूक किया. हैरर की संगत में अब वे एक एक्सपर्ट बन चुके थे. उसके बाद से पुरानी घड़ियों को इकठ्ठा करना और उनकी मरम्मत करना दलाई लामा का सबसे बड़ा शौक़ है.
चीन के दुष्ट साम्राज्यवादी मंसूबों के कारण उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा. उनका तिब्बत आज भी बीसवीं शताब्दी में मानवीय विस्थापन की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है. दुनियाभर में फैले अपने अनुयायियों के बीच भगवान की हैसियत रखने वाले, संसार की सबसे मीठी हंसी के स्वामी दलाई लामा को दुनिया भर के मसले निबटाने के बाद आज भी फ़ुर्सत मिलती है तो वे घड़ियां ठीक करते हैं. कभी-कभी इनमें बेहद आम लोगों की घड़ियां भी होती हैं.
“अगर मैं भिक्षु नहीं बनता तो मुझे पक्का इंजीनियर बनना था” वे अक्सर कहते हैं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट