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Home ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 16, 2023
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)
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बदलाव की चाह में किसी महिला और पुरुष के बीच आकर्षण अस्वाभाविक नहीं है, फिर चाहे उनके बीच उम्र का कितना ही फ़ासला क्यों न हो… लेकिन समय रहते अपनी इच्छाओं पर लगाम कसने और सीमाओं को लांघने से बचने पर ही परिवार की अवधारणा को बचाए रखा जा सकता है. इस बात को उकेरती है यह कहानी.

ताजमहल में लगभग 18-19 वर्ष का एक नौजवान सेल्फ़ी ले रहा था. अचानक मैं उधर से गुज़री तो उसने मुझे रोकते हुए कहा, ” प्लीज मैम, आप मेरे बाजू में आइए, आपके साथ एक सेल्फ़ी हो जाए ताज के साये में.”

उसने मुझे आंटी नहीं कहा सोचकर मन में थोड़ी ख़ुशी सी हुई. ‘वाइ नॉट’ कहते हुए मैं उसके बाजू में खड़ी हो गई और पलभर में हंसती-मुस्कराती एक ख़ूबसूरत सेल्फ़ी उसके मोबाइल में क़ैद हो गई.

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“प्लीज़, आप अपना मोबाइल नंबर दीजिए. यह सेल्फ़ी मैं अभी आपको वॉट्सऐप करता हूं.”
तुंरत मैंनें अपना मोबाइल नम्बर दे दिया और वह सेल्फ़ी मेरे मोबाइल में भी आ गई.
“आप आगरा में ही रहती हैं?”
“हां, मैं आगरा में ही रहती हूं, वह भी ताजमहल के क़रीब ही.”
“अरे वाह! वेरी नाइस. आपका नाम क्या है? आपकी फ़ैमिली में कौन-कौन है ?”

वह बात करने के मूड में बेहद उत्साहित नज़र आ रहा था और मैं 40 बरस की होकर भी भरपूर मस्ती-मज़ाक के मूड में थी, क्योंकि पति टूर पर मुंबई गये थे और बेटा भी बाहर पढ़ाई कर रहा था और मैं घर पर निपट अकेली, गहरे अकेलेपन से जूझ रही थी इसलिए वक़्त काटने ताजमहल आ गई थी. कहते हैं ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है. मेरे ख़ाली दिमाग़ में भी कुछ शैतानी और शरारत चल रही थी.

“आपने जवाब नहीं दिया,” वह उतावले स्वर में बोला.
“मेरी फ़ैमिली अलीगढ़ में रहती है. मैं आगरा में अकेली रहती हूं. एक कॉन्वेंट स्कूल में हिंदी टीचर हूं. नाम है मेरा आलिया.” बड़ी मुश्किल से हंसी रोकते हुए मैंने अपना झूठा परिचय दिया.
“आप अकेली क्यों रहती हैं आलिया जी?” उसने आश्चर्य भाव से पूछा.
“मैंने शादी नहीं करी है इसलिए अकेली रहती हूं.” मैं भी भरपूर मस्तीभरे बिंदास अंदाज़ में बोली.
“आपने शादी क्यों नहीं की? आप तो आलिया भट्ट की तरह बेहद ख़ूबसूरत हैं.” इस बार उसका लहजा शरारत से भरपूर था.
मैंनें भी उसी लहजे में जबाब दिया, ” क्योंकि तुम जैसा ख़ूबसूरत, स्मार्ट और हैंडसम लड़का मुझे नहीं मिला, ” कहकर मैं जोर से हंस पड़ी.
“अरे तुम भी तो अपने बारे में कुछ बताओ, क्या नाम है तुम्हारा?”
“विराट.’’
“यानी विराट कोहली?” उसके आगे बोलने से पहले ही मैंनें चुहलबाज़ी कर दी.
वह मुस्कराने लगा, ‘‘लगता है क्रिकेट में आपको गहरी दिलचस्पी है और विराट कोहली आपका फ़ेवरेट क्रिक्रेटर है. लेकिन मैं विराट कोहली नहीं विराट मोहन हूं.. हां, विराट कोहली जैसा बनना चाहता हूं. कानपुर से हूं. फ़िलहाल दिल्ली में आईआईटी के लिए कोचिंग कर रहा हूं.”
“वाह, बहुत बढ़िया.”
“थैंक यू!”
“तुम दिल्ली से यहां अकेले आए हो?” अब मुझे भी उसकी कम्पनी में रस आने लगा था.
“यस, मैं अकेला ही आया हूं. क्योंकि मैं दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत मुहब्बत की इमारत को अकेले ही निहारना चाहता था, लेकिन मेरा लक तो देखिए, मुझे आज एक नहीं दो-दो ख़ूबसूरत चीज़ों का दीदार हो गया. इन्हें मैं हमेशा अपने दिल के क़रीब रखूंगा,” कहते हुए उसने अपना मोबाइल जीन्स से निकाल कर शर्ट की जेब में रख लिया.

