यह उम्मीद ही तो होती है, जो हमें जीवंत बनाए रखती है. शकील अहमद की यह ग़ज़ल भी आपको उम्मीद वह की रौशनी देगी, जो अंधेरों को रौशन कर देती है.
जो कुछ अच्छा-अच्छा है सब तेरा है,
फिर कुछ बच जाए, तो वो मेरा है.
तेरी झूठी बातें भी अक्सर मीठी होती हैं,
मेरी सच्ची बातों ने मुझको ही घेरा है.
कोशिश है बिखरे रहें तिनके यहाँ-वहाँ,
घर मेरा ही नहीं चिड़िया का भी बसेरा है.
क्यों नाउम्मीद होऊं सूरज के छिपने से,
काली रात के बाद फिर रौशन सबेरा है.
मुझे हर हाल में उम्मीद है रौशनी की,
क्या हुआ जो चारों तरफ़ घना अंधेरा है.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट