प्रेम की मिठास और कड़वाहट का स्वाद एक साथ चखाती है केदारनाथ सिंह की कविता तुम आयीं.
तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते-चलते एड़ी में
कांटा जाए धंस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हंसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
कांपती हो बत्ती!
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे-धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूं के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाए जाते है भूसे से
तुमने मुझे ख़ुद से अलगाया
Illustration: Pinterest