यदि आप थोड़ा-सा सजग हो जाएं तो पाएंगे कि हम सभी दुखी रहने के कई कारण सहज ही ढूंढ़ लेते हैं, लेकिन ख़ुश नहीं रह पाते. जानेमाने समाजसेवी और गांधीवादी हिमांशु कुमार बता रहे हैं कि दुख तो बिना प्रयास के ही आ जाता है, लेकिन सुख और आनंद को महसूस करने के लिए हमें जागरूक होना पड़ता है. छोटी-छोटी बातें, जिन्हें हम सामान्य मान लेते हैं, उनके पीछे छुपे सच को, उनकी गहराई को महसूस करने से आप आनंदित रह सकते हैं. लेकिन आपको आनंदित रहने का यह चुनाव स्वयं ही करना होगा.
मनोवैज्ञानिक तौर पर दुख बिना प्रयत्न के आता है, लेकिन आनंद महसूस करने के लिए जागरूक होना पड़ता है. इस बात को इस घटना से समझिए: अभी बाहर पहाड़ में पानी बरस रहा है मैं घर में बैठकर खाना खा रहा हूं. यूं तो इस घटना में आमतौर पर कोई आनंद नहीं है. लेकिन अगर मैं ध्यान से देखता हूं तो पाता हूं कि जो भोजन मैं आराम से थाली में बैठकर खा रहा हूं, आज से कुछ ही हज़ार साल पहले मनुष्य को इतना सा भोजन जुटाने के लिए कितना पैदल चलना पड़ता था! कितने ही जानवरों के हमलों के ख़तरों का सामना करना पड़ता था, कितने दूसरे मनुष्यों द्वारा भोजन के साथ होने वाले संघर्ष में जान के ख़तरे का सामना करना पड़ता था. पहले मनुष्य को कच्चा भोजन खाना पड़ता था. उसे भूनना, तलना, तड़का लगाना और विभिन्न मसालों के संयोजन सब्ज़ी, दाल इत्यादि के प्रयोग की जानकारी नहीं थी. मेरी आज की थाली का भोजन कितने हज़ार साल के संघर्षों सीखने तथा अनुभवों का परिणाम है!
जंगलों में इस भोजन के लिए धूप में भटकते, जानवरों से संघर्ष करते आपस में लड़ते-झगड़ते मनुष्यों ने आराम से बैठ कर खाने के सुख की कभी कल्पना मात्र की होगी, लेकिन आज मैं आराम से बैठ कर भोजन करते समय उस सारे संघर्ष के परिणाम का आनंद ले रहा हूं. क्या मुझे इस बात का एहसास है? मनुष्यों की कितनी पीढ़ियों ने पेड़ों के नीचे बरसात में भीगते हुए गुफाओं में चट्टानों पर आग जलाकर कितने हज़ार साल बिताए. फूस की झोपड़ियों, मिट्टी के घरों से होते हुए आज हम ऐसे घर में रह रहे हैं जो भीतर से पानी से गीला नहीं होता, कड़कती ठंड में अंदर से गर्म रहता है और बाहर कड़ी धूप होने पर भीतर ठंडा रहता है. क्या मैं मनुष्य जाति के हज़ारों साल के भवन निर्माण के अनुभव के परिणाम से पैदा हुए सुख का अनुभव करते समय उस सारी प्रक्रिया के प्रति जागरूक हूं?
मनुष्य ने हथेली में खाने से शुरू किया. पत्ते में, खाया लकड़ी और मिट्टी के बर्तनों में खाया, धातु की खोज की बर्तन बनाना सीखा. क्या हज़ारों सालों के बर्तन निर्माण कला से उत्पन्न आज की थाली का आनंद लेते समय मैं सारी प्रक्रिया के इतिहास को समझ सकता हूं?
मनुष्य पहले छोटी-छोटी बीमारियों से ग्रसित हो जाता था उसे कीड़े-मकोड़े, ज़हरीले सांप-बिच्छू, भीगने से उत्पन्न बीमारियों के कारण मनुष्य को जल्दी ही मौत के मुंह में समा जाना होता था. मकान बन जाने, वस्त्रों का अविष्कार हो जाने, चिकित्सा शास्त्र का विकास होने के कारण आज मनुष्य लंबी आयु जीता है और मुझ जैसी आयु प्राप्त कर आसानी से जीवन का आनंद ले सकता है. क्या मुझे इस सारी प्रक्रिया का एहसास है?
आज मैं स्वस्थ हूं, स्वादिष्ट भोजन कर रहा हूं, बाहर बरसात हो रही है, मैं घर के भीतर बैठा हूं, मुझे शत्रु के आक्रमण का भय नहीं है, मेरे स्वास्थ्य को कोई संकट नहीं है… इस सबके पीछे मनुष्य जाति के हज़ारों सालों के संघर्ष और अनुभव छिपे हैं. क्या मैं एक क्षण के लिए भी इस सब का एहसास करता हूं?
दरअसल, अधिकतर लोग इस सब का एहसास ही नहीं कर पाते और इसलिए अपनी सामान्य दिनचर्या में किसी आनंद का अनुभव नहीं कर पाते. जबकि हमारा सुबह आराम से बिस्तर से उठना, ब्रश करना, नाश्ता करना, वाहन में बैठकर जाना, घूमना-फिरना इतने आनंददायक काम हैं, जिसकी कल्पना भी आज से हज़ारों साल पहले का मनुष्य नहीं कर सकता था. जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं को गहराई से देखिए इसमें अनंत आनंद छिपा हुआ है. और यही ध्यान से उत्पन्न आनंद है!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट