इस सीरीज़ की एक कहानी के भीतर कई कहानियां, कई आयाम बहुत कुशलता से समेटे गए हैं. समाज की कमियों को इतनी बारीक़ी व सहजता के ताने-बाने में गूंथकर दिखाया गया है कि इसे हर परिवार में देखा जाना चाहिए, ख़ासतौर पर युवतियों को तो देखना ही चाहिए. इसके आठ एपिसोड्स आपको बांधे रखते हैं, केवल एक साइकोपैथ सीरियल किलर की खोज, कसी हुई स्क्रिप्ट और बढ़िया निर्देशन की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए कि हर एपिसोड में आपको अपने ही समाज का आईना दिखाई पड़ता है.
वेब सीरीज़: दहाड़
कुल एपिसोड: 8
प्लैफ़ॉर्म: ऐमाज़ॉन प्राइम
सितारे: सोनाक्षी सिन्हा, विजय वर्मा, गुलशन देवैया, सोहम शाह, मान्यू दोशी, जयती भाटिया व अन्य
निर्देशक: रीमा कागती, रुचिका ओबेरॉय
राजस्थान के एक छोटे से गांव मंडावा में तैनात सब इंस्पेक्टर अंजली भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) एक गुमशुदा लड़की की तलाश के केस को ट्रैक करते हुए पाती है कि गुमशुदा लड़की की मौत हो चुकी है. उसकी मौत के रहस्य के पीछे से पर्दा हटाने के प्रयास में उसे पता चलता है कि जिस तरह इस लड़की की मौत हुई है, पूरे राज्य में इस तरह 29 लड़कियों की मौत हो चुकी है. इस केस की तफ़्तीश में मंडावा पुलिस थाने में तैनात सभी पुलिसकर्मी जुट जाते हैं.
इस तफ़्तीश के दौरान इस सीरीज़ में जहां हम पुलिस वालों की साझेदारी से रूबरू होते हैं, वहीं हमें पुलिस में नौकरी करने वालों की समस्याएं भी दिखाई देती हैं. इसके साथ-साथ समाज में ‘लव जिहाद’ के नाम पर क्या कुछ सही-ग़लत होता है और ऊंची-नीची जाति कहकर किस तरह का भेदभाव किया जाता है उसकी बानगी भी दिखती है. आज भी लोगों के मन में, परिवार वालों के मन में लड़कियों के प्रति क्या सोच है, वह भी समझ में आती है. लड़कियों पर अपना करियर बनाने की बजाय आज भी शादी का इतना दबाव डाला जाता है कि वे शादी कर लेने को ही सबकुछ समझ लेती हैं, उनमें अपना अच्छा-बुरा सोचने की क़ाबिलियत ही नहीं पैदा की जाती. शादी को उनके लिए किसी अंतिम उद्देश्य की तरह मान लिया जाता है, जिसकी वजह से वे साइकोपैथ्स या फिर असामाजिक तत्वों का आसान शिकार बन जाती हैं.
इस सीरीज़ के आठ एपिसोड्स आपको बांधे रखते हैं, केवल एक साइकोपैथ सीरियल किलर की खोज, कसी हुई स्क्रिप्ट और बढ़िया निर्देशन की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए कि हर एपिसोड में आपको अपने ही समाज का आईना दिखाई पड़ता है.
अंजली भाटी का अपनी मां को मृत लड़कियों की फ़ोटो दिखाकर समझाना, गहराई तक छू जाता है. थाना इंचार्ज देवीलाल सिंह (गुलशन देवैया) का अपनी बेटी से यह कहना, ‘अपनी कमाई की रोटी का स्वाद ही अलग होता है.’ कैलाश पार्घी (सोहम शाह), जो अपने प्रमोशन के लिए उतावला है, उसका सच जानने के बाद भी उसे छुपाकर अपने साथी पुलिसकर्मियों को बचा लेना और पुलिस की नौकरी में आपराधिक लोगों को देखते हुए अपना परिवार बढ़ाने से डरना, बहुत स्वाभाविक रूप से दर्शक को छू लेते हैं.
सीरियल किलर साइकोपैथ आनंद स्वर्णकार की भूमिका में विजय वर्मा ने जान डाल दी है. एक साइकोपैथ किस तरह समाज में घुल-मिलकर रहते हुए अपने काम को अंजाम देता है और कैसे लोगों की सोच का, उनकी कमियों का फ़ायदा उठाता है इस बारे में इस सीरीज़ को बनाने के लिए की गई रिसर्च साफ़ दिखाई देती है.
कुल मिलाकर इस सीरीज़ की एक कहानी के भीतर कई कहानियां, कई आयाम बहुत कुशलता से समेटे गए हैं. समाज की कमियों को इतनी बारीक़ी व सहजता के ताने-बाने में गूंथकर दिखाया गया है कि इसे हर परिवार में देखा जाना चाहिए. ख़ासतौर पर युवा लड़कियों को ज़रूर देखना चाहिए, ताकि वे चौकन्नी रहें और अपने करियर पर अपनी शादी से पहले ध्यान दें, क्योंकि अपनी कमाई की रोटी का स्वाद अलग तो होता ही है, लेकिन अपनी कमाई रोटी आपको आत्मविश्वास से लबरेज़ भी रखती है.
फ़ोटो साभार: गूगल