वर्टिगो यानी चक्कर आना और यह तो हम सभी को पता है कि चक्कर आने पर कितनी दिक़्क़त होती है. जिस व्यक्ति को चक्कर आने की समस्या है, उसके भीतर एक अलग तरह का डर समा जाता है और उसका आत्मविश्वास भी हिल सा जाता है. यदि आपको या आपके किसी जानने वाले को यह समस्या है और आप जानना चाहते हैं कि आख़िर ये चक्कर क्यों आ रहे हैं और चक्कर आने पर आपको क्या करना चाहिए, ताकि ये ठीक हो जाएं तो आप सही आलेख पर हैं.
चक्कर आना यानी वर्टिगो, के तीन मुख्य कारण हैं और हर कारण का अलग इलाज है. इस आलेख को पूरा पढ़ने से पूर्व ही हम आपको सतर्क करना चाहेंगे कि यदि चक्कर आ रहे हैं तो आप अपना इलाज ख़ुद न करें, बल्कि डॉक्टर से सलाह लें और उनकी देखरेख में ही जांच व एक्सरसाइज़ (यदि वे कहें) करें.
यदि आपको कभी वर्टिगो (चक्कर आने की समस्या) हुई हो तो आप जानते होंगे कि एक बार इसका एपिसोड आने पर न सिर्फ़ मन के भीतर डर बैठ जाता है, बल्कि जिसे वर्टिगो हुआ है वह व्यक्ति अपना आत्मविश्वास भी खो देता है. अत: बहुत ज़रूरी है वर्टिगो के पीछे का सही कारण जानकर उसका सही तरीक़े से इलाज करवाया जाए.
वर्टिगो होने के मुख्य कारण
वर्टिगो होने के तीन मुख्य कारण होते हैं. आइए, सबसे पहले इनके बारे में जानते हैं.
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस: जब भी किसी को चक्कर आता है, जी मिचलाता है और दिल घबराता है तो अक्सर सामान्यतौर पर कहा भी जाता है कि इसे सर्वाइकल हो गया है. हालांकि यह टर्म ‘सर्वाइकल’ पूरा नहीं अधूरा है, इसका सही और पूरा टर्म है- सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस. इसमें वर्टिब्रा में स्पेस कम हो जाता है, डिस्क की वजह से कोई न कोई नर्व दब जाती है, वर्टिब्रोबैसिलर आर्टरी दब जाती है मतलब ये कि हमारी गर्दन के आसपास, गर्दन के हिलने-डुलने की वजह से चक्कर आने की जो समस्या आती है उसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस कहते हैं.
बीपीपीवी: बीपीपीवी बिनाइल पैरॉक्सिज़्मल पोज़िशनल वर्टिगो यह कान की वजह से होता है. चक्कर आने पर जब अधिकतर मरीज़ों को ईएनटी से सलाह लेने को कहा जाता है तो वे असमंजस में पड़ जाते हैं कि कान की वजह से ऐसा कैसे हो रहा है? लेकिन यदि आपको कहा जा रहा है कि ईएनटी को दिखाएं तो आपको ऐसा करना ही चाहिए. हमारे शरीर का संतुलन साधने में कान और आंखों का योगदान होता है. अत: यदि कान में कोई गड़बड़ हो, तब भी वर्टिगो हो सकता है.
मस्तिष्क यानी ब्रेन में हलचल: चक्कर आने का तीसरा कारण हो सकता है कि आपके ब्रेन में कोई हलचल यानी डिस्टर्बेंस हुआ हो. यदि आपको वर्टिगो का इलाज लेते हुए बहुत समय हो गया है और आपको उससे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है तो आपको न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लेने को कहा जा सकता है. यदि आपके डॉक्टर यह सलाह दे रहे हैं तो उसका पालन करें. संभव है कि न्यूरोलॉजिस्ट आपको ब्रेन का एमआरआई करवाने को कहें, ताकि यह जाना जा सके कि आख़िर समस्या क्या है.
अब आपको यहां बताना ज़रूरी है कि वर्टिगो के ऊपरी दो कारणों का इलाज कुछ एक्सरसाइज़ के ज़रिए (जिसे आपको किसी फ़िज़ियोथेरैपिस्ट की देखरेख में करना चाहिए) पूरी तरह संभव है, लेकिन यदि ब्रेन में कोई हलचल है तो उसे देखते हुए आगे किस तरह इलाज करवाना है इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह पर अमल करें.
कैसे पता करें कि आपको क्यों हो रहा है वर्टिगो
यह जानने के लिए कि आपको वर्टिगो क्यों हो रहा है, हमारी सलाह होगी कि आप डॉक्टर की राय लें. लेकिन आप स्वयं भी ये जान सकें कि चक्कर क्यों आ रहे हैं उसके कुछ तरीक़े हम आपको बता रहे हैं.