उसकी इस बचकानी और मासूम सोच पर मैं मन ही मन मुस्कुरा पड़ी और अनजान बनकर बोली, “विराट, तुमने क्या कहा मेरे तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ा.’’
“इस सेल्फ़ी को अब मैं कभी डिलीट नहीं करूंगा…” यह कहते हुए उसका स्वर भावुक हो गया.
उसकी इस अल्हड़ भावुकता को देखकर मन में आया कि हंसते हुए सच्चाई बता दूं और हल्के से गाल पर चपत लगाते हुए कहूं, विराट बेटा, लगभग तेरे उम्र का मेरा बेटा भी है, लेकिन यह सोचकर चुप रह गई जब लौट जाएगा तो ख़ुद ही अपने यार-दोस्तों और गर्लफ्रेंड के चक्कर में यह सेल्फ़ी-वेल्फ़ी भूल जाएगा. वैसे भी आजकल की पीढ़ी बेमतलब की चीज़ों, यादों, और बेकार की तस्वीरों को डिलीट करने में ही विश्वास रखती है.

“आपके शहर में आया हूं तो क्या आप मुझे अपना शहर घुमाएंगी नहीं? कुछ खिलाएंगी-पिलाएंगी नहीं? आपका मेहमान हूं अच्छी मेज़बानी तो कीजिए. ज़्यादा वक़्त नहीं है मेरे पास.”
“क्यों?” मैं थोड़ा सा घबरा सी गई उसकी वक़्त वाली बात सुनकर.
मुझे यूं घबराया देखकर वह मुस्कुरा कर बोला, “रिलैक्स आलिया जी, मैं उस वक़्त की बात नहीं कर रहा. मैं तो यहां आए हुए वक़्त की बात कर रहा हूं. मैं आज सुबह देश की सबसे तेज़ गतिमान एक्सप्रेस से आया हूं और शाम को उसी से वापिस लौट जाऊंगा. रिज़र्वेशन है मेरा.”
तब मेरी सांस में सांस आई. मैंने उसे अपनी गाड़ी से लाल क़िला, सिकन्दरा, दयालबाग वगैरह घुमा दिया और सदर के एक शानदार रेस्तरां में लंच करा दिया. सच कहूं तो उसके सानिध्य में पूरा दिन ख़ुशगवार हो गया और मैं एक नवयौवना की तरह तन-मन से खिल उठी. बिल के लिए वह आगे बढ़ा तो मैंने उसे साधिकार रोक दिया, “प्लीज़, विराट नो, यू आर माय गेस्ट इसलिए यह राइट मेरा है.”

“ओके, लेकिन जब आप दिल्ली आएंगी तब यह राइट मेरा होगा. आप दिल्ली ज़रूर आना.”

उसकी ट्रेन का वक़्त हो गया. रेलवे स्टेशन जाते समय वह ख़ासा उदास नज़र आ रहा था. मेरे अंदर भी कुछ ऐसा ही एहसास था. जैसे ही ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ी उसके संवाद ने भी स्पीड पकड़ते हुए कहा, “बहुत याद आएंगी आप आलिया जी.”

उसके यह शब्द मेरे दिल में गहरे उतर गए. उसके लगभग रोज़ फ़ोन आने लगे वॉट्सऐप चैट होने लगी. वह मेरी सेहत, मेरी दिनचर्या के बारे में पूछता. मेरी हॉबीज़ जानना चाहता. उसका इस तरह अपनेपन से फ़ोन करना, वॉट्सऐप मैसेज करना मुझे भी अच्छा लगने लगा. मुझे लगता कोई है, जो मेरी परवाह कर रहा है, मेरी फ़ीलिंग्स समझने की कोशिश कर रहा है. लेकिन मैं भूल गई या यह कहिए कि भटक गई कि मैं किसी की पत्नी और विराट जैसे बेटे की मां भी हूं और उनके प्रति मेरे कर्तव्य हैं, ज़िम्मेदारियां हैं. मेरी अपनी गृहस्थी है.
दिनोंदिन विराट के आकर्षण के मोह में फंसती ही जा रही थी. पता नहीं उसके प्रति कैसा आकर्षण था यह. जब दिमाग़ पति, बेटे और गृहस्थी की तरफ़ रुख़ करता तब संवेदनशील मन कहता दूर रहकर भी अगर एक दूसरे के प्रति मन में अच्छी भावनाएं हैं, चाहते हैं और उन्हें प्रकट और व्यक्त करके असीम सुख और तन-मन को स्फूर्ति देने वाली ख़ुशी हासिल होती है तो क्या हर्ज है झूठ बोलने में? यही सोचकर विराट को सच्चाई से अवगत नहीं कराया और यह सिलसिला चलता रहा.

वैलेंटाइन डे वाले दिन कोरियर से विराट का गिफ़्ट आया. सुर्ख गुलाब, वैलेंटाइन कार्ड, सेल्फ़ी वाली फ़ोटो और चॉकलेट थी. कार्ड पर बहुत ही कलात्मक शब्दों में लिखा था- “आई लव यू आलिया”. बात यहां तक आ जाएगी यह तो मैंने सोचा भी न था. मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था क्या करूँ? विराट मेरे प्रति इतना गम्भीर होगा यह तो मैंनें सोच भी न था.

इस दौरान पति भी टूर से वापस आ गए और बेटा भी छुट्टियों में घर आ गया. लेकिन मेरा मन विराट की तरफ़ ही रहता था. उसके रोज़ फ़ोन आते और वॉट्सऐप मैसेज भी. यह देखकर पति और बेटा कहते कि मैंनें बहुत दोस्त बना लिए हैं और उन्हीं दोस्तों के फ़ोन और चैट्स में बिजी रहती हूं.

एक शाम टेलीविजन पर “मेरा नाम जोकर” फ़िल्म आ रही थी. मेरा बेटा देख रहा था. मुझसे हंसकर बोला, “मॉम, पता है जब में स्कूल में था तब ऋषि कपूर की तरह अपनी एक टीचर के प्रति अट्रैक्ट हो गया था.”
“क्या ?” मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.
“यस मॉम, बट वह टीचर बहुत अच्छी थीं. उन्होंने मुझे बहुत अच्छे से समझाया. कहा, ‘इस उम्र में ऐसा होना स्वभाविक होता है. तुम पढ़ाई में ध्यान लगाओ. मुझमें अपनी मां की छवि देखो.’”

मैं आत्मग्लानि से भर उठी. मैंने विराट को समझाने की बजाय उसे बढ़ावा दिया उससे झूठ बोला सिर्फ़ अपने स्वार्थ के कारण, क्योंकि मैं अपना ख़ाली वक़्त एन्जॉय करना चाहती थी, अपना अकेलापन भरना चाहती थी थोड़ी-सी मौज-मस्ती, शरारतों और चुहलबाज़ियों के साथ. लेकिन वह मासूम तो सचमुच में ही गंभीर हो गया. उसे सच बताने और रोकने की बजाय उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करने लगी सिर्फ़ अपने सुख के लिए.

उसकी शक्ल में मुझे अपना बेटा नज़र आने लगा और मैं शर्म से पानी पानी हो गई. मैंने तुरन्त पति और बेटे के साथ सेल्फ़ी ली, जिसमें मेरी मांग में दमकता सिंदूर, माथे पर चमकती बड़ी-सी बिंदी और गले में मंगलसूत्र था. रात को उसके वॉट्सऐप पर भेज कर उसको ब्लॉक कर दिया. और भविष्य में भी उससे फ़ोन, फ़ेसबुक और वॉट्सऐप पर संपर्क ना करने का मन ही मन दृढ़ संकल्प लिया.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

 

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