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की वजह से चक्कर आने की मुख्य वजहें हैं: हमारा कंप्यूटर, लैपटॉप पर ज़्यादा काम करना, ज़्यादा फ़ोन देखना, स्क्रीन टाइम के अधिक होना और इन सबकी वजह से हमारे पॉस्चर का ग़लत होना; गर्दन के आसपास किसी हिस्से में दर्द महसूस होता है, गर्दन व कंधों का हिस्सा भारी महसूस होता है; तनाव की वजह से भी ऐसा हो सकता है और ऐसिडिटी भी वर्टिगो का एक बड़ा कारण हो सकती है.
इसके अलावा यदि आपकी आंखें कमज़ोर हो रही हैं, तब भी चक्कर आने की समस्या हो सकती है. यदि नेक मूवमेंट करने के दौरान आपको चक्कर आता है तो समझा जा सकता है कि यह गर्दन की वजह से ही हो रहा है.
बात बीपीपीवी की करें तो जब आपके कान की स्थिति बदलती है, तब यदि आपको चक्कर आता है तो यह बीपीपीवी है. इसका अर्थ ये है कि लेट के उठने पर, बैठ के उठने पर, लेटने जाते समय या बैठते समय यदि आपको चक्कर आ रहे हैं तो बहुत संभव है कि यह बीपीपीवी है. इसमें हो सकता है कि आपको दाईं या बाईं ओर लेटने पर चक्कर आए.
कैसे होता है इलाज
यदि आपको सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की वजह से चक्कर आ रहे हैं तो कुछ गर्दन की कुछ विशेष एक्सरसाइज़ सिखाई जाती हैं, जिन्हें करने पर चक्कर आने की समस्या कम होते-होते धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है. हम फिर सलाह देंगे कि ये एक्सरसाइज़ आप किसी एक्स्पर्ट की निगरानी में ही करें. ये पॉस्चरल एक्सरसाइज़ होती हैं, जो आपके पॉस्चर को सही करती हैं और शरीर के संतुलन में सुधार लाती हैं.
दूसरी बात गर्दन के मूवमेंट से होने वाले वर्टिगो के लिए एक मिथ फैला हुआ है कि ऐसे लोगें को सोते वक़्त तकिए का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. जिसकी सच्चाई यह है कि तकिए का इस्तेमाल ज़रूर किया जाना चाहिए. तकिया हटाने से,सोते वक़्त आपकी गर्दन लटक जाएगी और वर्टिगो की समस्या इससे बढ़ भी सकती है. अत: तकिया ज़रूर लें. आजकल बाज़ार में ऊंचाई को ऐड्जस्ट करने वाले तकिए उपलब्ध हैं, यदि चाहें तो उनका इस्तेमाल किया जा सकता है.
बीपीपीवी यानी कान में समस्या होने पर आने वाले चक्कर के लिए एप्ली मैनूवर कराया जाता है. इसमें कान के पीछे मौजूद सेमी सर्कुलर कैनाल में क्रिस्टल्स पहुंच जाते हैं, जिन्हें उस कैनाल से बाहर कराया जाता है. इसके लिए आपके सिर को अलग-अलग कोणों पर घुमाया जाता है (जिसे निश्चित रूप से किसी एक्स्पर्ट की देखरेख में ही करवाया जाना चाहिए), जिससे वे क्रिस्टल कैनाल से बाहर निकल जाएं. फिर उन्हें बैलेंस एक्सरसाइज़ सिखाई जाती है, क्योंकि बीपीपीवी पेशेंट्स का बैलेंस बहुत बिगड़ जाता है. इस वजह से पेशेंट बहुत डरा हुआ महसूस करता है. उसे उठने, बैठने और लेटने का सही तरीक़ा भी सिखाया जाता है. इस तरह के पेशेंट्स के लिए भी तकिया लेना बहुत ज़रूरी है. पेशेंट्स को सिखाया जाता है कि वे सोकर उस साइड से उठें, जिधर से उठने पर उन्हें चक्कर नहीं आते हों.
ब्रेन की वजह से यदि आपको वर्टिगो हो रहा है तो निश्चित रूप से आपको न्यूरोलॉजिस्ट की मदद लेनी होगी. वे आपके ब्रेन का एमआरआई या सिटी स्कैन करवाएंगे. यदि उन्हें ब्रेन के किसी भी हिस्से में पैच या डिस्टर्बेंस नज़र आता है तो वे उस हिसाब से आपको इलाज सुझाएंगे.
ज़्यादातर वर्टिगो के केसेज़, 60 प्रतिशत तक, सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की वजह से ही होते हैं, लेकिन डॉक्टर के ज़रिए इसका सही कारण जानने के बाद ही आप अपने लिए किसी नतीजे पर पहुंचें और एक्स्पर्ट्स की देखरेख में ही अपना इलाज करवाएं.
नोट: यहां बताई गई जानकारी तथ्यों के मुताबिक़ सही है, लेकिन चक्कर आने की समस्या होने पर बिना डॉक्टर से सलाह लिए किसी नतीजे पर न पहुंचें.
फ़ोटो साभार: फ्रीपिक